पितरों के तर्पण-अर्पण को पिशाच मोचन कुंड पहुंचने लगे श्रद्धालु, जानें पिंडदान और दान-पुण्य की महत्ता
वाराणसी में भाद्रपद पूर्णिमा से पितरों की आराधना अब शुरू हो चुकी है। काशी में लोगों ने मातृकुल के पितरों का श्राद्ध किया और तर्पण-अर्पण किया। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को प्रतिपदा का श्राद्ध होगा और महालया आरंभ हो जाएंगे। पितरों के तर्पण के लिए लोग पिशाच मोचन कुंड पहुंच रहे हैं।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने, उनकी आराधना करने, पूजन, तर्पण-अर्पण आदि के विधान भाद्रपद पूर्णिमा रविवार से ही आरंभ हो गए। मध्याह्न काल में लोगों ने मातृकुल के पितरों यथा नाना-नानी, परनाना, परनानी का श्राद्ध कर उनको तर्पण-अर्पण किया।
अब सोमवार आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को प्रतिपदा का श्राद्ध हाेगा। इसी के साथ महालया आरंभ हो जाएंगे। पितरों के तर्पण-अर्पण के लिए दूर-दूर से लाेग काशी के पिशाच मोचन कुंड पहुंचने लगे हैं।
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भाद्रपद पूर्णिमा पर मातृकुल के पितरों को तर्पण अर्पण के लिए सुबह से ही पतित पावनी मां गंगा के डूबे हुए घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी थी। बढ़ी हुई गंगा में लोग किनारों पर ही स्नान कर पितरों को तर्पण अर्पण व पिंडदान किए। श्राद्ध का यह पूरा पखवारा पितृ विसर्जन 21 सितंबर तक अनवरत चलता रहेगा।
इस बीच में अपने पूर्वजों के निधन की तिथियों पर उनका श्राद्ध कर्म करते हुए लोग तर्पण-अर्पण करेंगे। काशी में पिशाच मोचन कुंड पर पितरों का तर्पण-अर्पण कर उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने हेतु तर्पण व श्राद्ध कर्म का विधान व मान्यता होने के चलते दूर-दूर के श्रद्धालु एक दिन पूर्व से ही पहुंचना आरंभ कर दिए है। तर्पण के लिए श्रद्धालुओं के आने का यह क्रम पितृ विसर्जन तक अनवरत चलता रहेगा।
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स्वाहा के स्थान पर करें स्वधा का प्रयोग
काशी हिंदू विश्वविद्यालय कर्मकांड विभाग के आचार्य प्रो. हरीश्वर दीक्षित बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष पितरों की पूजा-उपासना का काल है। इसे अत्यंत शुद्ध, सात्विक तरीके से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्यतीत करना चाहिए। जिनके पिता अब जीवित नहीं है, उनकी पुण्यतिथि पर चौलकर्म करते हुए विधि पूर्वक पिंडदान, गरीबों को दान-पुण्य व ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करके विधिपूर्वक तर्पण-अर्पण करना चाहिए। पितृ पक्ष के इस काल में पितृ तर्पण, ऋषि ऋण तथा देव तर्पण तथा गुरु तर्पण करना चाहिए। प्रात:काल उठकर नित्य-कर्म से निवृत्त हो, स्नान कर सर्वप्रथम पितरों के प्रति श्रद्धा के ज्ञापन के लिए तिलांजलि से तर्पण करना चाहिए। यज्ञ कर्म में जैसे स्वाहा शब्द का प्रयोग होता है, उसी तरह तर्पण कर्म में स्वधा शब्द का प्रयोग किया जाता है।
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ऐसे करें तर्पण
हाथों में जल और काला तिल लेकर अंगूठे और तर्जनी के मध्य से उसे गिराते हुए ‘पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधा नम:’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। पिता, पितामह, प्रपितामह, वृद्ध प्रपितामह तथा इसी तरह मातृपक्ष के माता, मातामह, प्रमातामह व वृद्ध प्रमातामह का तर्पण श्रद्धापूपर्वक करना चाहिए।
यदि इन सभी पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात हो, उनको उनकी तिथि पर और पुण्यतिथि न ज्ञात हो पूरे पक्ष भर प्रतिदिन तर्पण करते हुए सर्वपितृ अमावस्या को पितृ विसर्जन करते हुए ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराना चाहिए। पितरों के साथ ही देवताओं व ऋषियों का अक्षत से, दिव्य पितरों का जौ से तथा सामान्य मानव पितरों का तिल से तर्पण करना चाहिए। दिवंगत भाई-बहन, गुरु व गुरुमाता का भी तर्पण कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।
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