काशी में भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई सड़क तक आई, मंत्री का स्वागत बैनर उतारने को लेकर जमकर 'कहासुनी'
वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी के आगमन के बीच मिंट हाउस चौराहे पर एक मंत्री के स्वागत बैनर को लेकर विवाद हो गया। एक राज्य मंत्री द्वारा लगाए गए बैनर को एक एमएलसी के समर्थकों ने उतार दिया जिससे दोनों पक्षों में तीखी कहासुनी हुई। इस घटना को भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी के अंदर की खेमेबंदी का परिणाम बताया है।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुरुवार को काशी आगमन को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं और नागरिकों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। हालांकि, इस उत्साह के बीच मिंट हाउस चौराहे पर एक मंत्री के स्वागत बैनर को उतारने को लेकर जमकर कहासुनी हुई।
एक राज्य मंत्री ने मिंट हाउस चौराहे पर स्थित विभूति नारायण सिंह द्वार पर बैनर लगा दिया था, जो एक एमएलसी को नागवार गुजरा। इसके बाद एमएलसी के समर्थक सीढ़ी लेकर आए और द्वार पर चढ़कर बैनर को उतार फेंका। इस दौरान मंत्री के समर्थक भी वहां पहुंच गए और विरोध जताया। उन्होंने पूछा कि क्या यह द्वार केवल आपका है, लेकिन एमएलसी के समर्थक नहीं माने। कहासुनी इतनी बढ़ गई कि दोनों पक्ष एक-दूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे। हालांकि, मंत्री पक्ष के लोग फेंका हुआ बैनर उठाकर ज्यादा विरोध किए बिना वहां से चले गए।
इस घटना के बाद मंत्री भी मौके पर पहुंचे। उन्होंने बैनर उतारने की घटना पर कोई सीधा बयान नहीं दिया, लेकिन वहां खड़े होकर मीडिया को बाइट दी। इस दौरान प्रधानमंत्री काशी पहुंच चुके थे। इस घटना को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में दिन भर चर्चा का विषय बना रहा।
लोग कहासुनी का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करते रहे। इसे पार्टी के अंदर की खेमेबंदी का परिणाम बताया जा रहा है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि वर्चस्व की इस लड़ाई में पार्टी की गरिमा को ठेस पहुंच रही है। इस प्रसारित हो रहे वीडियो के साथ पार्टी के लोग भी कमेंट कर इस घटना को लेकर चर्चा कर रहे हैं।
भाजपा में इस प्रकार की घटनाएं चर्चा का विषय जरूर बनती हैं। यह घटना भी उसी का एक उदाहरण है। पार्टी के भीतर चल रही आंतरिक राजनीति और वर्चस्व की लड़ाई ने इस बार एक मंत्री और एमएलसी के बीच विवाद को जन्म दिया।
इस प्रकार की कहासुनी से पार्टी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर जब प्रधानमंत्री जैसे बड़े नेता का आगमन हो। भाजपा कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस प्रकार की घटनाएं पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती हैं। इस विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा में आंतरिक मतभेद और वर्चस्व की लड़ाई अब खुलकर सामने आ रही है। ऐसे में पार्टी को अपनी छवि को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता वरिष्ठों ने जताई है।
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