बीएचयू के कृषि-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने दी पराली से बायोचार बनाने की तकनीक
सफलता पराली को खाद में रूपांतरित कर मिट्टी में मिलाने पर कोई विशेष लाभ नहीं होता है जबकि इसका बायोचार मिट्टी और फसल के लिए वरदान साबित हो सकता है। ‘लो कास्ट बायोचार विद इंटीग्रेटेड न्यूटिएंट मैनेजमेंट’ जीरो बजट पर समाधान।
हिमांशु अस्थाना, वाराणसी। बनारस हिंदू विवि (बीएचयू) स्थित कृषि-विज्ञान संस्थान के विज्ञानी ने पराली को बायोचार में बदलने की जीरो बजट तकनीक को पेटेंट कराया है। दावा है कि इससे बनने वाला बायोचार (कार्बन) सैकड़ों साल तक मिट्टी में रहकर प्रदूषकों को खत्म कर उपज में वृद्धि कर सकता है। खास बात यह है कि किसान इस युक्ति को जीरो बजट पर आजमा सकता है। पराली को जलाकर मिट्टी में मिला देना पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। इससे बनने वाला कार्बन वायु प्रदूषण का कारक बनता है जबकि यह मिट्टी में भी अरसे तक नहीं रह पाता है। दो फसली चक्र के बाद जब खेतों की जोताई होती है तो कार्बन मिट्टी से मुक्त होकर वायुमंडल में चला जाता है और ग्रीनहाउस गैस में इजाफा करता है।
कार्बन स्थिरीकरण की यह युक्ति इसका पक्का समाधान प्रस्तुत करती है। संस्थान के विज्ञानी डॉ. राम स्वरूप मीणा ने यह प्रयोग बीएचयू के फार्म में किया। इसमें उनका साथ वर्ल्ड फूड प्राइज विजेता प्रो. रतनलाल ने दिया। डॉ. मीणा ने इस तकनीक के सफलतम प्रयोग के बाद इसे पेटेंट कराया है। उन्होंने युक्ति के बारे में पूरी जानकारी तो नहीं दी क्योंकि प्रोजेक्ट प्रक्रियाधीन है, किंतु बताया कि पराली को एक गड्ढे में डाल कर गड्ढे को पूरी तरह से ढंक दिया जाता है। केवल एक छोटा सा छेद खोलकर रखते हैं, जिससे ऑक्सीजन का प्रवाह हो सके। इससे ऑक्सीजन की उतनी ही मात्र गड्ढे में जाएगी, जितने में पराली न तो धू-धू कर जले और ना ही राख बने। यह कुछ उसी तरह है, जैसे लकड़ी से कोयला बनाया जाता है।
इस विधि से पराली बायोचार या कोयले जैसी ही बन जाती है, जिसमें केवल कार्बन ही शेष होता है। बाजार में उपलब्ध कवक के पाउडर के साथ इस बायोचार को खेत में मिला दिया जाता है। बायोचार बनाने की मशीनें 20 लाख रुपये तक की आती हैं, जबकि यह युक्ति जीरो बजट वाली है। उन्होंने बताया कि इस बायोचार का मृदा के स्वास्थ्य संरक्षण और उर्वरक के रूप में उपयोग नया उपाय है। भारत सरकार को प्रोजेक्ट भेजा गया है, जो इस युक्ति को आम किसान तक पहुंचाने का उपक्रम कर सकती है।
डॉ. मीणा के अनुसार, मिट्टी के लिए कार्बन एक आवश्यक पोषक तत्व है। भारत की मिट्टी में इसकी कमी है। पंजाब की मिट्टी में महज 0.2 प्रतिशत और बनारस में 0.4 प्रतिशत कार्बन है, जबकि मानक 1 से 1.5 प्रतिशत तक का है। एक से दो वर्ष के भीतर ही इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता, पोषक तत्वों और उर्वरता में वृद्धि होती है, जबकि मिट्टी में मौजूद रासायनिक व विषैले तत्वों में कमी आती है।