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    बरसती लाठियों से भी न डिगे आंदोलनकारी संत स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के कदम, बने छात्रसंघ उपाध्यक्ष और अध्यक्ष

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Mon, 12 Sep 2022 09:46 PM (IST)

    स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद शुरू से ही नेतृत्व व जुझारू तेवर के लिए जाने जाते रहे हैं। वर्ष 1969 में सावन शुक्ल द्वितीया पर 15 अगस्त को प्रतापगढ़ के ब्रा ...और पढ़ें

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    स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद शुरू से ही नेतृत्व व जुझारू तेवर के लिए जाने जाते रहे हैं।

    वाराणसी, प्रमोद यादव : द्वारका शारदा व ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के देह त्याग से काशी दुखी तो है, लेकिन उनके उत्तराधिकारी के तौर पर ज्योतिष्पीठ की जिम्मेदारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम आने के बाद काशीवासियों की आंखों के सामने फिल्म रील की तरह घूम रहा है उनका धर्म रक्षार्थ आंदोलन। इसमें लोगों को उनका गंगा के लिए अन्न जल त्याग तप के साथ ही गणेश प्रतिमा विसर्जन रोके जाने पर उनका गोदौलिया चौराहे पर धरने के दौरान लाठियां खाना भी याद आ रहा। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के प्रतिनिधि शिष्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए आंदोलन तो कई किए लेकिन इन दोनों ने उन्हें राष्ट्रीय ही नहीं वैश्विक ख्याति दी।

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    वास्तव में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद शुरू से ही नेतृत्व व जुझारू तेवर के लिए जाने जाते रहे हैं। वर्ष 1969 में सावन शुक्ल द्वितीया पर 15 अगस्त को प्रतापगढ़ के ब्राह्मणपुरा में रामसुमेर पांडेय व अनारा देवी के घर जन्म हुआ और नाम उमाशंकर रखा गया। खेलेन की उम्र में भी उन्हें पौराणिक कहानियां सुनना व मंदिर जाना अच्छा लगता था। उनकी जन्म कुंडली में मृत्यु योग जान कर पिता व्यथित हो गए और छठवीं की पढ़ाई के बाद गुजरात के बडौदा स्थित विश्वनाथ मंदिर ले गए और तारे तो तू मारे तो तू कहते हुए उनकी शरण में दे दिया।

    वहां ब्रह्मचारी रामचैतन्य महाराज की शरण में शिक्षा और हरि सेवा चलती रही। कालांतर में एक बार मूर्छित हुए तो लोगों ने इसे मृत्यु योग समझा लेकिन मार्कंडेय ऋषि की तरह बच गए। बडौदा में पांच साल रहने के बाद काशी आए और धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज की शरण ली। उमाशंकर पांडेय का शास्त्र के प्रति अनुराग देखते हुए करपात्री महाराज की कृपा व नजदीकी मिली। परिणाम रहा कि करपात्री जी को अंत समय में रामचरित मानस सुनाया करते थे।

    धर्मसंघ में मिली स्वामी स्वरूपानंद की शरण

    धर्म संघ में प्रवास के दौरान ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज से भेंट हुई। उन्होंने आदेश दिया कि काशी में रहो और पढ़ाई करो। उमाशंकर पांडेय ने इसे गुरु वाक्य मानते हुए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में नाम लिखाया और शास्त्री और नव्य व्याकरण में आचार्य किया।

    बने छात्रसंघ उपाध्यक्ष और अध्यक्ष

    नेतृत्व शक्ति का धनी होने के कारण राजनीति में भी हाथ आजमाया। वर्ष 1991 में राष्ट्रीय संस्कृत मोर्चा से उपाध्यक्ष रहे। इसके तीन साल बाद 1994 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर तले अध्यक्ष भी बने। इससे उनकी प्रखर छात्रनेता के रूप में पहचान होने लगी।

    वर्ष 2000 में ब्रह्मचारी की दीक्षा लेकर बने आनंद स्वरूप

    वर्ष 2000 में स्वामी स्वरूपानंद ने ब्रह्मचारी की दीक्षा दी और उमाशंकर पांडेय ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप बन गए। गुरु आदेश को सर्वोपरि मान बढ़ते रहे। तीन साल बाद 2003 में संन्यास दीक्षा हुई और अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बन गए। दंड दीक्षा लेकर गुरु आदेश से श्रीविद्यामठ का दायित्व संभाला।

    साथ ही राम मंदिर, रामसेतु, अविरल गंगा समेत आंदोलनों की कमान संभाली। हाल ही में ज्ञानवापी में आदिविश्वेश्वर पूजन के लिए उनके संकल्प को देखते हुए पुलिस के पसीने छूट गए थे। ज्ञानवापी से संबंधित एक मुकदमे में वादी भी हैं।