वाराणसी में शरद पूर्णिमा महत्व, खीर और स्वास्थ्य लाभ, चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से होता है परिपूर्ण
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है जिससे पृथ्वी पर अमृत बरसता है। इस रात श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास रचा था। खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने से उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं जिसका सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। आयुर्वेद में चंद्रमा को औषधियों का स्वामी माना गया है।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। भारतीय मनीषा के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा अपनी संपूर्ण सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणें धरती पर अमृत बरसाती हैं। यह रात्रि धार्मिक, आध्यात्मिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत विशिष्ट मानी जाती है।
श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध रास पंचाध्यायी में वर्णन मिलता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में इसी शरद पूर्णिमा की धवल रात्रि में अपनी गोपियों के साथ महारास रचाया था। यह महारास भौतिक प्रेम नहीं, बल्कि परमात्मा और जीव के बीच के अलौकिक प्रेम का प्रतीक है। इस रात्रि प्रत्येक गोपी के साथ एक कृष्ण थे, जो श्रीकृष्ण की सोलह कलाओं की पूर्ण शक्ति और माया का प्रदर्शन था।
इसलिए यह तिथि प्रेम, आनंद और दिव्यता से परिपूर्ण है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं 16 कलाओं से युक्त व्यक्तित्व के पूर्ण पुरुष माने जाते हैं और इस रात्रि का औषधीय गुणों से युक्त रश्मियों वाला चंद्रमा भी 16 कलाओं से युक्त होता है। यह इस बात का द्योतक है कि वास्तव में चंद्रमा की ये 16 कलाएं मानव जीवन व चेतना की परिपूर्णता के 16 स्तरों का प्रतीक हैं।
चंद्रमा की ये 16 कलाएं हैंं- अमृत, मनदा, पुष्टि, तुष्टि, कांति, ज्योत्स्ना, प्रीति, अंगदा, पूर्णा, पूर्णामृत, स्वच्छा, तेजस्विनी, विशुद्धा, ज्ञाना और सुधा। ये कलाएं चंद्र चक्र के दौरान चंद्रमा के घटते-बढ़ते प्रकाश को दर्शाती हैं लेकिन आध्यात्मिक रूप से ये मानव के अंदर की पूर्णता का प्रतीक हैं। ये कलाएं मन की शांति, शक्ति, ज्ञान, धैर्य, त्याग, सौंदर्य, और ऐश्वर्य जैसे गुणों से संबंधित हैं।
खीर रखने का वैज्ञानिक विधान
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा की सोलह कलाओं से निकलने वाली किरणें, साधारण नहीं होतीं, बल्कि उनमें अमृत तत्त्व होता है। रात में गाय के दूध की घी-मिष्ठान मिश्रित खीर प्रभु को अर्पित की जाती है। मध्याकाश में स्थित पूर्ण चंद्र का पूजन किया जाता है। फिर पूरी रात्रि के लिए चंद्ररश्मियों के नीचे दूध की बनी खीर को पूरी रात रखने का विधान है।
माना जाता है कि चंद्रकिरणों से नि:सृत होने वाला अमृत तत्त्व इस खीर में समाहित हो जाता है और यह खीर औषधीय गुणों से युक्त हो जाती है। अगली प्रात: इस खीर का खाली पेट सेवन करने से शरीर और मन को अद्भुत स्वास्थ्य लाभ मिलता है। व्यक्ति की नेत्र ज्योति बढ़ती है, शरीर की अनेक व्याधियां दूर होती हैं और उसे दीर्घायु प्राप्त होती है। चंद्र पूजन से मानसिक स्वास्थ्य और शांति प्राप्त होती है।
इस संबंध में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के आयुर्वेद संकाय के प्रो. चंद्रशेखर पांडेय बताते हैं कि आयुर्वेद शास्त्र में नक्षत्राधिपति चंद्रमा को औषधियों का स्वामी माना गया है। भारतीय परंपराओं में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। आयुर्वेद के मुताबिक, शरद ऋतु में दिन गर्म और रातें ठंडी होने लगती हैं, जिससे पित्त की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है। खीर में दूध, चावल और चीनी मुख्य सामग्री होती है। यह खीर ठंडी प्रकृति की होती है, जो बढ़ी हुई पित्त को शांत करने में सहायक होती है। इस रात चंद्रमा की किरणें सबसे अधिक पोषक और शीतल होती हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करती हैं। जीवन शक्ति मजबूत होती है। मानसिक तनाव को कम होता है। मन और मस्तिष्क में शांति और संतुलन बना रहता है।
कार्तिक प्रतिपदा से देव पितरों के स्वर्ग पथ प्रदर्शन को जलेंगे आकाशदीप
आश्विन मास की पूर्णिमा के अगले दिन से देवाेपासना का पवित्र कार्तिक मास आरंभ हो जाता है। इस बार पूर्णिमा मंगलवार को भी होने के कारण प्रतिपदा बुधवार को होगी। इसी दिन से कार्तिक मास पर्यंत गंगा स्नान आरंभ हो जाएगा। साथ ही काशी मेें देव-पितरों के पथ प्रदर्शन कामना से प्रज्ज्वलित किए जाने वाले आकाश दीप भी आकाश में टंग जाएंगे। गंगा घाटों से लेकर घरों की छतों तक आकाशदीपों की मनोहारी शृंखला दिखती है। आकाशदीप प्रज्वलन का समापन कार्तिक पूर्णिमा पर होगा।
(प्रस्तुति : शैलेश अस्थाना)
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