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    पुराणों से भी पुरानी काशी में 'वाराणसी देवी' की अनोखी मान्यता, 69वीं वर्षगांठ पर शहर के नामकरण की कहानी

    Updated: Sat, 24 May 2025 01:04 PM (IST)

    वाराणसी जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है बाबा विश्वनाथ की नगरी है। यहाँ वाराणसी देवी को शक्तिस्वरूपा के रूप में पूजा जाता है जिनका मंदिर त्रिलोचन घाट पर स्थित है। 24 मई 1956 को वाराणसी जिले का आधिकारिक नाम स्वीकार किया गया था। वरुणा और असि नदियों के मध्य स्थित होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। यह शहर पुराणों में प्राचीन माना गया है।

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    शहर की देवी के तौर पर 'वाराणसी देवी' की मूर्ति स्थापित है। Jagran

    अभिषेक शर्मा, वाराणसी जागरण। बाबा विश्वनाथ की नगरी को काशी कहें, बनारस या वाराणसी, पहचान एक ही है। मां गौरा को ब्याहकर काशी को अपना घर बनाने वाले भोले शंकर का परिवार "शक्ति" के साथ पूर्ण माना जाता है। यहां "वाराणसी" को भी एक देवी के तौर पर मान्यता मिली हुई है।

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    वाराणसी गजेटियर के अनुसार 24 मई 1956 को वाराणसी जिले का आधिकारिक नाम डा. संपूर्णानंद के मुख्यमंत्री रहते तय किया गया था। इस लिहाज से आधिकारिक तौर पर वाराणसी नाम स्वीकारने की यह 69वीं वर्षगांठ है।

    देवी के तौर पर 'वाराणसी देवी' की मूर्ति स्थापित

    वाराणसी में वरुणा और असि नदियों के नाम होने का मत प्रचलित है। वहीं, गंगा तट स्थित त्रिलोचन घाट स्थित मंदिर में शक्तिस्वरूपा की मान्यता के तौर पर शहर की देवी के तौर पर 'वाराणसी देवी' की मूर्ति स्थापित है।

    मुख्य त्रिलोचन मंदिर के दाहिने हिस्से में "ऊं वाराणसी देव्यै नम:" के भावों से सजे "वाराणसी देवी" की प्रतिमा की नियमित पूजा करने वाले पुजारी मोहन पांडेय बताते हैं कि पुराणों से भी पुरानी नगरी के स्कंदपुराण के काशी खंड में देवी की व्याख्या मिलती है।

    वह बताते हैं कि पैरों पर खड़ी मुद्रा में स्थापित देवी की पत्थर की यह मूर्ति पौराणिक है। मंदिर वैसे तो महादेव को समर्पित है, लेकिन मंदिर के प्रांगण में मौजूद शहर की 'वाराणसी देवी' की अद्भुत प्रतिमा हर आगंतुक को आश्चर्य से विभोर कर देती है।

    शिव के तीसरे नेत्र को समर्पित

    गायघाट के पास ही प्राचीन त्रिलोचन मंदिर मौजूद है। काशीखंड में इसे शिव के तीसरे नेत्र को समर्पित माना गया है। इस तट पर गंगा के साथ अदृश्य रूप में नर्मदा एवं पिप्पिला नदियों का संगम भी माना गया है। तीन नदियों के संगम की मान्यता होने से घाट का नाम भी त्रिलोचन घाट है।

    घाट पर मौजूद त्रिलोचन मंदिर को औरंगजेब के काल में नष्ट करने की भी बात पुरनिए बताते हैं। बाद में इसका निर्माण पूना के नाथूबाला पेशवा द्वारा 18 वीं शताब्दी और वर्ष 1965 में रामादेवी द्वारा पुनर्निर्माण की जानकारी स्थानीय लोग देते हैं। मंदिर का पौराणिक प्रमाण भी धार्मिक ग्रंथों में मौजूद है।

    वाराणसी अर्थात् काशी विश्व की प्राचीनतम नगरियों में से एक है। संस्कृत व्याकरण की व्युत्पति की दृष्टि से (वरणा च असी च। तयोर्नद्योरदूरे भवा) के अनुसार इसका वाराणसी नामकरण वरुणा और असि नदियों के मध्य बसने से हुआ है। इसका वाराणसी नाम अत्यंत प्राचीनतम है, क्योंकि प्रायः सभी पुराणों में काशी के साथ-साथ वाराणसी शब्द का उल्लेख स्पष्ट रूप में मिलता है- यथा ''वरणासी च नद्यौ द्वे पुण्ये पापहरे उभे। तयोरन्तर्गता या तु सैषा वाराणसी स्मृता॥''। इसके अतिरिक्त इसे काशी शिवपुरी। जित्वरी, तपःस्थली, तीर्थराजी काशिका, मोक्षपुरी आदि नामों से भी जाना जाता है।इस क्षेत्र का चयन करने के साथ यहां वास का फल प्राप्त करने हेतु स्वयं भगवान शिव ने वरणा और असि नामक दो नदियों से इसकी सीमा निर्धारित की जिससे इसका नाम वाराणसी पड़ा। तस्माद्विश्वेश्वराज्ञैव काशीवासेऽत्र कारणम्। असिश्च वरणा यत्र क्षेत्ररक्षाकृतौ कृते। वाराणसीति विख्याता तदारभ्य महामुने! ।

    - प्रो. विनय कुमार पांडेय (पूर्व विभागाध्यक्ष, ज्योतिष विभाग, बीएचयू), संगठन मंत्री, श्री काशी विद्वत परिषद।