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    संगीत प्रेमियों को विभिन्न रागों का परिचय कराने वाले ध्रुपद गायक तानसेन की अनसुनी दास्‍तान

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Mon, 25 Apr 2022 05:09 PM (IST)

    भारत के संगीत जगत में तानसेन से बड़ा अब तक कोई भी गायक नहीं हुआ है। संगीत प्रेमियों को विभिन्न रागों का परिचय कराने वाले ध्रुपद गायक तानसेन की अनसुनी ...और पढ़ें

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    भारत के चर्चित ध्रुपद गायक तानसेन की अनसुनी दास्‍तान।

    यतीन्द्र मिश्र अयोध्या, उत्तर प्रदेश : हिंदुस्तानी संगीत की दुनिया का एक अद्वितीय नाम, जिसके बारे में यह किंवदन्ती मशहूर है कि संगीत में तानसेन से बड़ा अब तक कोई गायक नहीं हुआ। इतिहासकारों ने उनका जीवनकाल 1506 ई. से 1589 ई. तक माना है। हालांकि इसमें कुछ और मत भी हो सकते हैं। 'तानसेन' मुगल बादशाह अकबर के नौ रत्नों में से एक हैं, जिन्हें कई सांगीतिक उपाधियों से अभिहित किया गया, इसमें 'कण्ठाभरण वाणीविलास' प्रमुख है।

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    ऐसी मान्यता है कि तानसेन ने संगीत की शिक्षा पुष्टिमार्गी परंपरा के स्वामी हरिदास से प्राप्त की थी। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर एक उल्लेख काजी मेराज धौलपुरी के कथन से मिलता है, जिसमें उन्होंने यह कहा कि 'ग्वालियर के सम्राट विक्रमाजीत सिंह तोमर ने ही इनको 'तानसेन' की उपाधि प्रदान की थी।' इस कथन के पुष्टि के लिए उन्होंने फजल अली शाह कृत 'कुल्लियात ग्वालियर' और 'मुन्तखवुत्तवारीख' जैसे ग्रंथों का उल्लेख किया है। धौलपुरी के ही अनुसार, अकबर के अलावा तानसेन दौलत खां का भी आश्रित रहा था। मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी के अनुसार 'तानसेन इब्राहिम अली आदिल शाह 'अदली' को गुरुवत समझता था।'

    कहा जाता है कि तानसेन ने ही तोड़ी ठाट में गायी जाने वाली 'मियां की तोड़ी' राग का आविष्कार किया था। उत्तर भारतीय मुस्लिम गायक 'तोड़ी' को ही 'मियां की तोड़ी' कहते हैं। यह बहुत संभव है कि तानसेन ही इस राग को पहली बार प्रचलन में लाए हों।

    साथ ही यह किंवदन्ती भी संगीत-इतिहास में प्रमुखता से मौजूद रही है कि उन्होंने 'दीपक राग' का निर्माण किया था। बाद में इस राग की ऊष्मा से प्रकृति को निजात दिलाने के लिए 'मेघ राग' की भी सर्जना की, जिसे उन्होंने पहले ही अपनी दोनों पुत्रियों ताना और रीरी को सिखा दिया था। तानसेन के दीपक राग गाने के कारण बुरी तरह शरीर का ताप बढ़ जाने पर ताना और रीरी ने ही 'मेघ राग' गाकर वर्षा करायी थी, जिसके चलते तानसेन को जीवन-दान मिल सका था।

    तानसेन मूलत: ध्रुपद गायक थे और उन्होंने कई धु्रव-पदों की रचना की थी। ऐसी भी मान्यता है कि अपने समय के श्रेष्ठ धु्रपद गायक के रूप में मान्य तानसेन के समकालीन बैजू बावरा, बख्शू नायक और गोपाल नायक भी ध्रुपद गायिकी के श्रेष्ठ कलावन्त थे। सम्राट जहांगीर ने अपनी आत्मकथा 'जहांगीरनामा' में इस बात का उल्लेख किया है कि कलावन्त तानसेन अद्वितीय था। अबुल फजल भी तानसेन के संगीत की अत्यधिक प्रशंसा करते हैं। अब तक तानसेन के कुल 310 पद प्राप्त किए जा सके हैं, जिनमें से अधिकांश ध्रुपद हैं।

    यह सारे पद मुख्यत: राग मेघ, बसन्त, भैरवी, सोरठ, तोड़ी, गौड़ मल्हार, भैरव, बड़हंस सारंग, गौरी, देसकार, यमन कल्याण, बिहाग, अड़ाना, मालकौंस और पूरिया धनाश्री में मिलते हैं। ज्यादातर बन्दिशें ताल-चैताल, सूलफाख्ता, झपताल, दादरा या एकताल आदि में बांधी गयी हैं। यह अवश्य ही कहा जा सकता है कि तानसेन संगीत के इतिहास में सूर्य की तरह प्रकाशमान और अमर हैं। पार्श्‍वगायिका लता मंगेशकर की यह हसरत रही कि यदि वे काल का पहिया घुमाकर बीते दौर में जा पातीं तो एक बार तानसेन को गाते हुए जरूर सुनतीं, क्योंकि आवाज के संसार में उनसे बड़ा कोई मानक या संगे-मील मौजूद ही नहीं है।