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    साहब! हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था, मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था...

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Wed, 27 May 2020 11:49 AM (IST)

    बिहार के नरहट (नेवादा) निवासी पंकज सिंह को कुछ नहीं सूझा तो वे साइकिल से ही घर के लिए निकल पड़े। वे गुजरात (सूरत) में ठीकेदार के माध्यम से मार्केटिंग का काम करता थे।

    साहब! हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था, मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था...

    वाराणसी, [शैलेंद्र सिंह पिंटू]। साहब! हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था, मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था...। ठीकेदार ने दगा दिया तो भूख से मरने लगा, फिर साइकिल से निकल गया गांव की ओर। रास्ते में ट्रक पर सवार होने की गलती कर बैठा तो पुलिस ने पकड़ लिया। चार दिन तक कानपुर में रोक कर क्वारंटाइन किया।

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    अब ट्रक-बस पर चढऩे की हिम्मत नहीं। साइकिल से ही घर की दूरी माप लेंगे। कोरोना व धूप से बचने के लिए सिर व मुंह को गमछा से ढककर सफर पूरा कर रहे हैं। लॉकडाउन ने रोजी- रोटी के लिए इस कदर कहर बरपाया है कि अब सिर्फ घर ही नजर आ रहा है। सोमवार को मिर्जामुराद हाइवे पर गौर (बंगला चट्टी) के पास एक हाथ से साइकिल का हैंडिल तो दूसरे से गमछा पकड़े साइकिल से जा रहे बिहार के नरहट (नेवादा) निवासी पंकज सिंह ने बताया कि गुजरात (सूरत) में ठीकेदार के माध्यम से मार्केटिंग का काम करता था। लॉकडाउन में जब मार्केट बंद हुए तो काम पर ब्रेक लग गया। ठीकेदार मेरी मजदूरी के बकाये रुपये लेकर भाग गया। समझ में नहीं आ रहा था कि अब जाएं तो जाएं कहां। जिंदगी बचाने के लिए घर की याद आई।

    जेब में मात्र सात सौ रुपये था। 10 दिन पूर्व साइकिल के पिछले कैरियर पर पानी का जार (थर्मस), प्लास्टिक और कपड़ों से भरे बैग को हैंडिल में टांग कर घर के लिए निकल पड़ा। 10 घंटे साइकिल चलाने के बाद रात को जमीन पर प्लास्टिक बिछाकर सो जाता था। प्यास लगने पर थर्मस का पानी और मददगारों से मिला खाना खा लेता था। एक ट्रक चालक ने पांच सौ रुपये लेकर ट्रक पर बैठा लिया। कानपुर में पुलिस ट्रक को पकड़ ली तो हमें चार दिन तक क्वारंटाइन सेंटर में रोके रखा। प्रवासी ने कहा कि अब बाहर कमाने नहीं जाएंगे।