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    शरद पूर्णिमा सोमवार को होने से विशेष फलदायी, अवतरण दिवस पर त्रैलौक्य भ्रमण पर निकलती हैं मां लक्ष्मी

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 11:31 AM (IST)

    वाराणसी में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और अमृत वर्षा करता है। मान्यता है कि इस रात माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। इस दिन खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखने से वह औषधीय गुणों से भरपूर हो जाती है।

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    इस बार शरद पूर्णिमा सोमवार को होने से विशेष फलदायी है।

    वाराणसी। भारतवर्ष पर्व एवं उत्सवों का देश है। यहां की सांस्कृतिक समृद्धि यहां वर्षपर्यंत चलने वाले व्रत पर्व उत्सव एवं त्योहार से ही अनुप्राणित है। इसी क्रम में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, जिसे भारतीय हिंदू परंपरा में कोजागरी, रासपूर्णिमा, शरद पूर्णिमा आदि नाम से जाना जाता है का विशेष महत्व है।

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    ज्योतिषीय, आयुर्वेद व धार्मिक-पौराणिक दृष्टि से भी यह मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात मानव जीवन में स्वास्थ्य, धन व संतान सुख का संपूर्ण वरदान लेकर आती है। इस दिव्य रात्रि को चंद्राम अपनी पूर्णावस्था में 16 कलाओं से युक्त होता है और उसकी रश्मियों से अमृत तत्त्व की वर्षा होती है। यह अमृत तत्त्व संपूर्ण पृथ्वी को अभिसिंचित करता है।

    इसी दिन मां लक्ष्मी का अवतरण दिवस है और वह पृथ्वी भ्रमण पर निकलती हैं तथा पूछती हैं, को जाग्रयेति, अर्थात् कौन जाग रहा है, और जो भक्त उन्हें जागता हुआ मिलता है, उसे धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं, इसलिए इस रात को जागरण का विधान होने के नाते इसे कोजागरी व्रत की रात भी कहते हैं। प्रकृति और मानव जीवन के बीच तादाम्य स्थापित करने वाले इस महान वैज्ञानिक पर्व की विशेषताओं पर प्रकाश डाल रहे हैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय....

    वैसे तो चैत्र से आरंभ कर फाल्गुनपर्यंत 12 प्रत्येक चंद्रमासो में पूर्णिमा होती है। परंतु उन 12 पूर्णिमाओं में भी आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा अर्थात शरद पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है, क्योंकि मान्यता के अनुसार इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण स्वरूप में उपस्थित होकर आत्मगुणानुरूप अमृत रश्मियों का पृथ्वी पर विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं।

    अतः इस दिन भगवान विष्णु सहित भगवती लक्ष्मी का पूजन करके खीर भोग लगाकर रात्रि में खुले आसमान के नीचे रखने की परंपरा है जिससे कि उस खीर में अमृत रूपी चंद्रमा की रश्मियां विशेष औषधीय गुण को उत्पन्न करती है और उसके खाने से दुख दरिद्रता आदि अनेक बाधाएं तथा शरीरों के विकार भी नष्ट होते हैं।

    भारतीय ज्ञान परंपरा में सूर्य एवं चंद्रमा का विशेष महत्व है क्योंकि भारतीय सृष्टि प्रक्रिया में अग्नि सोमात्मकं जगत के सिद्धांत से सूर्य और चंद्रमा से ही यह सृष्टि संभव है अग्नि रूपी सूर्य तथा सोम रूपी चंद्रमा अपने मिश्रित प्रभाव से इस पृथ्वी पर चराचरों की सृष्टि में भागीदार होते हैं। चंद्रमा में प्राणदायिनी शक्तियों की मात्रा अधिक होती है। भारतीय काल गणना प्रक्रिया के अंतर्गत आश्विन मास से शरद ऋतु का आरंभ होता है।

    इसके आगमन के पूर्व वर्षा ऋतु में आकाश में व्याप्त सभी अपद्रव्य धूल, मिट्टी, गैस, खनिज आदि विभिन्न तत्व जो पृथ्वी से वायु के साथ मिलकर आसमान में व्याप्त रहते हैं वे सभी वर्षा ऋतु में अनवरत होने वाली वर्षा की बूंदों से जमीन पर आ जाते हैं तथा आकाश पूर्ण स्वच्छ हो जाता है। इससे चंद्र रश्मियां निर्बाध रूप से पृथ्वी पर पड़ती हैं और इन रश्मियों में विद्यमान अमृत तत्त्व समग्र पृथ्वी को ही अभिसिंचित करते हैं। चंद्र रश्मियों में विद्यमान औषधीय अमृतणुणों के कारण ही इसे अमृतरश्मि, सुधाकर आदि नामों से भी जाना जाता है।

    आयुर्वेद शास्त्र के वरिष्ठ आचार्यों के अनुसार भी चंद्रमा की रश्मियों में विद्यमान विशेष गुणों औषधीय वनस्पतियों में प्राणदायिनी एवं रोगनाशक शक्ति आती है, इसीलिए अनेक औषधियां रात्रि में ही अधिक गुण संपन्न होती हैं और रात्रिकाल में ही उनका रोपण या आहरण इत्यादि करने का भी विधान बताया गया है।

    सप्त रश्मियों में विभक्त सूर्य की सहस्ररश्मियों से प्रकाशित होता है चंद्रमा

    खगोलीय एवं सौरमंडलीय व्यवस्था के अनुसार चंद्रमा में अपना कोई प्रकाश नहीं होता अपितु चंद्रमा भी सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होता है। सूर्य को सहस्त्ररश्मि के नाम से जाना जाता है जो सूर्य की सुषुम्ना, हरिकेश, विश्वकर्मा, विश्वव्यचा, संयद्वसु, अर्वावसु और सुराट् नामक सात रश्मियों से विभक्त होकर 1000 होती हैं, इनमें से केवल सुषुम्ना नामक रश्मि का प्रभाव चंद्रमा पर पड़ता है जिसमें जीवनदायिनी शक्ति होती है तथा उसके प्रभाव से जीव की उत्पत्ति संभव होती है। अर्थात सूर्य से प्राप्त सुषुम्ना रश्मि चंद्रमा की पोषक होती है। इसमें जीवन उत्पन्न करने का गुण होता है और आश्विन पूर्णिमा के दिन उन रश्मियों

    और पृथ्वी के मध्य कोई पर्यावरणीय प्रदूषण या दोष उपस्थित नहीं रहता। चंद्रमा अपने पूर्ण प्रभाव में स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है। इसीलिए इस मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को सबसे स्वच्छ पूर्णिमा एवं सबसे तेज रश्मियों वाली पूर्णिमा भी माना जाता है।

    वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा को चंद्रमा अपने षोडश कलाओं से पूर्ण होता है परंतु आश्विन शुक्ल पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की 16 कलाएं पूर्ण रूप से स्वच्छ आकाश में दृष्टिगत होती हैं। उनका प्रभाव पृथ्वी पर भी निर्बाध रूप से प्राप्त होता है। ज्योतिषी एवं मौसम विज्ञान की दृष्टि से शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है क्योंकि वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु की यह प्रथम पूर्णिमा होती है जिसमें चंद्रमा अपने पूर्ण स्वरूप में दिखाई पड़ता है।

    सोमवारीय संयोग से और फलदायी हो जाएगी शरद पूर्णिमा

    इस बार शरद पूर्णिमा छह अक्टूबर सोमवार की रात्रि को मनाई जाएगी क्योंकि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का आरंभ छह अक्टूबर के दोपहर 11:26 बजे होगा जो सात अक्टूबर को 9:34 बजे तक रहेगी। रात्रि कालगत पूर्णिमा छह अक्टूबर को प्राप्त होने के कारण सोमवार को ही शरद पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाएगा। इस वर्ष की शरद पूर्णिमा सोमवार के संयोग से और भी विशेष फल प्रदान करने वाली दृष्टिगत हो रही है।