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    स्वच्छता के लिए एक-एक कर मजबूत कदम बढ़े और वाराणसी के 84 घाट चमक उठे

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Sun, 21 Nov 2021 06:40 AM (IST)

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गंगा निर्मलीकरण को लेकर सोच है तो स्थानीय जिम्मेदार अफसरों की कर्तव्यनिष्ठा। परिणाम गंगा किनारे बसे शहर की स्वच्छता के लिए एक-एक कर मजबूत कदम बढ़े और वाराणसी के 84 घाट चमक उठे। हेरिटेज इलाके की सफाई का ब्लू प्रिंट वर्ष 2016 में तैयार किया गया।

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    एक-एक कर मजबूत कदम बढ़े और वाराणसी के 84 घाट चमक उठे।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक 2525 किमी लंबाई के दायरे में बसे 150 शहरों में वाराणसी सबसे स्वच्छ शहर बन गया है। दिल्ली में गारबेज फ्री सिटी व सफाई मित्र चैलेंज अवार्ड वाराणसी को देने के साथ ही गंगा टाउन सिटी में प्रथम स्थान आने के लिए प्रमाण पत्र भी दिया। नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन, अपर मुख्य सचिव नगर विकास रजनीश दुबे के साथ वाराणसी से पहुंची महापौर मृदुला जायसवाल व नगर आयुक्त प्रणय सिंह ने यह दोनों सम्मान लिया। बता दें कि वाराणसी को यह गौरव यूं ही नहीं मिला। इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गंगा निर्मलीकरण को लेकर सोच है तो स्थानीय जिम्मेदार अफसरों की कर्तव्यनिष्ठा। परिणाम, गंगा किनारे बसे शहर की स्वच्छता के लिए एक-एक कर मजबूत कदम बढ़े और वाराणसी के 84 घाट चमक उठे।

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    गंगा के किनारे बसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गंगा निर्मलीकरण के तहत घाट व किनारे के हेरिटेज इलाके की सफाई का ब्लू प्रिंट वर्ष 2016 में तैयार किया गया। इसके तहत जहां नगर के सीवेज सिस्टम को आकार दिया गया तो घाट व हेरिटेज इलाके की सफाई की जिम्मेदारी निजी कंपनी को दी गई। 2016 में गंगा निर्मलीकरण योजनाओं को नमामि गंगे को समर्पित किया गया। अक्टूबर 2016 में नमामि गंगे के तहत घाटों की सफाई की जिम्मेदारी सौंपी गई जिसके लिए पांच करोड़ रुपये सालाना बजट तय किया गया। 84 गंगा घाट यानी दक्षिण में आखिरी सामनेघाट तो उत्तर में खिड़किया घाट को दायरे में लाया गया। 20 प्रमुख घाटों पर दो शिफ्ट में 24 घंटे सातों दिन सफाई होती है यानी 8-8 घंटे के अंतराल पर तीन टीमों को लगाया गया है। इसमें सुबह व शाम एक-एक बार मुकम्मल सफाई होती है जबकि शेष समय कचरा दिखते ही साफ कर दिया जाता है। गंगा के सतह की सफाई ट्रेस स्कीमर मशीन से की जाती है। जन जागरूकता के लिए जायका के तहत छह संस्थाओं को चार साल का ठेका दिया गया है जिस पर करीब चार करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इसके अलावा गंगा किनारे छह शौचालय बनाए गए हैं। वहीं, वरुणापार व पुराने शहर के विस्तारित इलाके में नया सीवेज सिस्टम विकसित किया गया। शहरी क्षेत्र में 250 से अधिक शौचालय बनाए गए। लंका क्षेत्र के लिए रमना व रामनगर के लिए अलग से एसटीपी बनाई गई। वहीं, दीनापुर के साथ भगवानपुर व बरेका एसटीपी को उच्चीकृत किया गया। वहीं, नमामि गंगे के तहत जिन 10 हजार घरों में शौचालय नहीं था वहां स्थापित किया गया।

    1986 में गंगा निर्मलीकरण प्रारंभ

    गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा निर्मलीकरण का अभियान काशी से ही शुरू हुआ था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 14 जून 1986 को यहीं के दशाश्वमेध घाट पर गंगा एक्शन प्लान की नींव रखी थी। पहले चरण में नगर में सीवेज सिस्टम को बनाने का प्रस्ताव बना। इसके तहत 80 एमएलडी का एसटीपी दीनापुर में स्थापित हुआ जिसमें अंग्रेजों के जमाने के शाही नाले को कनेक्ट किया गया। इस नाले से प्रतिदिन करीब 60 एमएलडी मलजल रोज निकलता था जो सीधे गंगा में जा रहा था। यह कार्य धीमी गति से होते हुए अपने तय समय से करीब दो साल देर से पूरा हुआ।

    वर्ष 2010 में आया जेएनएनयूआरएम

    जेएनएनयूआरएम के तहत वरुणापार इलाके 50 हजार घरों के लिए सीवेज सिस्टम तैयार करने का प्रस्ताव बना जिसे ट्रांस वरुणा सीवेज सिस्टम नाम दिया गया। इसी के साथ जायका के फंड से सिस वरुणा यानी पुराने शहर में के विस्तार वाले इलाके मसलन, छावनी क्षेत्र, लहरतारा, मंडुआडीह, महमूरगंज, कैंट, इंग्लिशिया लाइन, सिगरा आदि इलाके के लिए प्रस्ताव बना। यह कार्य स्वीकृति के दो साल बाद यानी 2010 में प्रारंभ हुआ लेकिन जमीन की उपलब्धता समेत विभिन्न स्थानीय रुकावटों की वजह से पूरा होने में करीब नौ साल लग गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सांसद हुए तो वरुणापार इलाके के सीवेज सिस्टम के 120 एमएलडी एसटीपी के लिए गोइठहां में जमीन मिली। इसके बाद निर्माण ने गति पकड़ी तो 2018 में कार्य पूर्ण हुआ। कमोवेश यही हाल जायका के फंड से प्रस्तावित 140 एमएलडी सीवेज सिस्टम के लिए भी रहा। यह कार्य भी 2018 में ही पूर्ण हुआ।

    लंका व रामनगर निर्माणाधीन

    सीवेज सिस्टम की बात करें तो असि नदी के उस पार के इलाके यानी लंका, नगवां, सीर आदि इलाके के लिए 50 एमएलडी का एसटीपी रमना में प्रस्तावित हुआ। इसी प्रकार उप नगर के तौर पर विकसित रामनगर के लिए 10 एमएलडी का एसटीपी भी प्रस्तावित था। वर्ष 2021 में यह दोनों सीवेज सिस्टम बनकर तैयार हो गया।

    शाही नाले को किया जाएगा डायवर्ट

    गंगा में खिड़किया घाट पर गिर रहे 40 एमएलडी मलजल को रोकने के लिए शहर के पुराने इलाके से गुजरे शाही नाले को डायवर्ट किया जा रहा है। कबीरचौरा स्थित महिला जिला अस्पताल से शाही नाले की आधी लाइन को मोड़ कर चौकाघाट लिफ्टिंग पंप से जोड़ जाएगा ताकि दीनापुर में बने 140 एमएलडी क्षमता के नए एसटीपी तक मलजल को भेजा जा सके।

    नगर में क्रियान्वित सीवेज सिस्टम

    -पुराने शहर का सीवेज सिस्टम : क्षमता-80 एमएलडी, लगात-50 करोड़

    -वरुणापार सीवेज सिस्टम : क्षमता-120 एमएलडी, लगात-400 करोड़

    -सिस वरुणा सीवेज सिस्टम : क्षमता 140 एमएलडी, लागत-500 करोड़

    -बीएचयू के लिए भगवानपुर सीवेज सिस्टम : क्षमता 12 एमएलडी, लागत- 25 करोड़

    -डीरेका का सीवेज सिस्टम : क्षमता- 10 एमएलडी, लागत-25 करोड़

    -असि नाले को जोड़ता सीवेज सिस्टम : क्षमता 50 एमएलडी, लागत-145 करोड़

    -रामनगर का सीवेज सिस्टम : क्षमता 12 एमएलडी, लागत-75 करोड़

    2016 में नमामि गंगा को समर्पित

    -अक्टूबर 2016 में नमामि गंगे के तहत घाटों की सफाई की जिम्मेदारी सौंपी गई जिसके लिए पांच करोड़ रुपये सालाना बजट तय किया गया।

    -84 गंगा घाट, दक्षिण में आखिरी सामनेघाट तो उत्तर में खिड़किया घाट

    -20 प्रमुख घाटों पर दो शिफ्ट में सफाई होती है यानी 8-8 घंटे। इसमें स8ुबह व शाम एक-एक बार मुकम्मल सफाई होती है जबकि शेष समय कचरा दिखते ही साफ कर दिया जाता है।

    -गंगा के सतह की सफाई ट्रेस स्कीमर मशीन द्वारा की जाती है।

    -जन जागरूकता के लिए जायका के तहत छह संस्थाओं को चार साल का ठेका दिया गया है जिस पर करीब चार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।

    -गंगा घाट किनारे ऊपर की ओर कुल छह शौचालय स्थित हैं।

    -हर घर से कूड़ा उठान

    -प्रमुख बाजारों में रात को सफाई

    -करसड़ा, भवनिया पोखरी, पहडिय़ा, आइडीएच कालोनी में कचरा प्रसंस्करण प्लांट