कार्तिक मास में पूजन का विधान आपको बनाएगा धनवान, जानें मास के अनिवार्य नियम और मान्यताएं
इस माह में भगवान विष्णु एवं भगवती लक्ष्मी की पूजा अर्चना का खास महत्व है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन देवता जागृत होते हैं। कार्तिक मास में स्नान-दान-अर्चना का विशेष महत्व माना गया है। कार्तिक मास को अत्यंत पावन मास की उपाधि दी गई है।
वाराणसी, जेएनएन। कार्तिक मास हिंदू सनातन धर्म में धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास को द्वादश मास में सर्वश्रेष्ठ मास माना गया है। इस माह में भगवान विष्णु एवं भगवती लक्ष्मी की पूजा अर्चना का खास महत्व है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन देवता जागृत होते हैं। कार्तिक मास में स्नान-दान-अर्चना का विशेष महत्व माना गया है। कार्तिक मास को अत्यंत पावन मास की उपाधि दी गई है। धर्म उत्सव की श्रंखला इसी माह से प्रारंभ होती है। इस बार कार्तिक माह के धार्मिक यम नियम अमृत संयम 31 अक्टूबर शनिवार से प्रारंभ हो जाएंगे और कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा 30 नवंबर सोमवार तक जारी रहेंगे। ज्योतिष विमल जैन ने जागरण को बताया कि शरद पूर्णिमा से ही भगवती लक्ष्मी की महिमा में उनकी आराधना के साथ दीपदान एवं धार्मिक अनुष्ठान प्रारंभ हो जाते हैं।
पूजन की प्रक्रिया
स्कंद पुराण के अनुसार लक्ष्मी प्रदाता सद्बुद्धि दायक एवं आरोग्य प्रदायक माना गया है। वर्ष के द्वादश मास में कार्तिक मास को ही धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। कार्तिक में भगवान विष्णु और लक्ष्मी को समर्पित है। कार्तिक मास में तुलसी वृक्ष की पूजा की जाती है। इसमें यम देव को प्रसन्न करने के लिए आकाश दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। कार्तिक मास में एक माह तक आंवले के वृक्ष का पूजन करना फलदाई माना गया है। काला तिल व आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करने से समस्त पापों का शमन होता है। इस मास में नियम पूर्वक संकल्प के साथ व्रत रखकर गंगा स्नान करके दान करने से तीर्थयात्रा के समान फल की प्राप्ति मानी गई है। कार्तिक मास में स्नान दान और पुण्य करने की काफी महिमा है। इस मास में सूर्य दक्षिणायन होने लगता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस माह में स्नान ध्यान करके व्रत रखकर भगवान विष्णु का पूजन करना विशेष फलदाई रहता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार श्री कृष्ण राधा का पूजन अर्चन करने से असीम कृपा मिलती है तथा जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है। कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य नियम का पालन करना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान ध्यान के साथ कमर तक गंगा नदी में खड़े होकर पूजन करने से पुण्य मिलता है।
कार्तिक मास में पुण्य की कामना
कार्तिक मास में व्रतकर्ता व साधक को अपने परिवार के अतिरिक्त अन्य किसी दूसरे का कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। चना, मटर, उड़द, मूंग, मसूर, दाल, लौकी, गाजर और बैगन के साथ ही बासी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही लहसुन, प्याज और तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए। शरीर में तेल नहीं लगाना चाहिए। कार्तिक मास की द्वितीया, सप्तमी, नवमी, दशमी, त्रयोदशी से अमावस्या तिथि के दिन तिल व आंवले का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कार्तिक मास में स्नान व्रत करने वालों को केवल कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन ही तेल लगाना चाहिए। मास के अन्य दिनों में तेल नहीं लगाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु की महिमा में व्रत रखने पर रोगों से मुक्ति मिलती है तथा संकटों का निवारण होता है। ध्यान रखें कि फटे वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए और स्वस्थ स्वस्थ वस्त्र ही हमेशा धारण करना चाहिए।