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    डेढ़ सौ साल बाद ब्रिटेन से आएगी शिवाजी की जगदंबा तलवार और बघनखा, लंबे समय से उठ रही थी मांग

    By Jagran NewsEdited By: Abhishek Pandey
    Updated: Wed, 15 Nov 2023 10:40 AM (IST)

    छह जून 2024 को छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण के साढ़े तीन सौ वर्ष पूरे होंगे। महाराष्ट्र के साथ ही पूरे देश में इसे एक पर्व के रूप में मनाने की तैयारी है। इस महोत्सव का खास आकर्षक छत्रपति शिवाजी का बघनखा और उनकी जगदंबा तलवार होगी। ये दोनों तलवार इस समय इंग्लैड में है। ब्रिटेन ने इन्हें सालभर के लिए भारत को सौंपने की हामी भरी है।

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    डेढ़ सौ साल बाद ब्रिटेन से आएगी शिवाजी की जगदंबा तलवार और बघनखा, लंबे समय से उठ रही थी मांग

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। छह जून, 2024 को छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण के साढ़े तीन सौ वर्ष पूरे होंगे। महाराष्ट्र के साथ ही पूरे देश में इसे एक पर्व के रूप में मनाने की तैयारी है।

    इस महोत्सव का खास आकर्षक छत्रपति शिवाजी का बघनखा और उनकी जगदंबा तलवार होगी। ये दोनों तलवार इस समय इंग्लैड में है। ब्रिटेन ने इन्हें सालभर के लिए भारत को सौंपने की हामी भरी है।

    ये हथियार देशभर में प्रदर्शित किए जाएंगे। शिवाजी के हथियार लगभग डेढ़ सौ साल बाद भारत लाया जा रहा है। पहली बार 1908 में लोकमान्य तिलक ने इन हथियारों को भारत को सौंपने की मांग की थी।

    आजादी के बाद महाराष्ट्र के प्रथम मुख्यमंत्री वाईबी चह्वाण से लेकर मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले तक इस बारे में कोशिश करते रहे। इस बार राज्य के सांस्कृतिक मंत्री बीजेपी सुधीर मुनगंटीवार ने पहल की है। केंद्र से हरीझंडी मिल चुकी है।

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    अस्सी घाट पर ब्राह्मण के घर शरण लिए थे शिवाजी

    संस्कृत में अनुरित कृति काशीतिहास में शिवाजी महाराज के संक्षिप्त काशी प्रवास का वृतांत आया है। ग्रंथ के लेखक भाऊ शास्त्री वझे ने जिक्र किया है कि किस तरह शिवाजी ने श्राद्ध कराने वाले किशोर तीर्थ पुरोहित की अंजली रत्नों से भर दी थी।

    यह काल खंड 1669 का है। शिवाजी आगरा किले की नजरबंदी का तिलिस्म तोड़कर फरार हो चुके थे। पांच हजार स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैली का इनाम घोषित हो चुका था।

    शिवाजी 15 से 20 दिनों तक जासूसों को छकाते हुए काशी में पहुंचे थे। उन्होंने अस्सी घाट निवासी एक ब्राह्मण के घर शरण ली। रुखा-सूखा ग्रहण कर रात गुजारी। सुबह गंगा स्नान तथा पंचगंगा तीर्थ पर चेहरा छिपाकर पुरखों का श्राद्ध तर्पण व पिंडदान किया।