Varanasi Gyanvapi Case : प्राचीन वस्तु के आयु का निर्धारण होता है कार्बन डेटिंग से, सामने आएगा कई नए तथ्य
ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के कार्बन डेटिंग के लिए मंदिर पक्ष की ओर से अदालत में दाखिल किए गए प्रार्थना पत्र में इसके महत्व के बारे में भी बताया गया। लिखा है कि 16 मई को एडवोकेट कमिश्नर की कार्रवाई के दौरान ज्ञानवापी परिसर में प्राचीन शिवलिंग मिला है।

जागरण संवाददाता, वाराणसीः कार्बन डेटिंग को रेडियोएक्टिव पदार्थों की आयु सीमा निर्धारण करने में प्रयोग किया जाता है। प्राचीन वस्तुओं की आयु के बारे में पता किया जाता है। कार्बन डेटिंग में कार्बन-12 एवं कार्बन-14 के मध्य अनुपात निकाला जाता है। कार्बन-14 कार्बन का रेडियोधर्मी आइसोटोप है, इसका अर्ध आयुकाल 5730 वर्ष का है। कार्बन काल विधि के माध्यम से तिथि निर्धारण होने पर इतिहास एवं वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी होने में सहायता मिलती है।
रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो विश्वविद्यालय के विलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने किया था। 1960 में उन्हें इसके लिए रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होंने कार्बन डेटिंग के माध्यम से पहली बार लकड़ी की आयु पता की थी।
ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के कार्बन डेटिंग के लिए मंदिर पक्ष की ओर से अदालत में दाखिल किए गए प्रार्थना पत्र में इसके महत्व के बारे में भी बताया गया है। लिखा है कि 16 मई को एडवोकेट कमिश्नर की कार्रवाई के दौरान ज्ञानवापी परिसर में प्राचीन शिवलिंग मिला है।
मुकदमे के सही निस्तारण के लिए यह जरूरी है कि उसकी वैज्ञानिक तरीके से जांच हो। इसके लिए कार्बन डेटिंग या अन्य विधि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाना चाहिए। कार्बन डेटिंग में किसी वस्तु के कार्बन 14 के क्षय से उसकी आयु, प्रकृति आदि का निर्धारण होता है। इसकी एक लैब वर्ष 2014 में गुजरात के गांधी नगर में स्थापित की गई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ऐसे किस स्थान या वस्तु को संरक्षित का उसकी जांच कर सकता है जिसका एतिहासिक या पुरातात्विक महत्व है।
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