गाजीपुर के संत पवहारी बाबा से आशीष और प्रेरणा लेकर शिकागो गए थे स्वामी विवेकानंद
अलौकिक शक्तियों के धनी संत पवहारी बाबा तप योग विनम्रता शिष्टता और मानव कल्याण के साक्षात प्रतिमूर्ति थे। उनकी आध्यात्मिक साधना का केंद्र गाजीपुर का गंगा के तट पर बसा पवहारी बाबा का आश्रम आज भी उनकी तपस्थली के रूप में विख्यात है।

जागरण संवाददाता, गाजीपुर। अलौकिक शक्तियों के धनी संत पवहारी बाबा तप, योग, विनम्रता, शिष्टता और मानव कल्याण के साक्षात प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने हमेशा दूसरे को बाबा और अपने को दास का स्थान दिया। उनकी आध्यात्मिक साधना का केंद्र गाजीपुर का गंगा के तट पर बसा कुर्था (पवहारी बाबा का आश्रम) आज भी उनकी तपस्थली के रूप में विख्यात है। पवहारी बाबा के निर्वाण दिवस पर उनकी स्मृतियां ताजा कर रहे हैैं शिवानंद राय...।
पवहारी बाबा से मिलने के लिए स्वामी विवेकानंद को तीन माह तक प्रतीक्षा करनी पड़ी थी। पवहारी बाबा से आशीष और प्रेरणा लेने के बाद ही वह शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में सम्मिलित हुए थे। पवहारी बाबा का जन्म वर्ष 1840 में जौनपुर के प्रेमपुर में अयोध्या तिवारी के घर हुआ था। उनके बचपन का नाम हरभजन दास था। छोटी चेचक के प्रकोप से बाल्यावस्था में ही उनकी एक आंख की रोशनी चली गई। पिता ने शिक्षा के लिए हरभजन दास को नैष्ठिक (आजीवन) ब्रह्मचर्य का संकल्प लेकर घर-बार त्यागने वाले अपने भाई लक्ष्मीनारायण के पास भेजा। लक्ष्मीनारायण रामानुज की श्री परंपरा को मानते थे। चाचा लक्ष्मीनारायण के साथ वह कुर्था में रहने लगे। 1856 में लक्ष्मीनारायण के देहावसान के बाद वह शांति की तलाश में निकल पड़े। कुछ वर्षों के तीर्थाटन से लौटने के बाद उनके अंदर आध्यात्मिक तेज का प्रभाव देखने को मिला। इसके बाद ही लोग उन्हें पवहारी बाबा नाम से जानने लगे। वे दरवाजे के अंदर या पर्दे के पीछे से संवाद करते थे। कई-कई दिन या महीने भर बाद साधना से बाहर आते थे। चंद लोगों को छोड़कर उन्हें किसी ने देखा नहीं था।
अपने हाथ से खोदा था कुआं
बाबा ने आश्रम में अपने हाथ से करीब 40 फीट गहरा कुआं खोद दिया था, जो आज भी संरक्षित है। कुएं में पानी भी है।
स्वर्ण अक्षरों से लिखी थी गीता, स्वयं तैयार किए देव विग्रह
पवहारी बाबा ने 194 पृष्ठों की गीता लिखी। स्वर्ण अक्षरों से हस्तलिखित गीता में श्रीकृष्ण व गोपियों की रासलीला का चित्रण भी किया। उन्होंने अपने हाथ से चांदी के श्रीराम, लक्ष्मण व सीता का विग्रह तैयार किया था।
रामकृष्ण परमहंस ने सुझाया था पवहारी बाबा का नाम
पवहारी बाबा आश्रम के संरक्षक और उनके सगे बड़े भाई के छठवीं पीढ़ी के वंशज अमित तिवारी बताते हैं कि 18 वर्ष की आयु में भारत भ्रमण के दौरान बाबा दो दिन तक कोलकाता में रामकृष्ण परमहंस की कुटिया में रुके थे। यहीं कारण रहा कि जब स्वामी विवेकानंद भारत भ्रमण पर निकले तो अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से पूछा था कि कोई ऐसा मनीषी है, जिसे मिला जाए, तब रामकृष्ण ने पवहारी बाबा का नाम लिया था।
पवहारी बाबा और स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद ने 'कर्मयोग में लिखा है कि भारत वर्ष में एक बहुत बड़े महात्मा गाजीपुर जनपद के कुर्था के सिद्ध संत पवहारी बाबा है। अपने जीवन में मैंने जितने बड़े-बड़े महात्मा देखें उनमें से वे एक है। वे एक बड़े अद्भुत व्यक्ति हैं। कभी किसी को उपदेश नहीं देते यदि तुम उनसे कोई प्रश्न पूछो भी तो भी वे उसका कुछ उत्तर नहीं देते। गुरु का पद ग्रहण करने में वे बहुत संकुचित होते हैं। यदि तुम उनसे आज एक प्रश्न पूछो और उसके बाद कुछ दिन प्रतीक्षा करो तो किसी दिन बातचीत में वे उस प्रश्न को उठाकर बड़ा सुंदर प्रकाश डालते हैं। उन्हीं ने मुझे एक बार कर्म का रहस्य बताया था।
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