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    बनारस में कीचड़ से होकर जाता है ‘पद्मश्री’ के घर का रास्ता, क्‍या आप इन गल‍ियों में जाना चाहेंगे?

    Updated: Tue, 19 Aug 2025 11:46 AM (IST)

    वाराणसी के भदैनी इलाके में पद्मश्री पंडित शिवनाथ मिश्र के घर तक जाने वाले रास्ते की हालत ख़राब है। कीचड़ कूड़ा और सीवर के पानी से भरी इस सड़क से गुजरना मुश्किल है। पंडित जी के घर संगीत सीखने देश-विदेश से शिष्य आते हैं पर रास्ते की दुर्दशा काशी की छवि को धूमिल करती है।

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    पद्म गली के स्थानीय लोगों का कहना है कि बारिश में स्थिति और भी बदतर हो जाती है।

    प्रमोद यादव, जागरण वाराणसी। कहते हैं कमल कीचड़ में खिलता है, मगर संगीत कला की नगरी में ‘पद्मश्री’ के घर की राह में कीचड़, कूड़ा, सीवर का मल-जल और मच्छर-मक्खी सब कुछ मिलता है। यह भदैनी से रवींद्रपुरी को जोड़ने वाले रास्ते में नजर आता है जो पद्मश्री से सम्मानित ख्यात सितार वादक पं. शिवनाथ मिश्र के घर की ओर जाता है।

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    पंडित जी के घर सितार के तारों से सुर-राग में पगी झंकार निकालने की कला सीखने देश-विदेश से शिष्य आते हैं और काशी से ‘यह छवि’ लेकर जाते हैं। पानी बरसने पर यहां तस्वीर किसी टापू सी हो जाती है जो इस ओर से गुजरने वाले का दिल दहलाती है। पं. शिवनाथ मिश्र का घर उस भदैनी के पास है जिसने वीरांगना लक्ष्मीबाई की स्मृतियां सहेज रखी हैं तो पास में ही गंगा तट पर गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की चौपाइयों को पूर्णता दी।

    भदैनी की ओर से उनकी गली दूर से तो संरचनात्मक रूप से ठीक नजर आती है, लेकिन उसमें घुसते ही गोबर से सनी पत्थर और दुर्गंध से मानो सांस ही अटक जाती है। रही सही कसर दिन हो या रात मच्छर-मक्खी के झुंड से पूरी हो जाती है। इस गली में आवारा कुत्तों के झुंड से भी सामना होता है जिनसे बचने में कोई भी ठंड में भी पसीने-पसीने होता है।

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    उनसे बच भी गए तो उनके मल और उसकी दुर्गंध से बचना आसान नहीं। यह रास्ता पाश इलाका रवींद्रपुरी के लेन नंबर 14 से जोड़ता है। उससे पहले टूटी-फूटी सीवर लाइन के चलते गली के पत्थर धसक चुके हैं। इसमें लगभग बारहों महीने मलजल ही भरा होता है। स्ट्रीट लाइट न होने से कहीं रात में इस ओर आए तो निकल भी पाएंगे या नहीं, यह स्पष्ट कहा नहीं जा सकता। यह रास्ता बीच में बाएं मुड़ता है, साधुबेला आश्रम और सोनभद्र कुंड से जुड़ता है।

    ठुमरी अंग का सितार बजाते हैं पंडित जी

    पंडित जी सात दशक से पूरी ठसक से सितार बजा रहे हैं। वह सितार पर ठुमरी अंग बजाते हैं। अब तक दसियों हजार शिष्यों को यह हुनर सिखा चुके हैं। उनके पुत्र-शिष्य पं. देवब्रत मिश्र भी उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

    सितारवादन के क्षेत्र काशी में पंडित रविशंकर के बाद पंडित शिवनाथ मिश्र को वर्ष 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। बनारस घराने के सितार वादक पंडित शिवनाथ मिश्र का जन्म 12 अक्टूबर 1943 को हुआ। उन्होंने आठ वर्ष की अवस्था में भारतीय शास्त्रीय संगीत (गायन एवं सितार) की शिक्षा अपने चाचा ठुमरी सम्राट स्व. पंडित महादेव प्रसाद मिश्र से प्राप्त की।

    संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में संगीत विभागाध्यक्ष रह चुके पं. शिवनाथ मिश्र ने बताया कि गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वाह कर रहा हूं। पूरी दुनिया से लोग आकर संगीत की शिक्षा लेते हैं। संगीत की शिक्षा ही नहीं भारतीय संस्कृति भी सीखते हैं। उनके पुत्र पं. देवब्रत बताते हैं कि देश-दुनिया के युवाओं में संगीत के संस्कार पिरोने का प्रयास है, लेकिन आसपास का वातावरण पूरे प्रयास पर पानी फेरता दिख रहा।

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