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    आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति नई उम्मीद की किरण, नेफ्रोटिक सिंड्रोम से मिलेगी राहत

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Wed, 05 Dec 2018 03:45 PM (IST)

    आकाश के पिता पुराने दिनों को याद करके भावुक होकर बताते हैं कि 10 सालों से आकाश को चेहरे, पैरों व पेट में सूजन संग पेशाब में प्रोटीन जाने की परेशानी है ...और पढ़ें

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    आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति नई उम्मीद की किरण, नेफ्रोटिक सिंड्रोम से मिलेगी राहत

    वाराणसी, जेएनएन। नेफ्रोटिक सिंड्रोम नामक बीमारी से पीडि़त 13 वर्षीय आकाश वर्मा के जीवन में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति नई उम्मीद की किरण लेकर आया। आकाश के पिता बबलू वर्मा पुराने दिनों को याद करके भावुक हो उठते हैं और बताते हैं कि पिछले लगभग 10 सालों से आकाश को चेहरे, पैरों और पेट में सूजन के साथ पेशाब में प्रोटीन जाने की परेशानी है। अब सूजन कम हो रही है और चेहरे का आकार भी सामान्य हो रहा है। 

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    आकाश जब तीन वर्ष का था तबसे वह परेशान हैं। शुरुआत में पांच साल तक वाराणसी के एक निजी चिकित्सालय में इलाज कराया। उसके बाद वहां के डाक्टरों ने बेटे को एम्स नई दिल्ली रेफर कर दिया। यहां पर पता चला कि बेटे को नेफ्रोटिक सिंड्रोम है। एक वर्ष तक यहां का इलाज चला। संतोषजनक परिणाम नहीं मिला। उसके बाद दो वर्ष तक बीएचयू में इलाज चला। मार्च 2018 को उसके एक रिश्तेदार ने उनसे कहा कि वह एक बार चौकाघाट स्थित राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय में बेटे को दिखा लें। काय एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य अजय कुमार मार्च से आकाश का इलाज कर रहे हैं। आकाश ने खुद मंगलवार को बताया कि अब वह बेहतर महसूस कर रहा है। खाना भी ठीक से खा ले रहा हूं। 

    क्या है नेफ्रोटिक सिंड्रोम : किडनी शरीर में चलनी का काम करती है, इसके द्वारा शरीर के अनावश्यक उत्सर्जी पदार्थ व अतिरिक्त पानी पेशाब द्वारा बाहर निकल जाता है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम में चलनी में छेद बड़े हो जाने के कारण अतिरिक्त पानी और उत्सर्जी पदार्थों के साथ-साथ शरीर के लिए आवश्यक प्रोटीन भी पेशाब के साथ निकल जाता है। 

    मुख्य लक्षण : आंखों के नीचे व चेहरे पर सूजन दिखाई देती है। रोग के बढऩे पर पेट फूल जाता है और पेशाब कम होने लगता है व वजन बड़ जाता है।

    आयुर्वेद में इलाज : जब यह पता चल जाए कि मरीज नेफ्रोटिक सिंड्रोम बीमारी से पीडि़त है तो उसे किसी प्रशिक्षित वैद्य की निगरानी में गिलोय, पुनर्नवा व तारकेश्वर का रस पीना चाहिए। साथ ही शिलाजतवादि वटी, अमृता सत्व और गोदंती भस्म का सेवन करना चाहिए।