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    जेएफएफ ने राह दिखाई, तीन दिनों में मनोरंजक व विचारशील डेढ़ दर्जन छोटी बड़ी फिल्मों ने दिल जीत लिया

    Updated: Mon, 29 Sep 2025 11:08 AM (IST)

    वाराणसी में जागरण फिल्म फेस्टिवल ने युवा फिल्म निर्माताओं को मार्गदर्शन दिया। दिग्गज फिल्मकारों से मिलने और विभिन्न प्रकार की फिल्मों का आनंद लेने का अवसर मिला। महेश भट्ट ने अपने अनुभव साझा किए और फिल्म निर्माण में नई तकनीकों के बारे में बताया गया। स्थानीय अभिनेता विनीत सिंह ने भी भाग लिया।

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    जागरण फिल्म फेस्टिवल के 13वें संस्करण ने सिने जगत के दिग्गजों का सानिध्य दिया।

    प्रमोद यादव, जागरण वाराणसी। दुनिया का अपनी तरह का अनूठा घुमंतू सिने समारोह जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) एक बार फिर इस सतरंगी दुनिया में हाथ आजमाने के लिए बेकरार, संघर्षरत और तैयार युवाओं को राह दिखा गया। सिने जगत के दिग्गजों का सानिध्य दिया तो तीन दिनों में डेढ़ दर्जन छोटी बड़ी फिल्मों से

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    मनोरंजन का पिटारा थमाया और वैचारिक सिनेमा के शौकीनों के दिल-दिमाग के दरवाजे खटखटा गया। नए पुराने फिल्मी सितारों से मिलाया तो मंझे निर्माता-निर्देशकों का सानिध्य दिला कर ऊर्जा व अनुभव से पोर-पोर सराबोर किया।

    आइपी सिगरा में फेस्ट का आरंभ शुक्रवार को हुआ जिसने हर आयु वर्ग के दिलों को छुआ। इसमें कोई मनोरंजन के लिए आया तो किसी के कदम वैचारिक सिनेमा की तलाश में खींचे चले आए। किसी को फिल्मी सितारों से मिलना था। कोई फिल्म देखने आया तो बहुत से एेसे थे जिन्हें फिल्म में करियर का जुनून यहां खींच लाया। विशेष यह कि जिसने जो चाहा वह पाया। नए-नवेले लेकिन मंझे सितारों की पहली बार पर्दे पर उतर रही फिल्म तो संदेशपरक शार्ट्स भी देखने को मिली।

    सर्वाधिक रोमांचकारी रहा पर्दे के पीछे से फिल्मों को आकार देने वाले अनगिन कलाकारों को कला का संसार देने वाले ख्यात दिग्गज निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट से मिलना। उनसे संघर्ष, अनुभव, सफलता की कहानी सुनना और हृदय की कोटरों में बैठी फिल्म संबंधित जिज्ञासाओं का समाधान पाना। इस उम्र में फिल्मों की लंबी फेहरिश्त से इसका भान तो था कि वे अनुभवों की खान होंगे, लेकिन युवाओं से कहीं अधिक अथाह ऊर्जा ने दिल जीत लिया।

    एक पारस की तरह जो भी उनसे टकराया सोना बना दिया। इनमें से एक रही फिल्म ‘तू मेरी पूरी कहानी’ की स्टार कास्ट। इसमें सुहृता दास के लेखक-निर्देशक व हिरण्या के फिल्म अभिनेत्री बनने की कहानी तो मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के एक अनजान से गांव बरखेड़ा के किसान परिवार को नौजवान अरहान की एक सामान्य सी नौकरी से फिल्म अभिनेता बन जाने का सपना साकार होने की कहानी ने रोमांच जगाया।

    स्कैम 1992, मडगांव एक्सप्रेस, फुले, दो और दो प्यार फेम प्रतीक गांधी के इंजीनियर से इंटरटेनर बनने की कहानी भी शब्द-संवाद के साथ दिल में उतरती चली गई। किस तरह उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए रोजगार के बीच राह बनाई और सपनों को ऊंचाई देते हुए सपनों की मंजिल पाई फिल्मों में करियर बनाने के लिए प्रयासरत हुआ को प्रोत्साहित किया। उनके हर अनुभव को प्रेरणा बना दिया।

    दूसरे दिन शनिवार को अलग तरह के स्वतंत्र सिनेमा के लिए पहचाने जाने वाले मसान व होम बाउंड फेम निर्देशक नीरज घेवान की क्लास ने लीक तोड़ने का जज्बा जगाया। इसने दिल-दिमाग को खोला तो क्रिएटिव आर्टिस्ट दीपक पंत ने नई पीढ़ी को नए दौर की तकनीक आजमाने का तरीका बताया। वीएफएक्स पर आयोजित विशेष सत्र में उन्होंने फिल्म निर्माण में इसकी विधि, संभावना, अवसर आदि से परिचित कराया।

    अपने ही शहर में जन्मे, पले, बढ़े, बढे़ मुक्केबाज व छावा फेम फिल्म अभिनेता विनीत सिंह से मिलने के साथ उनके संघर्ष से लेकर सफलता की कहानी को सुनने का मौका मिला। फेस्ट ने बच्चों को दोस्त बुक व करामाती पौधा समेत फिल्मों से जोड़ा तो उन्हें आभासी की बजाय वास्तविक दुनिया की ओर मोड़ा। होम बाउंड और छावा जैसी फिल्में भी स्क्रीन पर आंखों को एकटक करती रहीं।

    तीसरा दिन मानो तारे जमीन पर ले आया। उसने छोरा गंगा किनारे वाला यानी अपने पूर्वांचल, बलिया के लाल गली बाय, गहराइयां व धड़क टू फेम सिद्धांत चतुर्वेदी से मिलाया। सिद्धांत भी अपनो के बीच आए तो झूमते, गाते नजर आए। भाषाई सिनेमा ने तो मानो पूरा देश को एकाकार कर दिया। कुछ भी हो फिल्म फेस्टिवल ने युवा पीढ़ी के लिए करियर की सीढ़ी तैयार कर दिया।

    अंत‍िम द‍िन भाषायी स‍िनेमा के नाम

    दुनिया के सबसे बड़े घुमंतू फिल्म महोत्सव ‘जागरण फिल्म फेस्टिवल 2025’ दिल्ली, कानपुर, लखनऊ होते हुए बनारस में अपना 13वां संस्करण पूरा कर आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान कर गया। तीन दिनों तक आइपी माल सिगरा में तीन फिल्मों को रिलीज करते हुए कुल 25 देशी-विदेशी फिल्मों के प्रदर्शन के साथ वास्तविक सिनेमा की संस्कृति को दर्शकों के बीच प्रस्तुत किया और सपनीली दुनिया के इंद्रधनुषी संसार की सैर करा गया। तीसरे व अंतिम दिन महोत्सव अधिकांशत: भारतीय भाषाई फिल्मों के नाम रहा।

    बांग्ला, तमिल, भोजपुरी, मलयालम, अंग्रेजी आदि भाषाओं में कुल 10 फिल्मों का बनारसी दर्शकों ने आनंद लिया। तीसरे दिन महोत्सव का शुभारंभ अभिजीत गुहा व सुदेशना राय की बांग्ला फीचर फिल्म ‘आपिश’ से हुई। इसके बाद मराठी लघु फिल्म ‘द अनटोल्ड अगोनी’ दिखाई गई। हिंदी लघु फिल्म ‘इश्तेयाक’ ने कलाकारों के अभावग्रस्त जीवन में एक तारीख के इंतजार में जिम्मेदारियों के बोझ से टूटते पुरुषों का संघर्ष देख लोग भावुक हो उठे।

    तमिल फीचर फिल्म ‘अरूलवान’ ने शिक्षा के लिए केरल व तमिलनाडु की सीमा पर घनघोर जंगलों में रहने वाली एक मलयाली आदिवासी लड़की के संघर्ष को जीवंत किया और एक कलेक्टर के त्याग से उसे अपने समुदाय की पहली शिक्षित लड़की हीं नहीं आइएएस अधिकारी भी बनते देख लोग भावुक हो उठे।

    अंग्रेजी लघु फिल्म ‘द फर्स्ट ब्रेक : द रील गेम’ व फिलिपिंस की फिल्म ‘चैंप ग्रीन’ ने भी अपने कथ्य से दर्शकों के बीच प्रभाव छोड़ा। मूलत: कुरुख भाषा की हिंदी फिल्म ‘ह्युमन इन द लूप’ में एआई पूर्वाग्रहों और तकनीक के लैंगिक निहितार्थों की सूक्ष्म पड़ताल देखने को मिली। फिल्म में दिखाया गया कि झारखंड की एक आदिवासी महिला कैसे अप्रत्याशित रूप से खुद को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के साथ जुड़ती हुई पाती है, और इसके छिपे हुए पूर्वाग्रहों और नैतिक दुविधाओं को उजागर करती है। कुल मिलाकर इस फिल्म मेें सावधानीपूर्वक किए गए शोध की भावनात्मक रूप से सम्मोहक कहानी की प्रस्तुत की गई।

    शाम साढ़े छह बजे के शो में दर्शकों ने फिल्म की कहानी प्रेम, भक्ति, नारी सशक्तिकरण और सामाजिक जागरूकता पर केंद्रित भोजपुरी फिल्म ‘रुद्रशक्ति’ का आनंद लिया। इसमें अक्षरा सिंह और विक्रांत सिंह राजपूत की प्रेमकहानी के साथ एक शिवभक्त का समाज की कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष देख दर्शकों ने खूब तालियां बजाईं और हर-हर महादेव का उद्घोष किया।

    अंत में हिंदी फिल्म ‘चिड़िया’ के प्रदर्शन के साथ फिल्म महोत्सव अगले पड़ाव की ओर प्रस्थान कर गया। इस अंतिम फिल्म में बच्चों का बचपन, बाल श्रम, शिक्षा, सामाजिक विसंगति और अभाव जैसे कई गहन मुद्दों को बिना किसी नाटकीयता और मेलोड्रामा के इतने सहज और सरल ढंग से उठाया गया है कि दर्शक आंसुओं से तर आंखों के बावजूद खिलखिला उठे।