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    टाइप 5 डायबिटीज कुपोषण से जुड़ी नई चुनौती, पैंक्रियाज की कार्यक्षमता में कमी से होती यह बीमारी

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 06:47 PM (IST)

    वाराणसी में टाइप 5 डायबिटीज एक गंभीर चुनौती बन रही है खासकर किशोरों और युवाओं में कुपोषण के कारण। अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन ने इसे एक नई श्रेणी के रूप में मान्यता दी है। भारत में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और टाइप 5 जो कुपोषण से जुड़ा है एक गंभीर समस्या है।

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    इसके निदान और उपचार के लिए पोषण सुधार और सावधानीपूर्वक इंसुलिन थेरेपी आवश्यक है।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। डायबिटीज वैश्विक महामारी का केंद्र बन चुका है, जहां 21.2 करोड़ लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं, जो विश्व के 26 प्रतिशत डायबिटीज रोगियों का हिस्सा है। अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन (आइडीएफ) ने 2025 में टाइप-5 डायबिटीज को एक नई श्रेणी के रूप में मान्यता दी है।

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    यह कुपोषण से जुड़ा है और खासकर भारत जैसे विकासशील देशों में किशोरों व युवाओं को प्रभावित कर रहा है। वाराणसी में शहरीकरण और ग्रामीण कुपोषण ने इस नए प्रकार को गंभीर चुनौती बना दिया है। यह जानकारी मंडलीय चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डा. बृजेश कुमार ने दी।

    उन्होंने यह भी बताया कि भारत में डायबिटीज की व्यापकता 2009 के 7.1 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 10.5 प्रतिशत हो गई है, जो 8.98 करोड़ लोगों को प्रभावित कर रही है। चिंताजनक रूप से 57 प्रतिशत मामले (4.39 करोड़) का निदान नहीं हो पा रहा है। टाइप-5 डायबिटीज, जो वैश्विक स्तर पर 2-2.5 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है। भारत में कुपोषित आबादी, विशेषकर कम बीएमआइ (<18.5 kg/m²) वाले युवाओं में तेजी से उभर रहा है। यह बीमारी कुपोषण के कारण पैनक्रियास की कार्यक्षमता में कमी से होती है, जिसमें इंसुलिन उत्पादन बेहद कम हो जाता है।

    लक्षण और निदान

    टाइप 5 डायबिटीज में प्यास, बार-बार पेशाब, थकान और वजन घटना जैसे लक्षण दिखते हैं, लेकिन यह 30 वर्ष से कम उम्र, कम बीएमआइ और बिना कीटोसिस के होता है। निदान के लिए ग्लूकोज टेस्ट, सी-पेप्टाइड स्तर और आटोइम्यून मार्कर (जीएडी, आइए-2) की जांच जरूरी है।

    उपचार और रोकथाम

    टाइप-5 का उपचार पोषण सुधार पर केंद्रित है, जिसमें उच्च प्रोटीन आहार, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की पूर्ति और सावधानीपूर्वक इंसुलिन थेरेपी शामिल है। हाइपोग्लाइसीमिया से बचाव महत्वपूर्ण है। बचपन में पोषण सुधार, गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम इसकी रोकथाम के लिए जरूरी हैं।

    टाइप 5 डायबिटीज की अनोखी चुनौती

    टाइप-5 डायबिटीज कुपोषण से उत्पन्न होने वाला एक नया प्रकार है, जो टाइप-1 (आटोइम्यून) और टाइप-2 (इंसुलिन प्रतिरोध) से अलग है। यह कम बीएमआइ, युवा उम्र और कुपोषण के इतिहास से पहचाना जाता है। पैनक्रियास की संरचना सामान्य होती है, लेकिन कार्यक्षमता कमजोर होती है। उपचार में पोषण सुधार, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और कम खुराक की इंसुलिन थेरेपी शामिल है। ग्रामीण भारत में कुपोषण के कारण यह एक गंभीर समस्या है।

    सुझाव : विशेषज्ञ ग्रामीण क्षेत्रों में स्क्रीनिंग, पोषण कार्यक्रम और टाइप-5 के लिए विशेष उपचार दिशानिर्देशों की सलाह देते हैं। वाराणसी में स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत करना जरूरी है।

    निष्कर्ष : वाराणसी सहित भारत में डायबिटीज, विशेषकर टाइप-5 एक गंभीर स्वास्थ्य संकट है। कुपोषण और डायबिटीज के बीच संबंध को समझकर, स्क्रीनिंग बढ़ाकर और पोषण-केंद्रित हस्तक्षेप लागू करके इस महामारी पर काबू पाया जा सकता है। सामाजिक-आर्थिक सुधार और जागरूकता इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम होंगे।