हरि भईया की पुस्तक 'आईना' सहित 'विश्वनाथ वंदन' व 'बनारस क ठाट अउर गंगा क घाट' पुस्तकों का लोकार्पण
काशी साहित्य की अत्यन्त उर्वर भूमि रही है। यहां के साहित्यकारों ने लोक से उर्जा ग्रहणकर साहित्य को अलग रूप में स्थापित किया है। यहां लोक और शास्त्र ए ...और पढ़ें

वाराणसी, जेएनएन। काशी साहित्य की अत्यन्त उर्वर भूमि रही है। यहां के साहित्यकारों ने लोक से उर्जा ग्रहणकर साहित्य को अलग रूप में स्थापित किया है। यहां लोक और शास्त्र एक दूसरे के विपरित न होकर सहयोगी है। प. हरिराम द्विवेदी आज इसके सबसे अच्छे उदाहरण है। उनकी कविताओं में लोक जीवन की छवि चतुर्दिक दिखाई देती है।

पिल्ग्रिम्स पुस्तक केंद्र (दुर्गाकुंड) में शुक्रवार को प. हरिराम द्विवेदी के 85वें जन्मदिन एवं उनके काव्य संग्रह 'आईना' के लोकार्पण के अवसर पर ये बातें पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने कही। इस मौके पर राममोहन अग्रवाल द्वारा लिखित 'विश्वनाथ वंदन' व 'बनारस क ठाट अउर गंगा क घाट' नामक पुस्तक का भी लोकार्पण हुआ। डा. विजय शंकर शुक्ल ने गीतों को उपनिषद के छंदों की की तरह प्रभावीकारी बताते हुए कहा कि आप सच्चे अर्थों में लोक कवि है। सुप्रसिद्ध लोक गायिका सुचारिता गुप्ता ने कहा कि पंडित जी के गीतों को गाकर ही हमने इतनी प्रसिद्धि पायी है।

हरि भईया ने सस्वर अपने गीतों का पाठ किया वही सुचरिता गुप्ता ने अपने गीतों को सुनाया। राधामोहन अग्रवाल ने अपनी लोकाॢपत पुस्तक के कुछ गीतों का पाठ किया। इस अवसर पर प्रो. अन्नपूर्णा शुक्ला, विधि नागर, डा. हरेंद्र राय,डा. शशिकांत दीक्षित, प्रो. पीएन ने अपने विचार व्यक्त किए। स्वागत रामानंद तिवारी, संयोजन संयुक्त रूप से अशोक आनंद व प. कौस्तुभ इस्सर, संचालन डा. रामसुधार सिंह व धन्यवाद ज्ञापन डा. मेजर अरविन्द कुमार सिंह ने किया।

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