UP News: अब काशी की 'अड़ियां' जोड़ेंगी पर्यटन से 'कड़ियां', चाय पर होगी चर्चा
वाराणसी में रोड साइड की दुकानों को अब स्टैंडर्ड बनाया जाएगा जिससे पर्यटकों को हाइजेनिक तरीके से खाने-पीने की सुविधा मिलेगी। प्रधानमंत्री के एडिशनल सचिव की सलाह पर प्रशासन ने यह योजना बनाई है। चाय की दुकानों को आकर्षक बनाने के लिए रंग-रोगन और लाइटिंग की जाएगी साथ ही खाद्य विभाग हाइजेनिक तरीके से खाना बनाने का प्रशिक्षण देगा। अड़ी जो बनारस की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।

अशोक सिंह, जागरण वाराणसी। बनारस को पढ़कर नहीं समझा जा सकता है। इसे जीया जाता है। अर्थात यहां के जीवन में जो फक्कड़पन, अक्खड़पन और घुमक्कड़पन है उसे अनुभव किया जाता है। ऐसे ही नहीं कहा जाता है कि काशी तीन लोक से न्यारी है। यहां के लोगों का रहन-सहन, आचार-विचार निराला है। गंगा यहां उत्तरवाहिनी हैं।
मान्यता है कि दुनिया शेषनाग के फन पर स्थित है पर काशीवासी मानते हैं कि काशी शंकर के त्रिशूल पर बसी है। यहां की गलियां, आश्चर्यजनक भूल-भूलैया हैं। सीढ़ी, घाट, पान, सांड, मंदिर, भाषा आदि निराली है। इस सब को जानने लिए चाय की अड़ियां बहुत ही सुगम कड़ी हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एडिशनल सेक्रेटरी शुभाषीश पांडा ने पिछले सप्ताह काशी का निरीक्षण और अध्ययन के बाद कहा बनारस में पर्यटन सुविधाओं को ग्लोबल बनाएं ताकि पर्यटक यहां रुके और काशी को समझे। इसी क्रम में प्रशासन ने काशी की चाय की दुकानों को स्टैंडर्ड, हाइजेनिक तरीके से खाने-पीने योग्य बनाने की योजना बनाई है।
वीडीए के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। योजना के तहत सड़कों के किनारे जितनी भी चाय की दुकान तथा रोड साइड खाने-पीने के स्थान हैं उनको रंग-रोगन कर स्टैंडर्ड और फसाड लाइटिंग से आकर्षक बनाया जाएगा।
खाद्य विभाग हाइजेनिक तरीके से खाने-पीने की चीजों को बनाने और परोसने का प्रशिक्षण देगा। दुकानों के चयन के लिए नगर निगम को जिम्मेदारी दी गई है। इसके बाद पर्यटन और विकास प्राधिकरण इसकी डिजाइन कर चाय की दुकानों को वैश्विक रूप देंगे। जिन क्षेत्रों में ये कार्य किए जाने हैं उसके लिए 18 पर्यटन और अन्य स्थलों का चयन किया गया है।
बौद्धिक व्यक्तित्व निखारने की कड़ी है अड़ी
बनारस की विशेषताओं की कड़ी में अड़ी एक महत्वपूर्ण केंद्र है। अड़ी पर ही देखने को मिलता है कि यहां न कोई व्यस्त है न ग्रस्त है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि जा रहे थे कचहरी तारीख पर कोई मिल गया तो पहुंच गए अड़ी पर। चाय पीकर शाम को लौट आए घर। अड़ी पर ही पता चलता है कि बनारसी किस जन्तू का नाम है।
अड़ियों पर भाषा, साहित्य, रंगमंच, चित्रकला, पत्रकारिता की फसल अंकुरित होकर लहलहाती है। अड़ियों पर लोग नियमित या कुछ समय बैठते हैं। बतरस करते हैं। अखबारों की एक-एक खबर का पोस्टमार्टम करते हैं। सबसे बड़ी बात अड़ियाें पर वैचारिक दुर्भाव नहीं होता। इसी कारण विद्वान अड़ी को अड़े रहने का स्थान मानते हैं।
कबीर की अड़ी कबीरचौरा हो गई लेकिन तुलसीदास की अड़ी असि आज इतनी विकसित हो गई है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने को रोक नहीं सके। गोदौलिया का दी रेस्त्रा, दालमंडी के सामने चौक, चित्रा के सामने भार्गव बुक स्टाल और बेनिया की अड़ी का रूप बदल गया।
ये हैं 18 पर्यटन स्थल:
बाबतपुर एअरपोर्ट, अतुलानंद चौराहा, वाराणसी रेलवे स्टेशन, अस्सी घाट, संकटमोचन, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र, मणिकर्णिका गली, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर जाने वाले सभी प्रवेश द्वार, दुर्गा मंदिर, भारत माता मंदिर, तुलसी मानस मंदिर, मानमहल घाट, केदार घाट, पंचगंगा घाट, सारनाथ, धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप, कालभैरव मंदिर, दशाश्वमेध घाट तथा कैंट बस स्टेशन।
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