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    जौनपुर में कौशल विकास से आधी आबादी को बनाया आत्मनिर्भर, राधिका ने अकेले दम लगा ली फैक्ट्री

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Wed, 05 Jan 2022 02:59 PM (IST)

    राधिका और उनके समूह की सदस्य गांवों की दुकानों पर जाकर आर्डर लेना और फिर उसकी आपूर्ति करने का काम भी खुद ही करती हैं। 40-50 रुपये में एक जोड़ी चप्पल ब ...और पढ़ें

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    दुकानों पर जाकर आर्डर लेना और फिर उसकी आपूर्ति करने का काम भी वह खुद ही करती हैं

    जौनपुर [अमरदीप श्रीवास्तव]। गंगा मैया सक्षम महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं आधी आबादी को हुनरमंद बनाकर आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रही हैं। समूह की 11 महिलाएं मास्टर ट्रेनर बनकर क्षेत्र की अन्य महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होने का साहस और प्रशिक्षण दे रही हैैं। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) की ओर से मिली मदद के बाद मानों इनकी उम्मीदों को पंख लग गए हैं। प्रशिक्षण के बाद बरसठी की राधिका पटेल ने अकेले दम चप्पल बनाने की फैक्ट्री स्थापित की है। इसके लिए एनआरएलएम से सामुदायिक निवेश निधि के तहत एक लाख दस हजार रुपये का सहयोग लिया और 30 हजार रुपये खुद लगाए। इससे वह खुद तो आत्मनिर्भर बनीं ही, अन्य सदस्यों को भी सक्षम बनाया कि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। ब्रांड के इस जमाने में अपना बनाया उत्पाद बेचना आसान नहीं है, बावजूद इसके समूह की सदस्यों का संकल्प दृढ़ है।

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    दुकान-दुकान जाकर लेतीं आर्डर : जरौता गांव की रहने वाली राधिका और उनके समूह की सदस्य गांवों की दुकानों पर जाकर आर्डर लेना और फिर उसकी आपूर्ति करनेे का काम भी खुद ही करती हैं। 40-50 रुपये में एक जोड़ी चप्पल बेचती हैं और प्रति चप्पल 10-12 रुपये की कमाई हो जाती है। प्रतिदिन 150 से 200 जोड़ी चप्पलों की बिक्री हो जाती हैैै। होने वाली कुल आमदनी सभी 11 सदस्यों में बराबर-बराबर बांटी जाती है। एक हिस्सा एनआरएलएम की ओर से सहयोग के तौर पर लिए गए रुपयों को लौटाने के लिए भी रखा जाता है। खास बात यह है कि इनमें से कुछ महिलाएं ऐसी हैं जो समूह से जुड़ने से पहले अपने घर से निकलती तक नहीं थीं।

    तीन वर्ष पहले बनाया समूह : समूह की मुखिया राधिका पटेल ने तीन वर्ष पहले स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाओं को जोड़ा। सिलाई-कढ़ाई में दक्ष समूह की सदस्यों ने शुरुआत स्कूली बच्चों का ड्रेस बनाने से की थी। फिर एक दिन राधिका की मां फूलवंती ने चप्पलें बनाने का विचार दिया। फूलवंती ने गांवों और कस्बों के बाजार में बिकने वाली हवाई चप्पल बनाने की सलाह दी। मां की सीख को राधिका ने पूरा कर दिखाया। मशीन लगाने की जगह कुसुम और शकुंतला ने दी। कानपुर से कच्चा माल मंगाने की व्यवस्था परिवार के पुरुष सदस्यों ने की। ये महिलाएं मेकर के साथ सेलर की भूमिका भी खुद ही निभाती हैं। आस-पास के बाजार के दुकानदारों से आर्डर लेकर तैयार चप्पलें पहुंचाती हैं।

    आज खुशहाल है परिवार : स्नातक कर चुकीं राधिका कहती हैं, कभी आर्थिक तंगी से जूझ रहा उनका परिवार आज खुशहाल है। समूह से जुड़ी अन्य महिलाओं के भी अच्छे दिन आ गए। कुसुम देवी ने बताया कि अभी तक का जीवन घर के चूल्हा-चौका तक सीमित था। इस कार्य से जीवन की दिशा बदली और आजीविका का साधन भी बढ़ा। मंजू देवी समूह में कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। उनका मानना है कि इस काम से जुड़ने के बाद जीवन जीने का उद्देश्य मिला, परिवार की आर्थिक दिक्कतेंं कम हुईं। उर्मिला पटेल बताती हैं कि सरकार की मदद के कारण अब गांव की महिलाओं की पूछ समाज में बढ़ी है।

    बोले अधिकारी : सरकार की ओर से ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने को लेकर तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं। समूहों से जुड़कर गांव की महिलाएं न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत बन रही हैं, समाज और परिवार में अलग पहचान भी स्थापित कर रही हैं। -ओपी यादव, उपायुक्त, एनआरएलएम।