सुमेरु पर्वत की ओर है इस मंदिर का रूख, सोने सी दमकती हैं यहां सूरज की पहली किरण
सुमेरु पर्वत की तरह ही इस मंदिर पर भी उदीयमान सूर्य की किरणें दमकती हैैं। इसे ध्यान में रखते हुए ही मंदिर का पूर्व की दिशा में निर्माण कराया गया।
वाराणसी, जेएनएन। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की लीला के लिए प्रसिद्ध रामनगर देवी आराधना स्थलों के लिए भी ख्यात है। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के यहां भव्य देवालय हैैं। इसमें रामबाग स्थित जगदम्बा भवानी का मंदिर प्रमुख है।
इतिहास
रामनगर की रामलीला के लिए स्थल शोधित हैैं। रामचरित मानस में उल्लेखित स्थलों के आधार पर ही इनका चयन किया गया। इस लिहाज से ही वर्ष 1783 में तत्कालीन काशिराज महाराज उदित नारायण सिंह ने सुमेरू मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर की दीवारों पर विभिन्न देव आकृतियों के बीच गोस्वामी तुलसीदास की छवि इसे पुष्ट करती है। मंदिर के समीप स्थित रामबाग पोखरे में ही प्रथम दिन की लीला प्रसंगानुसार क्षीर सागर की झांकी सजाई जाती है।
नामकरण
सुमेरु पर्वत की तरह ही इस मंदिर पर भी उदीयमान सूर्य की किरणें दमकती हैैं। इसे ध्यान में रखते हुए ही मंदिर का पूर्व की दिशा में निर्माण कराया गया। साथ ही इसका नाम सुमेरु मंदिर रखा गया।
वास्तुकला
विशाल पोखरे के किनारे विस्तृत बाग स्थित पूर्वाभिमुख देवी मंदिर दक्षिण भारत के किसी प्रांत में पहुंच जाने का अहसास कराता है। इसका निर्माण शैली नागर और यह खजुराहो की स्थापत्य कला से मिलती जुलती है।
विशिष्टता
मंदिर के दरवाजे के ऊपर व शिखर तक विभिन्न देवी-देवताओं, साधु-संन्यासियों की आकृतियां उकेरी गई हैैं। वाद्य यंत्र बजाती कन्याएं सूर्य किरणों की अगवानी करती प्रतीत होती हैैं। मुख्य द्वार के ऊपर गंगा, दशावतार, गणपति देव की मूर्तियां उत्कीर्ण हैैं। चंवर डोलाती सहचारिकाओं के साथ दोनों तरफ स्वागत मुद्रा में गज आकृतियां उकेरी गई हैैं।
नवरात्र आयोजन
देवी दुर्गा समेत छिन्न मस्तिका देवी, हनुमत् प्रभु, मां काली, शीतला देवी के दर्शन के लिए वर्ष पर्यंत दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैैं। नवरात्र में कोई खास आयोजन तो नहीं होता लेकिन चैत्र नवरात्र की नवमी में खूब भीड़ होती है।
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