शक्ति रूपेण संस्थिता : काशिराज सुबाहु के सपने में आकर मां कूष्मांडा देवी ने रहने की इच्छा प्रकट की थी
देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में शक्ति की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों के मंदिर हैैं लेकिन इनमें मां कूष्मांडा दरबार देश-दुनिया मेंं ख्यात है। इनकी मान्यता देवी के चतुर्थ स्वरूप कूष्मांडा के रूप में है। दुर्गाकुंड स्थित मंदिर में दर्शन-पूजना के लिए वर्षपर्यंत भीड़ होती है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में शक्ति की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों के मंदिर हैैं, लेकिन इनमें मां कूष्मांडा दरबार देश-दुनिया मेंं ख्यात है। इनकी मान्यता देवी के चतुर्थ स्वरूप कूष्मांडा के रूप में है। दुर्गाकुंड स्थित मंदिर में दर्शन-पूजना के लिए वर्षपर्यंत भीड़ होती है।
बंगाल की महारानी भवानी 18वीं शताब्दी में जब काशी आईं तो विशाल भव्य मंदिर और कुंड बनवाया
जनश्रुतियों के अनुसार काशिराज सुबाहु दुश्मनों से लड़ते हुए यहां घनघोर जंगल में पहुंचे। थकान के कारण पीपल के विशाल पेड़ के नीचे सैनिकों संग विश्राम किया। इस दौरान देवी का स्मरण कर कृपा की याचना की। आंख लगी तो स्वप्न में देवी ने यहीं निवास की इच्छा जताई। नींद खुलने पर राजा ने दुश्मनों को परास्त किया और पेड़ के नीचे देवी उपासना शुरू कर दी। पूजा पाठ के लिए पुरोहित नियुक्त किया और शरीर त्याग दिया। बंगाल की महारानी भवानी 18वीं शताब्दी में जब काशी आईं तो विशाल भव्य मंदिर और कुंड बनवाया।
देवी कूष्मांडा का मंदिर बीसा यंत्र पर स्थापित है
मंदिर पश्चिम भारतीय स्थापत्य कला का अनुसरण करता नजर आता है। मंदिर का निर्माण पंचायत परंपरा में किया गया है। इसका शिखर नागर शैली में शंक्वाकार तो गर्भगृह के आगे अद्र्धमंडप और उसके आगे 12 स्तंभों पर विशाल मंडप है। देवी कूष्मांडा का मंदिर बीसा यंत्र पर स्थापित है। इसमें मूर्ति के बजाय यंत्र पूजन किया जाता है। गर्भगृह के कपाट तीन तरफ से खुलते हैैं। प्रदक्षिणा पथ के बाहरी हिस्से में ओसारा है। मंदिर में देवी के साथ ही अन्य विग्रह भी स्थापित हैैं।
देवी स्वयंभू हैैं। उनकी कृपा पाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु वर्षपर्यंत आते हैैं। उनकी सुविधा के लिए मंदिर प्रशासन की ओर से व्यवस्था की जाती है। नवरात्र की चतुर्थी को माता के दर्शन का विशेष विधान है।
- कौशलपति द्विवेदी, महंत
देवी कूष्मांडा की महिमा किसी से छिपी नहीं है। नित्य दर्शन के लिए होती भीड़ इसकी गवाह है। मइया भक्तों पर कृपा बरसाती हैैं। इसके लिए देश भर से श्रद्धालु आते हैैं और मन की शांति लेकर जाते हैैं।
- अमलेश शुक्ला, लोकगायक, भक्त
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