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    Varanasi Gyanvapi Case : इंतजामिया कमेटी ने आपत्ति दाखिल करने के लिए समय मांगा, छह अक्टूबर को अगली सुनवाई

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Thu, 15 Sep 2022 05:30 PM (IST)

    ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग की आकृति की पूजा-भोग आरती करने के लेकर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से दाखिल अर्जी पर गुरुवार को सुनवाई हुई। प्रतिवादी मस्जिद पक्ष ने आपत्ति दाखिल करने के लिए समय मांगा। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए छह अक्टूबर की तिथि तय की।

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    अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से दाखिल अर्जी पर गुरुवार को सुनवाई हुई।

    वाराणसी, जागरण संवाददाता। ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के पूजा-पाठ राग-भोग आरती करने के लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से दाखिल प्रार्थना पत्र पर गुरुवार को सुनवाई हुई। इस मामले में प्रतिवादी अंजुमन इतेजामिया मसाजिद ने जबाव दाखिल करने के लिए वक्त मांगा है। अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख छह अक्टूबर तय की है।

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    सिविल जज सीनियर डिविजन कुमुद लता त्रिपाठी की अदालत में सुनवाई के दौरान प्रतिवादी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद ने की ओर से स्थगन प्रार्थना पत्र देते हुआ कहा गया कि ज्ञानवापी मामले से सम्बंधित कई मुकदमे अलग-अलग अदालतों में चल रहे हैं। ऐसे में इस मामले में आपत्ति दाखिल करने के लिए समय दिए जाना चाहिए। इस पर वादी के वकील अरुण कुमार त्रिपाठी, रमेश उपाध्याय, चंद्रशेखर सेठ ने आपत्ति जताई।

    उनका कहना था कि प्रतिवादी अंजुमन मुकदमे की लगभग हर तारीख पर मौजूद रहे। उन्हें आपत्ति के लिए पहले ही पयार्प्त वक्त मिल चुका है। ऐसे में और वक्त नहीं दिया जाना चाहिए। परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए अदालत ने मुकदमे की सुनवाई के लिए अगति तिथि तय कर दी। इस मामले में अन्य प्रतिवादी डीएम और पुलिस कमिश्नर को भेजी गई मुकदमे की नोटिस की रजिस्ट्री को पर्याप्त तामिला माना हैं।

    बता दे की स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद व रामसजीवन ने अपने वकीलों के माध्यम से अदालत में प्रार्थना दाखिल किया है। जिसमे शृंगार गौरी प्रकरण में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के आदेश पर हुए कोर्ट कमीशन की कार्यवाही में मिले शिवलिंग का विधिवत राग भोग, पूजन व आरती की मांग की है।

    उनका कहना है कि जिला प्रशासन की ओर से इसका विधिवत इंतजाम करना चाहिए था। लेकिन अभी तक प्रशासन ने ऐसा नहीं किया है। न किसी अन्य सनातनी धर्म से जुड़े व्यक्ति को इसके सम्बंध में नियुक्त किया। बताया कि कानूनन देवता की परस्थिति एक जीवित बच्चे के समान होती है। जिसे अन्न-जल आदि नहीं देना संविधान की धारा अनुच्छेद-21 के तहत दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।

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