'त्रिजटा' को काशी में मिला एक दिन की देवी का मान, आज भी होती है इस दिन विशेष पूजा
वाराणसी में त्रिजटा को एक दिन की देवी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि लंका में अशोक वाटिका में त्रिजटा ने माता सीता को रावण से बचाया था, जिसके कारण काशी में उन्हें विशेष सम्मान दिया जाता है। आज भी एक विशेष दिन पर उनकी विशेष पूजा की जाती है, जहाँ भक्त उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। त्रिजटा की कहानी साहस और करुणा का प्रतीक है।

धर्म नगरी काशी में राक्षसी त्रिजटा की पूजा का यह विधान त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है। - फोटो सोशल मीडिया
जागरण संवाददाता, वाराणसी। कंकर कंकर शंकर की मान्यता वाली काशी में त्रिजटा को भी देवी बना दिया। लंका से काशी का संबंध यह पौराणिक कथा आज भी कहती है।
भगवान शंकर के इस पवित्र धाम में सभी देवी-देवताओं का वास है, और यहां उनके मंदिर भी स्थित हैं। इन मंदिरों के बीच बाबा विश्वनाथ के दरबार के निकट त्रिजटा नाम की राक्षसी का मंदिर भी है। इस मंदिर में साल में केवल एक दिन भक्तों की भीड़ होती है। धर्म नगरी काशी में राक्षसी त्रिजटा की पूजा का यह विधान त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस पूरे महीने में भक्तगण भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए काशी में गंगा स्नान करते हैं। एक महीने तक स्नान करने के बाद, कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन त्रिजटा राक्षसी के दर्शन और पूजन के बाद ही भक्तों की तपस्या का फल मिलता है।
कहा जाता है कि जो भी कार्तिक पूर्णिमा के बाद त्रिजटा की पूजा काशी में करता है, त्रिजटा उनकी सदैव रक्षा करती हैं। यही कारण है कि इस दिन भक्तों की भारी भीड़ होती है और वे विशेष रूप से मूली-बैंगन का भोग लगाकर उनकी पूजा करते हैं।
त्रेतायुग में, जब रावण ने माता सीता का हरण किया और उन्हें अशोक वाटिका में रखा, तब राक्षसी त्रिजटा को उनकी देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी। अशोक वाटिका में जब भी माता सीता पर कोई संकट आता था, त्रिजटा ही उनकी रक्षा करती थीं। जब भगवान राम ने रावण को पराजित कर माता सीता को वापस लाने का निश्चय किया, तब त्रिजटा ने उनसे आग्रह किया कि उन्हें अपने साथ ले जाएं। इस पर माता सीता ने उन्हें वरदान दिया कि काशी में एक दिन की देवी के रूप में उनकी पूजा की जाएगी, और जो भी ऐसा करेगा, त्रिजटा उसकी हर संकट से रक्षा करेंगी। इस बात का उल्लेख काशी खंड में भी किया गया है।
हालांकि माता त्रिजटा रावण की सेविका थीं, लेकिन उन्होंने भगवान श्रीराम की विजय में विश्वास रखा। उन्होंने अपने और माता सीता के बीच के संबंधों को गुप्त रखा, किंतु हर पल माता सीता को महत्वपूर्ण जानकारी देती रहीं, जैसे लंका का दहन होना, समुद्र पर सेतु बनना, राम-लक्ष्मण का सुरक्षित होना आदि कथाएं हैं। त्रिजटा द्वारा समय-समय पर माता सीता को जानकारी देने से उनकी हिम्मत बनी रहती थी।
त्रिजटा राक्षसी का मंदिर काशी में न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है। भक्तगण इस दिन विशेष रूप से एकत्रित होते हैं, और त्रिजटा की पूजा कर अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह पूजा न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह त्रेतायुग की गाथाओं को भी जीवित रखती है।
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