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    शारदीय नवरात्र 2022 : दुर्गा मूर्ति को हिलाने में काशी के पहलवानों ने मानी हार, 255 साल से बिना विसर्जन हो रहा मूर्ति पूजन

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Thu, 15 Sep 2022 03:04 PM (IST)

    Sharadiya Navratri 2022 काशी में 255 साल पहले दुर्गा की एक मूर्ति स्‍थापित होने के बाद पहलवानों के प्रयास से भी नहीं उठी। इसके बाद से मूर्ति वहीं स्‍थापित है और आज भी पूजा अर्चना वहीं की जा रही है।

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    देवी दुर्गा की मूर्ति काशी में 255 साल से अपने स्‍थान से हिल नहीं सकी है।

    वाराणसी, जागरण संवाददाता। पुराने दौर में बंगाल से काशी तमाम परिवार आए और यहीं के होकर रह गए। लगभग तीन सदी पूर्व बंगाल के हुगली से काशी निवास करने के लिए आए प्रसन्न मुखर्जी नाम के एक अनन्‍य दुर्गाभक्त ने मदनपुरा के गुरुणेश्वर महादेव मंदिर के पास मान मनौतियों और आस्‍था से ओत प्रोत होकर देवी की प्रतिमा नवरात्रि के पहले दिन स्थापित की।

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    मुद्ददत बीत गई तब से आज तक 255 साल हो गए हैं लेकिन दुर्गा की प्रतिमा नवरात्र में भी विदा नहीं होतीं। मां दुर्गा की इच्छा के मुताबिक उनको केवल चना और गुड़ का भोग लगाया जाता है। कोशिशे हजार हुईं, साठ साठ पहलवान भी 254 साल पहले लगाए गए ताकि मां को मान्‍यताओं के मुताबिक विसर्जित कर दिया जाए लेकिन क्‍या मजाल प्रतिमा किसी प्रयास से इंच मात्र हिली भर हो। 

    आपको सुनने में थोड़ा अजीब सा लग सकता है लेकिन यह सच है कि काशी में सन 1767 में स्थापित एक दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन आज तक महज इसलिए नहीं हो सका है क्योंकि प्रतिमा को उसके स्थान से उठाया ही नहीं जा सका है। विसर्जन के दौरान प्रतिमा हिलाने का पुरजोर प्रयास कई बार हुआ लेकिन वह टस से मस नहीं हो सकीं। आज काशी में यह प्रतिमा देवी भक्तों की आस्था का प्रतीक बन गई है।

    बंगाल के हुगली जिले से काशी जमींदार परिवार के काली प्रसन्न मुखर्जी बाबू मदनपुरा क्षेत्र में गुरुणेश्वर महादेव मंदिर के निकट दुर्गा पूजा का आरंभ किए थे। उन्‍होंने बंगीय परंपरा के अनुसार काशी में एक मिट्टी की मूर्ति नवरात्र के मौके पर स्थापित की थी। सिंदूर खेला की परंपरा के बीच विसर्जन की बेला में दर्जनों लोगों ने प्रयास किया मगर प्रतिमा नहीं उठी। अंतत: उसी स्‍थान पर छोड़ना पड़ा।

    परिजन बताते हैं कि रात में परिवार के मुखिया को सपने में मां ने दर्शन दिया और कहा कि -मुझे विसर्जित मत करो, मैं अब यहीं रहूंगी। तब से प्रतिमा उसी स्थान पर विराजमान है। नवरात्र में इसी प्रतिमा का हर सात तबसे पूजन होता आ रहा है। मान्यता मुताबिक नवरात्र के समापन बाद विसर्जन के लिए प्रतिमा को उठाने का उपक्रम किया जाता है मगर साल भर बाद भी जब वह हिलाई न जा सकी तो स्थापना के बाद अब तक बंगाली ड्योढ़ी की इस प्रतिमा जस की तस आभा से युक्‍त ढाई सदी के बाद भी नजर आती है। 

    शारदीय नवरात्र के मौके पर पुआल, बांस, सुतली और मिट्टी की बनी मां दुर्गा की प्रतिमा की पूजा-अर्चना विधि-विधान पूर्वक की जाती है। नवरात्र भर पुरानी दुर्गा बाड़ी में चंडीपाठ का आयोजन चलता रहता है। इस बार भी सप्तमी, अष्टमी व नवमी को विशेष पूजा अनुष्ठान की तैयारी में मंदिर की साज सज्‍जा परिवार की ओर से की जा रही है। दुर्गा प्रतिमा की विशेषता यह है कि बांग्ला तरीके से बनी मूर्ति की तरह यह भी एक ही सांचे में है।