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    संपूर्ण क्रांति : जेपी ने जाति-भेद मिटाने को 1974 में चलाया था जनेऊ तोड़ो आंदोलन

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Sat, 05 Jun 2021 01:29 PM (IST)

    बलिया में जेपी के गांव सिताब दियरा आज भी संपूर्ण क्रांति आंदोलन की तमाम यादों को अपने अंदर समेटे खड़ा है। तब जेपी के साथ लगभग 10 हजार लोगों ने अपना जनेऊ तोड़ यह संकल्प लिया था कि वे जाति प्रथा को नहीं मानेंगे।

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    जेपी के साथ लगभग 10 हजार लोगों ने अपना जनेऊ तोड़ यह संकल्प लिया था

    बलिया, जेएनएन। जेपी के गांव सिताब दियरा आज भी संपूर्ण क्रांति आंदोलन की तमाम यादों को अपने अंदर समेटे खड़ा है। जब यहां संपूर्ण क्रांति आंदोलन की कड़ी में जेपी ने जाति भेद मिटाने के लिए छह सितंबर 1974 को जनेऊ तोड़ो आंदोलन शुरू किया था। गांव में स्थित पीपल के पेड़ के नीचे विशाल सभा हुई थी। तब जेपी के साथ लगभग 10 हजार लोगों ने अपना जनेऊ तोड़ यह संकल्प लिया था कि वे जाति प्रथा को नहीं मानेंगे। इस आंदोलन में स्वयं युवा तुर्क चंद्रशेखर सभा का संचालन कर रहे थे। तब के माहौल पर प्रकाश डालते हुए सिताब दियरा निवासी अजब नारायण सिंह कहते हैं कि उस वक्त का माहौल ही कुछ और था। गांव-जवार के लोगों के मन में भी देश भक्ति की भावना भरी रहती थी। सिताब दियारा के चैन छपरा में विशाल सभा हुई थी। सिताब दियारा में छात्र संघर्ष समिति का गठन हुआ था। बहुत से लोग पैदल ही जेपी के आंदोलन में भाग लेने पटना गए थे। नजदीकी स्टेशन बकुल्हां में पटरी उखाड़ने का काम भी जेपी के गांव के लोगों ने किया था। इस घटना के चंद्रशेखर सिंह भी गवाह हैं। वे कहते हैं कि उस समय जाति का भेदभाव मिटाने के लिये व्यापक संघर्ष हुआ था। सब लोग आगे आए थे। एक लहर चली थी। अगर उसे संभाला गया होता तो आज स्थिति बदल गई होती।

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    देशव्यापी आंदोलन की अंतिम कड़ी रही जेपी की ''संपूर्ण क्रांति''

    आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन की बरसी है। फिर देश में जेपी के उस आंदोलन की चर्चा होगी। सभी मानते हैं ंकि जेपी सेवा के माध्यम से समाज में बुनियादी बदलाव लाना चाहते थे। उन्होंने कई अभिनव प्रयोग किये। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, चंबल के बागियों के बीच सत्य अहिंसा का अलख, भूदान, ग्राम दान व उनके सक्रिय जिंदगी के महत्वपूर्ण बिंदु प्रमुख हैं। 1974 का संपूर्ण क्रांति आंदोलन उनके प्रयोगों की अंतिम कड़ी बनी। तब देश के जनतंत्र पर पनपी तानाशाही के विरोध में 75 वर्षीय बुर्जुग को खड़ा होना पड़ा। 1977 में सत्ता परिवर्तन भी हुआ। कहने मात्र की उनके मर्जी की सरकार बनी। जेपी इंतजार करते रहे कि उनके अनुयायी संपूर्ण क्रांति के सपनों को साकार करेंगे लेकिन नए शासकों ने उनकी जिंदगी में ही वही खेल शुरू कर दिया, जिसके विरूद्ध 1974 में आंदोलन चला था। अब तो जेपी कुछ करने की भी स्थिति में नहीं थे। वे पूरी तरह टूट चुके थे। वे आठ अक्टूबर 1979 को इस लोक से ही विदा हो गए और भी अपने हिसाब से आगे बढ़ने लगा।