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    गांव की राजनीति : प्रथम जनप्रतिनिधि बनने में ग्रामीणों की रुचि नही, कई ग्राम पंचायत सदस्य पद खाली

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Tue, 04 Feb 2020 05:45 PM (IST)

    ताकतवर प्रधान कभी गांव के प्रथम जनप्रतिनिधि ग्राम पंचायत सदस्य से डरकर उन्हें मिलाकर रखते थे।

    गांव की राजनीति : प्रथम जनप्रतिनिधि बनने में ग्रामीणों की रुचि नही, कई ग्राम पंचायत सदस्य पद खाली

    वाराणसी [अशोक सिंह]। ग्रामीण भारत के विकास के साथ ही उज्‍जवल देश की कल्‍पना के साथ पंचायतों काे सशक्‍त करने का प्रयास शुरू किया गया था। वैसे तो त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली में ग्राम प्रधान का पद काफी महत्वपूर्ण होता है। वही ताकतवर प्रधान कभी गांव के प्रथम जनप्रतिनिधि ग्राम पंचायत सदस्य से डरकर उन्हें अपने साथ मिलाकर रखते थे। ग्राम पंचायत सदस्य अपने मनमाफिक विकास कार्य प्रधानों से कराते थे। मगर अब स्थिति यह है कि गांवों के लोगों को ग्राम पंचायत सदस्य बनने में कोई रुचि नहीं है। इसी का परिणाम है कि आम चुनाव के बाद आठ बार उपचुनाव हुए लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ही पंचायतों के 132 पद खाली हैं। 

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    उत्‍तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत के आम चुनाव को चार वर्ष से अधिक समय बीत चुका है। उसके बाद से प्रत्येक छह माह पर उपचुनाव कराए जाते रहे हैं। हर बार नामांकन पत्र आमंत्रित किए जाते हैं लेकिन ग्राम पंचायत सदस्य बनने में लोगों की अरुचि की वजह से पद भरे नहीं जा रहे हैं। इस बार पंचायत चुनाव में 133 पद खाली थे। इनमें से मात्र एक पद के लिए ही नामांकन हुआ और दोबारा 132 पद खाली ही रह गए। उपचुनाव की समय सीमा अब समाप्त हो गई है इसलिए ये पद अगले आम चुनाव तक खाली ही रहेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि सदस्य दो तिहाई हो गए तो ग्राम प्रधान कार्यकारिणी का गठन मान लिया जाता है। आम चुनाव के बाद दर्जनों गांवों में प्रधान का चयन तो हो गया लेकिन कार्यकारिणी का गठन अब तक नहीं हुआ। उपचुनाव हुए तो प्रधानों ने आपस में पैसे लगाकर लोगों का किसी तरह से नामांकन कराया तब प्रधान की कार्यकारिणी का गठन हो सका। गांवों की हकीकत यह है कि ग्राम पंचायत सदस्यों की बैठकें नहीं होती। 

    अविश्वास प्रस्ताव का अधिकार समाप्त

    ग्राम पंचायत सदस्यों के इर्द- गिर्द ही कभी गांव की प्रधानी चलती थी। इसकी वजह यह है कि ग्राम पंचायत सदस्यों के पास प्रधानों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का भी अधिकार था। करीब डेढ़ दशक पूर्व प्रधानों ने आवाज उठाई कि जब हमें गांव की ही जनता चुनती है तो ग्राम पंचायत सदस्य कैसे पद से हटा सकते हैं। शासन ने ग्राम प्रधानों की सुनी और ग्राम पंचायत सदस्यों से प्रधान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का अधिकार ही छीन लिया। इसके बाद से ही पद की महत्‍ता कम होती चली गई।

     - ग्राम प्रधान की कार्यकारिणी के गठन के लिए ग्राम पंचायत में दो तिहाई सदस्य होने अनिवार्य है। ऐसा नहीं होने पर प्रधान को दो तिहाई सदस्य होने तक इंतजार करना पड़ता है। -आरआर वर्मा, सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी पंचस्थानिक।