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    भारतीयता का काव्य- भक्तिकाव्य : भक्ति आंदोलन मध्यकालीन अंधकार का सांस्कृतिक प्रतिरोध और प्रतिकार

    भारतीयता के सूत्रों की पहचान के जरिए भारतीय नजरिए से भक्ति आंदोलन मध्यकालीन अंधकार का सांस्कृतिक प्रतिरोध और प्रतिकार सामने आता है। पुस्तक - भारतीयता का काव्य- भक्तिकाव्य के जरिए लेखक रसाल सिंह ने इसे बेहतर तरीके से सामने रखा है।

    By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Sun, 17 Jul 2022 08:44 AM (IST)
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    भक्ति आंदोलन के माध्यम से मध्यकाल में नई ऊर्जा के साथ भारतीयता का संचार किया गया।

    नई दिल्‍ली, कन्हैया झा। भक्ति आंदोलन मध्यकालीन अंधकार का सांस्कृतिक प्रतिरोध और प्रतिकार है। विदेशी आक्रांताओं द्वारा भारतीय संस्कृति और उसके मूल्यों को ध्वस्त करने का निरंतर प्रयास किया गया। ऐसे में भक्ति आंदोलन के माध्यम से मध्यकाल में नई ऊर्जा के साथ भारतीयता का संचार किया गया।

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    कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, नानकदेव, रैदास, शंकरदेव, माधवदेव, रसखान, नामदेव, चैतन्य महाप्रभु, जयदेव आदि मध्यकालीन सांस्कृतिक क्रांति के सूत्रधार हैं। भक्ति आंदोलन भारत की सांस्कृतिक एकात्मता को भी शक्ति प्रदान करता है। इस समय ऐसे अनेक काव्य-ग्रंथों की रचना हुई, जिनमें अखंड भारत की एकता परिलक्षित होती है। इसी एकता और भारतीयता के सूत्रों की पहचान और पड़ताल का परिणाम है यह पुस्तक।

    पुस्तक के लेखक प्रो. रसाल सिंह ने भक्तिकाव्य की समग्रता में व्याख्या करने का प्रयास किया है। साथ ही उस दौर के और कुछ बाद के तमाम लेखकों, विद्वानों आदि के दृष्टिकोण से उसे जानने का प्रयास भी किया है। भक्ति आंदोलन के समय को वर्तमान से जोडऩे का प्रयास करते हुए लेखक लिखते हैं कि हिंदी प्रदेशों में भक्ति आंदोलन अपनी समस्त ऊर्जा और सर्वाधिक विविधता के साथ प्रकट होता है। यहां कृष्णभक्ति के विविध स्वर मिलते हैं, तो अष्टछाप के रूप में कृष्णभक्ति का एक संगठित भक्ति संप्रदाय भी मिलता है। केवल वृंदावन में ही कृष्णभक्ति के कई संप्रदाय भक्ति आंदोलन को अनोखी छटा प्रदान करते हैं। रामभक्ति के क्षेत्र में भी यह हिंदी प्रदेश पूरे देश का पथप्रदर्शक बना।

    तुलसीदास ने न केवल रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना की, बल्कि रामकथा और रामभक्ति के प्रचार-प्रसार में भी निर्णायक भूमिका निभाई। आज के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा से लेकर राजस्थान तक हिंदी पट्टी का भक्ति आंदोलन फैला हुआ दिखाई देता है। अपने मूल प्रवर्तकों से प्रेरित होकर स्थानीय रूप से प्रचलित भक्तिमार्ग के तत्वों को मिश्रित कर भक्ति के अनेक संप्रदाय और पंथ इस युग में विकसित हुए हैं, जिनका प्रभाव संपूर्ण देशकाल पर दिखाई देता है। इन तथ्यों को तत्कालीन और समकालीन संदर्भों में जानने-समझने के लिए यह पुस्तक पठनीय है।

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    पुस्तक : भारतीयता का काव्य- भक्तिकाव्य

    लेखक : रसाल सिंह

    प्रकाशक : वाणी प्रकाशन

    मूल्य : 450 रुपये