खत्म होने के कगार पर थी वाराणसी सॉफ्ट स्टोन जाली वर्क कला, सरकारी मदद और शिल्पियों के संकल्प से फिर जी उठी
पारंपरिक कला से मुंह मोड़ चुके कारीगर एक बार फिर जुड़ने लगे हैं। सॉफ्ट स्टोन अंडर कट जाली वर्क के युवा कारीगर आदर्श कुमार मौर्या बताते है कि इसमें एक ही पत्थर के टुकड़े पर बिना किसी जोड़ के पाइप के सहारे अंडर कट वर्क करके आकृतियां गढ़ी जाती हैं। उदाहरण के लिए एक ही पत्थर से बने हाथी के अंदर दूसरा हाथी उसके भी अंदर एक हाथी।

मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। पत्थरों को तराश कर जालीदार आकृति बनाना और बिना किसी जोड़ के उसके अंदर हुबहू वैसी ही आकृति गढ़ना काशी के कलाकारों की नायाब कलाकारी है। अधिक समय नहीं गुजरा जब वाराणसी सॉफ्ट स्टोन अंडर कट जाली वर्क के नाम से मशहूर यह कला खत्म होने की कगार पर पहुंच गई थी।
2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद हालात बदलने लगे। ट्रेनिंग, टूल किट, प्रमोशन, ब्रांडिंग आदि की मदद ने काशी की इस कला में फिर से जान डाल दी। जीआइ उत्पाद में शामिल इस पारंपरकि कला से मुंह मोड़ चुके कारीगर एक बार फिर जुड़ने लगे हैं।
सॉफ्ट स्टोन अंडर कट जाली वर्क के युवा कारीगर आदर्श कुमार मौर्या बताते है कि इसमें एक ही पत्थर के टुकड़े पर बिना किसी जोड़ के पाइप के सहारे अंडर कट वर्क करके आकृतियां गढ़ी जाती हैं। उदाहरण के लिए एक ही पत्थर से बने हाथी के अंदर दूसरा हाथी, उसके भी अंदर एक हाथी। यानी इस कला के माध्यम से एक ही पत्थर से बनाई गई हाथी की आकृति के अंदर दो और हाथी की आकृति तैयार की जाती है। इस कला में हाथी, अन्य पशु-पक्षी या कोई अन्य आकृति गढ़ी जाती है।
कलाकृति की कीमत 50 रुपये से 25,000 रुपये तक
काशी के अलावा यह कला आगरा में भी तेजी से बढ़ रही है। वहां भी काशी से ही कलाकार गए हैं। आज इसकी मांग अमेरिका, स्पेन, जर्मनी, ब्राजील, कतर, थाइलैंड, श्रीलंका के साथ ही बुद्धिस्ट सर्किट के अन्य देशों में काफी बढ़ी है। एक कलाकृति की कीमत 50 रुपये से 25,000 रुपये तक होती है।
आदर्श बताते हैं कि शुरुआत में रामनगर के कारीगरों को काशी नरेश का आश्रय मिला। लेकिन धीरे-धीरे यह कला लुप्तप्राय स्थिति में पहुंच गई। कलाकार जीवन यापन के लिए ई-रिक्शा, वायरिंग, पूट्टी आदि करने लगे थे। इस पारंपरिक कला को मोदी-योगी सरकार का आश्रय मिला तो स्थितियां बदलने लगी।
आज सॉफ्ट स्टोन जाली वर्क के कलाकारों के पास देश-विदेश से ऑर्डर की भरमार है। अभी इसका सालाना कारोबार 10 से 12 करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है। इससे काशी के लगभग 700 पारंपरिक कारीगर जुड़े हैं और प्रतिदिन 800 से 2000 रुपये तक कमा रहे हैं।
काम आ रही मोदी की सीख
आदर्श ने बताया कि टीएफसी में एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने सीख दी थी कि इस कला का स्टाल पर डेमो भी किया जाए, ताकि लोग समझ सकें कि आखिर एक ही पत्थर से एक के अंदर दूसरा और उसके अंदर तीसरी आकृति कैसे बनाई जाती है। अब हर स्टॉल पर डेमो मशीन के माध्यम से हम लोगों को यह दिखाते हैं।
लोग भी बड़ी रुचि से रुक कर इसे देखते और समझते हैं। केमेस्ट्री से पोस्ट ग्रेजुएट आदर्श बताते हैं कि आज पढ़े-लिखे युवा भी इस पारंपरिक कला से जुड़ रहे हैं और तकनीक के उपयोग से कारोबार को बढ़ा रहे हैं। कुछ ऐसे युवा में आ रहे हैं जिनके परिवार का कभी इससे नाता नहीं रहा है।
ओडीओपी के लिया किया आवेदन
आदर्श ने एक समिति बनाई है। इसके माध्यम से उपायुक्त उद्योग को ‘सॉफ्ट स्टोन अंडर कट जाली वर्क’ को ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) में शामिल करने के लिए आवेदन करने का आग्रह किया गया है। उनका कहना है कि यदि यह कला ओडीओपी में शामिल होती है तो इसे और ताकत मिलेगी।
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