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    बच्चेदानी के कैंसर के उपचार का साइड इफेक्ट होगा कम, बीएचयू के प्रो. सुनील चौधरी ने दिया सुझाव

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Wed, 29 Jun 2022 06:22 PM (IST)

    महिलाओं को बच्‍चेदानी का होने वाला कैंसर तकलीफदेह तो होता ही है साथ ही सेहत पर भी बुरा प्रभाव इसका देखा गया है। ऐसे में बच्‍चेदानी के कैंसर के उपचार के दौरान साइडइफेक्‍ट को रोकने पर भी विज्ञानी काम कर रहे हैं।

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    महिलाओं की हेल्‍थ के लिए नए सिरे से शोध की जा रही है।

    वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। दुनिया भर में कैंसर के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसमें बच्चेदानी के कैंसर की समस्या अधिक तेजी से बढ़ रही है। बच्चेदानी के कैंसर का कारगर व प्रभावी उपचार विकिरण चिकित्सा यानी रेडियोथेरेपी मानी जाती है। हालांकि इसके दुष्प्रभाव भी हैं। इसे कम करने के लिए चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के रेडिएशन आंकोलाजी यानी विकिरण चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुनील चौधरी के निर्देशन में डा. अंकिता सिंह ने शोध किया है। इसमें 45 मरीजों पर किए गए शोध के परिणाम बेहतर आए हैं। पाया गया है कि जिन मरीजों को 80 ग्रे (विकिरण को मापने की इकाई) से नीचे रेडियोथेरेपी दी गई उसका साइड इफेक्ट कम हुआ। उपचार का लाभ बेहतर रहा।

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    शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत करने की पहल की गई है। प्रो. सुनील बताते हैं कि बच्चेदानी के कैंसर के मामले में रेडियोथेरेपी के साइड इफेक्ट का जीवन की गुणवत्ता पर सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव युवा महिलाओं पर पड़ता है। हालांकि दुष्प्रभाव का उल्लेख बहुत कम ही विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। यहां पर हुए शोध का उद्देश्य शरीर के नाजुक अंगों पर खुराक के प्रभाव को समझाना है। इसकी वजह से महिलाओं को दिक्‍कतों आ अधिक सामना नहीं करना पड़ेगा और उनको स्‍वास्‍थ्‍य लाभ भी समय से मिल सकेगा। 

    इसके लिए अमेरिका के डेनवर में अमेरिकन ब्रैकीथेरेपी सोसायटी की ओर से 17 से 19 जून तक आयोजित वार्षिक सम्मेलन में बीएचयू के प्रो. सुनील चौधरी को आमंत्रित किया गया था। इसमें जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, जापान, चीन, स्विटजरलैंड, कनाडा, ब्राजील आदि देशों के विशेषज्ञों के बीच प्रो. सुनील व एम्स नई दिल्ली के विकिरण चिकित्सा विभागाध्यक्ष प्रो. डीएन शर्मा ने अपना शोध प्रस्तुत किया। अमेरिका में प्रो. चौधरी ने बच्चेदानी के कैंसर में दिए गए विकिरण को और बारीकी से आकलन करने की आवश्यकता को समझाया। शोध की वहां पर सराहना की गई।