वंदेमातरम का तमिल में अनुवाद किया था महाकवि सुब्रह्मण्य भारती ने, गुरुदेव की भतीजी ने काशी में किया था अभ्यास
पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में वंदेमातरम के गायन के पूर्व 1905 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की भतीजी सरला देवी ने इस गीत का दुबारा अभ्यास उनके इसी घर क ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, वाराणसी : महाकवि सुब्रह्मण्य भारती ने वंदेमातरम का तमिल भाषा में अनुवाद किया था। यह गीत उनके जीवन का मूलमंत्र बन गया था। महान कवि होने के साथ ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका बहुमूल्य योगदान है। वह उत्तर-दक्षिण भारत के साहित्यिक सेतु थे। यही नहीं, काशी के हनुमान घाट स्थित उनका आवास उस दौर के महान स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र बन गया था।
पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में वंदेमातरम के गायन के पूर्व 1905 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की भतीजी सरला देवी ने इस गीत का दुबारा अभ्यास उनके इसी घर के आंगन में किया था। उस बैठक में महामना पं. मदन मोहन मालवीय, बाल गंगाधर तिलक आदि भी वहां उपस्थित थे।

महाकवि सुब्रह्मण्य भारती को महाकवि भारतियार नाम से भी जाना जाता है
तमिलनाडु के एट्टयपुरम् गांव में 11 दिसंबर 1882 को जन्मे तमिल महाकवि सुब्रह्मण्य भारती को महाकवि भारतियार नाम से भी जाना जाता है। किशोरावस्था में उनके माता-पिता का निधन हो गया तो प्रारंभिक शिक्षा गांव में लेने के बाद वह 1898 में वह उच्च शिक्षा के लिए अपनी पत्नी चेलम्मा के साथ काशी चले आए। यहां जयनारायण कालेज में उन्होंने प्रवेश लिया और पढ़ाई की।
काशी आने के बाद यहां के वातावरण में उनमें राष्ट्रवाद, अध्यात्म और हिंदू जीवन दर्शन के प्रति आस्था और प्रगाढ़ हुई। राष्ट्रीय एकता के प्रबल पक्षधर महाकवि भारती 1900 तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में पूरी तरह से जुड़ चुके थे। वह कांग्रेस के गरम दल के काफी निकट थे।
1908 में सुब्रह्मण्य भारती पुडुचेरी चले गए। वहां से कविताओं और गद्य के माध्यम से उन्होंने अपनी बात कहना जारी रखा। साप्ताहिक इंडिया के जरिए वह देश की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया तो सामाजिक समरसता के लिए जातीय भेदभाव को समाप्त करने और राष्ट्रीय जीवन में नारी शक्ति की पहचान के लिए लिखकर लोगों को जागरूक करते रहे। एक कविता में उन्होंने ‘भारत का जाप करो’ का आह्वान किया है।

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