शिव ने 64 योगिनियों को काशी भेजा, वापस नहीं गईं तो चौसट्टी माता के रूप में होती हैं पूजा
चौसट्टी घाट के ऊपर स्थित मंदिर में विराजमान महिषासुर मर्दिनी व मां काली का स्वरूप भक्तों का दर्शन देकर पुण्य का लाभ देती हैैं।
वाराणसी, जेएनएन। चौसट्टी घाट के ऊपर स्थित मंदिर में विराजमान महिषासुर मर्दिनी व मां काली का स्वरूप भक्तों का दर्शन देकर पुण्य का लाभ देती हैैं। इसी आस्था के साथ भक्तों की भीड़ हमेशा इस मंदिर में रहती है। नवरात्र में खास तौर से दिन भर भक्त जुटते हैैं। चौसट्टी देवी की जागृत पीठों मेें से एक माना जाता है। मान्यता है कि काशी के राजा दिवोदास धार्मिक प्रवृत्ति के थे लेकिन भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। एक बार उन्होंने देवताओं के समक्ष शर्त रखी की यदि शिव काशी छोड़ कर चले जाएं तो वे काशी को स्वर्ग की तरह बना देंगे। देवताओं के अनुनय विनय पर भगवान शिव काशी छोड़ कर कैलाश चले गए। कुछ दिनों के बाद शिव ने 64 योगिनियों को काशी भेजा। योगिनियों को काशी इतनी प्रिय लगी कि वे यहीं पर रह गईं। इन्हीं को चौसट्टी माता के रूप में पूजा जाता है।
सोलहवीं शताब्दी में बंगाल के राजा प्रतापादित्य वे इस घाट का निर्माण कराया। जर्जर हो जाने पर 18वीं शताब्दी में बंगाल के राता दिग्पतिया ने इसका पुन: पक्का निर्माण कराया। जबलपुर के चौसठ योगिनी मंदिर के स्वरूप में ही घाट के ऊपर मंदिर का निर्माण किया गया।
मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा
मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा प्रतिष्ठित हैैं जिनके दर्शन पूजन से चौसठ योगिनियों के दर्शन पूजन के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। मंदिर परिसर में मां भद्र काली की भी प्रतिमा स्थापित है।
मनोकामनाएं होती हैैं पूर्ण
काशीखंड के अनुसार नवरात्र में इनकी आराधना से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैैं। शारदीय व चैत्र नवरात्र में यहां नौ देवियों के रूप में पूजा होती है। होली के दिन यहां अबीर गुलाल अर्पित करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
कैसे पहुंचें
दशाश्वमेध घाट से चौसट्टी घाट के ऊपर स्थित मंदिर तक जाने का रास्ता है। इसके अलावा दशाश्वमेध, जंगमबाड़ी व पांडेय हवेली से बंगाली टोला होकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
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