Varanasi Seerial Blast Case संकटमोचन मंदिर और कैंट स्टेशन बम धमाके में आतंकी वलीउल्लाह को फांसी की सजा, पीड़ितों ने कहा - 'अब हुआ न्याय'
Varanasi Seerial Blast Case वाराणसी में संकटमोचन मंदिर और कैंट स्टेशन बम धमाके में आतंकी वलीउल्लाह को फांसी की सजा सोमवार की शाम चार बजे गाजियाबाद क ...और पढ़ें

वाराणसी, जागरण संवाददाता। आतंकी वलीउल्लाह को फांसी की सजा दी गई है। सात मार्च 2006 की शाम को आतंकी वारदात से कैंट रेलवे स्टेशन पद 11 और संकटमोचन मंदिर में सात लोगों की मौत हो गई थी।आखिरकार फूलपुर निवासी आतंकी वलीउल्लाह को फांसी की सजा सोमवार को दी गई है। वाराणसी में बम धमाके के दोषी वलीउल्लाह को गाजियाबाद कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। वारदात के 16 साल बाद अदालत का फैसला इस मामले में आया है। वहीं फैसला आने के बाद जागरण से बातचीत में पीड़ितों और प्रभावित लोगों के परिवारों ने अब न्याय मिलने की बात कह कर अदालत के फैसले की सराहना की है।
बनारस में शृंखलाबद्ध बम धमाका करने वाले लाशों का ढेर लगा देना चाहते थे। उन्होंने धमाके के लिए जिस तरह विस्फोटक इस्तेमाल किया था वह बेहद खतरनाक था। आतंकी लाशों का ढेर लगा देना चाहते थे। यह कहना है बनारस में हुए बम धमाकों की जांच करने वाले एक्सप्लोसिव एक्सपर्ट्स की टीम का नेतृत्व करने वाले फोरेंसिक अधिकारी का। उनका कहना है कि सात मार्च 2006 में जब संकटमोचन मंदिर व कैंट स्टेशन पर बम धमाका हुआ और दशाश्मवेध पर जिंदा बम मिला उस वक्त आगरा फोरेंसिक लैब में तैनात थे। शाम को घटना हुई तो इसकी सूचना उनको मिली और टीम के साथ जल्द से जल्द बनारस पहुंचने का निर्देश शासन से मिला। अगली सुबह वो चार लोगों की टीम के साथ ट्रेन से बनारस के लिए निकले। यहां आते-आते लगभग दोपहर हो चुका था।
सबसे पहले कैंट स्टेशन का दौरा किया गया। रामनगर स्थित फोरेंसिक लैब की टीम साथ थी। बताते हैं कि वहां के हालात देखकर हतप्रभ रह गए थे। जिस तरह जान-माल का नुकसान हुआ उससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता था कि आतंकियों की मंशा लाशों का ढेर लगा देने की थी। जहां धमाका हुआ उस यात्री हाल के कोने-कोने की जांच की गई। आरडीएक्स के सुबूत मिल रहे थे। एल्यूमिनियम के टुकड़े भी मिले जिससे पता चला कि आतंकी बम बनाने के लिए कूकर का इस्तेमाल किए हैं। कुछ प्लास्टिक के टुकड़े भी मिले जो संकेत दे रहे थे कि विस्फोट का समय तय करने के लिए टाइमर लगाया गया था। यहां से जांच के लिए काफी कुछ जमा करने के बाद टीम संकटमोचन के लिए निकल पड़ी।
मंदिर में विस्फोट वाले स्थान से लेकर पूरे परिसर की बारीकी की जांच की गई। यहां भी जो आरडीएक्स व एल्यूमीनियम के टुकड़े मिले उससे साफ जाहिर हो गया कि कैंट स्टेशन जैसा ही कुकर बम यहां भी इस्तेमाल किया गया है। उसे हाई इंटेंसिटी का बनाने के लिए अमोनियम नाइट्रेट व फ्यूल आयल का भी प्रयोग हुआ था। जिस जगह विस्फोटक रह गया था वहीं पास में बेल का पेड़ था। ब्लास्ट का फोर्स काफी हद तक उसने झेल लिया नहीं तो मृतकों की सूची और लम्बी होती। दो दिनों तक जांच के दौरान टीम ने दशाश्वमेध में जिंदा मिले विस्फोटक की जांच भी की।
जांच के लिए बेहद अहम था दशाश्वमेध पर मिला बम : आगरा से आई टीम ने दशाश्मवेध पर मिले जिंदा बम की भी जांच की। यह उनके लिए बेहद अहम था। इससे फोरेंसिक टीम को विस्फोटक की प्रकृति, उसकी मात्रा और तैयार करने के तरीका का पता चल सका। साथ ही इस तरह की जानकारी मिल पाई कि इस तरह का बम कौन सा आतंकी संगठन इस्तेमाल करता है। जांच में पता चला कि बम को तैयार करने के लिए आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। अमोनिमयम नाइट्रेट इसे और घातक बना रहा था। विस्फोटक को कूकर में ठूंस-ठूंस के भरा था। इसे प्लांट करने वाले मौके दूर निकल सकें इसलिए टाइमर का इस्तेमाल किया गया था। संकटमोचन व कैंट स्टेशन से मिले सुबूतों और दशाश्मेध में मिल बम को लेकर टीम आगरा चली गई। लैब में इनकी बारीकी से जांच हुई।
फटने के लिए विस्फोटक का टाइट होना जरूरी : एक्सप्लोसिव एक्सपर्ट बताते हैं कि बम के फटने की श्योरिटी तभी होती है जब विस्फोटक को बहुत ही टाइट तरीके से भरा जाए। इसके लिए कंटेनर उस तरह का होना चाहिए। इससे टामइर की चिंगारी पूरे विस्फोटक तक पहुंच जाती है और एक साथ विस्फोट होता है। कूकर की खासियत होती है कि उसमें रखा जाने वाला विस्फोटक बेहद टाइट हो जाता है। विस्फोट को तय समय पर करने के लिए उसमें जो टाइमर (घड़ी) इस्तेमाल किया जाता है उसमें उसमें एक ही सुई लगी होती है। साथ ही एक पिन लगा दिया जाता जिस पर सल्फर आदि जैसा ज्वलनशील पदार्थ लगाते हैं। जब सुई तय समय पर पहुंचती और पिन से टकराती है हल्की चिंगारी पैदा होती वो विस्फोटक में आग लगा देती है।
कई तरह के होते हैं विस्फोटक : आतंकी आमतौर पर टाइमर या रिमोट ब्लास्ट करते हैं। इनका इस्तेमाल दूर से किया जा सकता है। लैंडमाइन आदि में स्प्रिंग लगाया जाता है। इस पर तय वजन पड़ने पर चिंगारी पैदा होती है और विस्फोट होता है। दबाव के विस्फोटक का इस्तेमाल माइनंस आदि में किया जाता है। इसमें डेटोनेटर लगाया जाता है।
बेहद एक्सपर्ट टीम ने किया था जांच : एक्सप्लोसिव एक्सपर्ट्स की जो टीम बनारस में हुए सीरियल ब्लास्ट की जांच करने आई थी वो बेहद अनुभवी थी। देशभर में तीन सौ से ज्यादा धमाकों की जांच इस टीम ने किया था। पांच हजार से अधिक छोटे-बड़े विस्फोटकों की जांच मौके से लेकर फोरेंसिक लैब तक किया था। इस टीम ने संकटमोचन और कैंट स्टेशन पर हुए धमाके की बारीकी से जांच की। उनकी तैयार रिपोर्ट ने वलीउल्लाह को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।

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