प्रज्ञापारमिता की शिक्षा को अपने जीवन मे उतारने की जरूरत : प्रो. एस. रिनपोछे
वाराणसी में, निर्वासित तिब्बती सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री प्रो. एस. रिनपोछे ने सारनाथ में प्रज्ञापारमिता पर आयोजित एक संगोष्ठी में कहा कि प्रज्ञापारमिता की शिक्षा को जीवन में उतारना चाहिए। उन्होंने अभिसमया अलंकार ग्रंथ के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि यह ग्रंथ बुद्धत्व प्राप्ति के मार्ग को दर्शाता है। उन्होंने बौद्ध दर्शन में गुरु के वचनों को चुनौती देने की परंपरा का भी उल्लेख किया।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। निर्वासित तिब्बती सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री प्रो. एस रिनपोछे ने कहा कि प्रज्ञापारमिता की शिक्षा को अपने जीवन मे उतारने का प्रयास करना चाहिए। जब हम समझ जाए कि जीवन परिवर्तन शील है तो हम किसी प्रकार के नकारात्मक विचारों को धारण नही करेंगे।
उक्त बातें सारनाथ स्थित केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान में परम पावन दलाई लामा के 90वें जन्म दिवस को लेकर करुणा मय वर्ष के उपलक्ष्य पर प्रज्ञापारमिता विषय पर पांच दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शनिवार को उदघाटन के दौरान मुख्य अतिथि पद से प्रो. एस रिनपोछे ने कही।
उन्होंने कहा कि प्रज्ञापारमिता को समझने के लिए महत्वपूर्ण ग्रन्थ अभिसमया अलंकार को पढ़ने की जरूरत है। ग्रन्थ में संसार से लेकर बुद्धत्व की प्राप्ति, उपाय,मार्ग व फल के विषय मे लिखा है। जिसे पढ़ने से मनुष्य का जीवन सफल होगा।
भगवान बुद्ध ने अपने स्वयं के विचारों को भी परीक्षण करने को कहा है। उन्होंने कहा कि प्रज्ञापारमिता के मूल सिद्धांत में परिवर्तन शीलता भी एक है। बौद्ध दर्शन में यह परंपरा है कि जहा पर शिष्य भी अपने गुरु के वचनों को चुनोती देते है।
प्रज्ञापारमिता का अभिप्राय है कि एक ऐसा ज्ञान की प्राप्ति जिसमे सभी प्रकार के भरम का निवारण होता है। प्रज्ञापारमिता महायान परम्परा का मूलभूत शिक्षा है।जो शून्यता की अनुभूति का मार्ग प्रशस्त करता है।
अध्यक्षता कुलपति प्रो वांगचुक दोरजे नेगी ने कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म वर्तमान में संपूर्ण विश्व मे फैल रहा है। परम पावन दलाई लामा के भारत आने के बाद से बौद्ध धर्म के अनुयायियों को एक नई ऊर्जा मिली है। इस मौके पर कुलसचिव डॉ सुनीता चंन्द्रा ने विश्वविद्यालय के शैक्षणिक क्षेत्रो की जानकारी दी। स्वागत खेम्बो सांगा तेनजिंग ने किया।
संचालन डॉ तेनजिंग नीमा नेगी व धन्यवाद ज्ञापन फुसोक नीमा ने किया। इस दौरान भिक्षु डॉ खेम्पो डकपा संगेय, भिक्षु डॉ खेम्पो सग्गा तेनजिंग, डॉ दोरजे दमदुल सहित कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश से आये विद्वानों ने अपने विचार रखे।

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