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    Ashadh Month 2025: पुराणों में वर्णित ‘शुचि मास’, धर्म-अध्यात्म के लिए बेहद खास

    Updated: Fri, 13 Jun 2025 09:41 AM (IST)

    वाराणसी में आषाढ़ मास का आरंभ हो गया है जो 10 जुलाई को गुरु पूजन के साथ संपन्न होगा। इस मास में रथयात्रा हरिशयनी एकादशी और गुरु पूर्णिमा जैसे प्रमुख पर्व मनाए जाएंगे। आषाढ़ मास को आत्म संयम और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है जिसमें अनेक व्रत और उत्सवों का आयोजन किया जाता है। इस दौरान चातुर्मास भी आरंभ होगा जिससे मांगलिक कार्य रुक जाएंगे।

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    प्राकृतिक परिवर्तनकारी मास का हो गया आरंभ, 10 जुलाई को गुरु पूजन संग समापन। जागरण्

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। सनातन धर्म में हिंदी के 12 मास में से चौथा प्रमुख मास आषाढ़ गुरुवार को आरंभ हो गया। यह मास किसान, कृषि व वर्षा के साथ धर्मपारायण आमजन के लिए एक विशिष्ट महत्व का है। वर्षा के नौ नक्षत्रों में प्रथम आर्द्रा का प्रवेश इस मास में होने से वर्षारंभ का माह माना जाता है।

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    ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से श्रीहरि चार मास शयन के लिए क्षीर सागर चले जाते हैं। चातुर्मास आरंभ होने से समस्त मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा। इस मास के शुक्ल पक्ष में भगवान जगन्नाथ रथयात्रा पर निकलते हैं तो गुरु पूजन से पूर्ण होता है। इस मास का नाम पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर पड़ा है। इसमें प्राय: सूर्यदेव का संचरण मिथुन राशि पर होता है।

    वामन पुराण अनुसार आषाढ़ मास में जो व्यक्ति एक भुक्त अर्थात् एक बार भोजन करता है, वह धन धान्य व पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है। इस बार आषाढ़ मास में देव गुरु के आकाश मंडल में अस्त होने से लगन-मुहूर्त नहीं हैं।

    आत्म संयम पूर्वक वाह्य एवं आंतरिक शुचिता का मास 

    भारतीय ज्योतिष शास्त्र की कालगणना प्रक्रिया की मास व्यवस्था के क्रम में आषाढ़ मास का महत्वपूर्ण स्थान है। कहा गया है-‘आषाढया नक्षत्रेण युक्ता पूर्णिमा यस्मिन्’ तथा रवेर्मिथुनराशिस्थितिकालः। अर्थात् जिन दो अमावस्या के मध्य मिथुन राशि की सूर्य संक्रांति होती है तथा मिथुन संक्रांति से संबद्ध जिस मास की पूर्णिमा पूर्वा या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र से युक्त होती है उसे आषाढ़ मास के नाम से जाना जाता है।

    बीएचयू ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय के अनुसार आषाढ़ में धार्मिक-आध्यात्मिक व प्राकृतिक परिवर्तन की महत्वपूर्ण स्थिति बनती है। यह आत्म संयम पूर्वक वाह्य एवं आंतरिक शुचिता को संरक्षित करते हुए जीवन यापन का विशिष्ट काल होता है। इसलिए इसे पुराणों में इसे शुचि मास अर्थात पवित्रता का मास कहा जाता है।

    कोष्ठीप्रदीप ग्रंथ में आषाढ़ मास में उत्पन्न जातक का फल बताते हुए लिखा गया है कि ‘अनल्पजल्पी प्रमदाभिलाषी प्रमादशीलो गुरुवत्सलश्च। बहुव्ययो मन्दहुताशनः स्यादाषाढमासप्रभवो मनुष्यः॥’ अर्थात् आषाढ़ में उत्पन्न जातक अति जल्पना करने वाला, स्त्रियों में अधिक रुचि रखने वाला, अहंकार युक्त, अत्यंत खर्चीले स्वभाव वाला, स्वल्प भोजन करने वाला व गुरु प्रिय होता है।

    आषाढ़ मास के व्रत एवं उत्सव

    • 14 जून: संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत
    • 19 जून: शीतलाष्टमी
    • 21 जून: योगिनी एकादशी गृहस्थों की
    • 22 जून: योगिनी एकादशी वैष्णवों की
    • 22 जून: आर्द्रा नक्षत्र पर सूर्य का प्रवेश दिन में 2.12 बजे
    • 23 जून: पुत्र प्राप्ति के लिए सोम प्रदोष व्रत
    • 25 जून: आषाढ़ी अमावस्या (स्नान-दान, श्राद्ध की)
    • 26 जून: आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रारंभ व मनोरथ द्वितीया
    • 27 जून : रथयात्रारंभ
    • 28 जून: वैनायिकी गणेश चतुर्थी
    • 30 जून : आषाढ़ शुक्ल षष्ठी, स्कंद षष्ठी
    • 06 जुलाई : विष्णु शयनी एकादशी
    • 07 जुलाई : चातुर्मासारंभ
    • 08 जुलाई: भौम प्रदोष व्रत (ऋण मुक्ति के लिए)
    • 10 जुलाई : गुरु पूर्णिमा