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    हाथ में मैप लेकर खेल गांव में घूमते थे विजय यादव, कामनवेल्थ गेम्स में जूडो में कांस्य पदक जीतने वाले वाराणसी के खिलाड़ी

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Tue, 23 Aug 2022 10:49 PM (IST)

    बर्मिंघम कामनवेल्थ गेम्स में जूडो में कांस्य पदक जीतने वाले बनारस के विजय यादव गृह जनपद आए हैं। पहली बार ही कामनवेल्थ गेम्स में भाग लेकर कांस्य पदक जीतने वाले विजय देश के लिए गौरव और परिवार व दोस्तों के लिए ढेरों खुशियां लेकर लौटे हैं।

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    बर्मिंघम कामनवेल्थ गेम्स में जूडो में कांस्य पदक जीतने वाले बनारस के विजय यादव गृह जनपद आए हैं।

    वाराणसी, देवेंद्र सिंह : बर्मिंघम कामनवेल्थ गेम्स में जूडो में कांस्य पदक जीतने वाले बनारस के विजय यादव गृह जनपद आए हैं। पहली बार ही कामनवेल्थ गेम्स में भाग लेकर कांस्य पदक जीतने वाले विजय देश के लिए गौरव और परिवार व दोस्तों के लिए ढेरों खुशियां लेकर लौटे हैं।

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    -गांव के एक लड़के को बर्मिंघम में किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?

    : आपने खेल से अलग व्यक्तिगत सवालों से ही शुरुआत कर दी। वैसे बताऊं, मुश्किल तो हुई। खेल गांव का माहौल बिल्कुल अलग था। अंग्रेजी में हाथ तंग होने से हर किसी से खुलकर बात नहीं कर पा रहा था। इसलिए मैं और मेरे जैसे कई खिलाड़ी हाथ में खेल गांव का नक्शा लेकर घूमते थे। कहीं जाने के लिए किसी से कुछ पूछना होता, तो नक्शा दिखाकर कम शब्दों में पूछ लिया करते थे।

    - भारत और इंग्लैड के समय और मौसम में काफी अंतर है। खुद को कैसे एडस्ट किया?

    : सबसे बड़ी परेशानी मेरे लिए समय के मुताबिक अपनी दिनचर्या को ढालना था। इसलिए कोच के निर्देश पर दिल्ली कैंप से इसकी शुरुआत कर दी थी। वहां के समय के मुताबिक खाना, सोना और अभ्यास यहीं पर शुरू कर दिया था। बर्मिंघम में इसका बहुत फायदा मिला और जल्दी ही वहां के माहौल में एडजस्ट हो गए। वहां के मौसम के बारे में काफी सुना था कि बहुत अलग है। मगर ऐसा कुछ खास लगा नहीं वैसे भी हर वक्त खेल और प्रदर्शन की बात ही दिमाग में रहती थी।

    -मेडल के लिए पोडियम पर जाने के लिए आप का नाम पुकारा गया तो थोड़ा असहज हो गए थे। ऐसा क्यों?

    : हां, ऐसा हुआ था। वहां के लोगों का बोलने अंदाज थोड़ा अलग है। उसे सुनकर समझने के लिए एकाग्र होना पड़ता था। उस वक्त भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने मेरा नाम पुकारा तो मैं समझ नहीं पाया। दूसरी बार नाम पुकारा गया तो समझ में आया कि मुझे मेडल लेने के लिए पोडियम पर जाना है।

    -घर से दूर विदेश में सबसे ज्यादा किसकी याद आई?

    : घर की बनी दाल की। मुझे खाने में दाल-चावल सबसे ज्यादा पसंद है। बर्मिंघम में खाना तो अच्छा था, चावल भी मिल जाता था, लेकिन दाल नहीं मिलती थी। इससे खाने का मजा थोड़ा कम रहा। वैसे खिलाड़ी के तौर पर इतना एडजस्टमेंट तो करना ही पड़ता है। घर आकर सबसे पहले दाल-चावल ही खाया।

    -कामनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने के बाद शोहरत के साथ रुपये भी मिल रहे हैं?

    : मेरे लिए गर्व की बात है कि कामनवेल्थ गेम्स में जूडो में मेडल लेने वाला मैं पूर्वांचल का पहला खिलाड़ी हूं। प्रदेश सरकार ने खिलाड़ियों के लिए ढेरों सुविधाओं का एलान किया है। इससे हमारे जैसे खिलाड़ी का हौसला बढ़ा है। सरकार ने मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को पैसे भी देने की बात कही है। मैं सबसे पहले अपने माता-पिता के लिए एक घर बनवाऊंगा। उनकी पूरी उम्र कच्चे घर में बीती है। उन्हें अच्छा लगेगा। इस घर में एक ऐसी जगह भी होगी, जहां मेरे मेडल और खेल की उपलब्धियों को सजाऊंगा।

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