बनारस घराने से जुड़े संतूर वादक पं. शिवकुमार शर्मा का निधन, काशी को अखर गया इस तरह दुनिया से जाना
Santoor player Shivkumar Sharma dies बनारस घराने से जुड़े रहे ख्यात संतूर वादक पं. शिवकुमार शर्मा का मुंबई में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह वाराणसी में विभिन्न आयोजनों के दौरान अपनी कला का प्रदर्शन भी कर चुके हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। ख्यात संतूर वादक पं. शिवकुमार शर्मा भले ही जम्मू के थे, लेकिन उनका बनारस से संगीत का नाता था। उनका जाना बनारस संगीत जगत को भी अखर गया। वास्तव में उनके पिता पं. उमादत्त शर्मा ने बड़े रामदास जी के शिष्य थे। उन्होंने ही पं. शिवकुमार को वादन व गायन की प्राथमिक शिक्षा दी। गुरु-शिष्य परंपरा को सिर माथे लगाते पं. शिवकुमार मंच से भी कहते न अघाते थे कि मैं बनारस घराने से बिलांग करता हूं। बात 2011 के गंगा महोत्सव की है, जब डा. राजेंद्र प्रसाद घाट के विशाल मंच पर राग रागेश्वरी में संतूर के तार छेड़ रहे थे।
सीढ़ियों पर जमे हर वर्ग के श्रोताओं के भाव से मुग्ध हुए तो काशी से पैतृक संबंध का हवाला देते हुए कहा कि इस नगरी से बेहद ही लगाव है। रही संगीत की बात तो राग की समझ का होना और न होना इसमें कहीं से आड़े नहीं आता है। सभी समान रूप से इसकी अनुभूति कर सकते हैं। संगीत केवल आनंद नहीं अध्यात्म है, इसे महसूस किया जा सकता है। बाबा की नगरी यह खूब जानती है। उन्होंने गंगा महोत्सव के साथ ही कई बार संकट मोचन संगीत समारोह में भी प्रस्तुतियां दीं। जब भी यहां से बुलावा गया, बिना किसी औपचारिकता का इंतजार किए इस तरह चले आए जैसे अपने घर आ रहे हों। उनका इस तरह दुनिया से चला जाना बनारस को अखर गया।
पहले एक बड़े भाई को खोया, अब दूसरा भी खो दियाः पं. साजन मिश्रा
ख्यात शास्त्रीय गायक पद्मभूषण पं. साजन मिश्र कहते हैं कि बनारस घराने का एक और सितारा विराम में चला गया। हमारी महान भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा का एक सुरीला तार टूट गया। देवाधिदे महादेव से उनकी आत्मा शांति के लिए विनम्र प्रार्थना करते हैं, लेकिन उनकी कमी पूरी न हो पाएगा। उनके पिता पं. उमादत्त शर्मा जी बड़े रामदास जी से तालीम ली और अपने पुत्र पं. शिवकुमार शर्मा में गायन-वादन विधा के रूप में संस्कार की तरह पिरो दिया। मेरे लिए बड़े भाई जैसे थे। खुद को बनारस घराने का ही मानते थे। उनका आशीर्वाद-स्नेह हमेशा मिलता रहा। संतूर के शहंशाह पं. शिवकुमार सर्वप्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कश्मीरी वाद्य को देश ही नहीं विदेश तक भारतीय शास्त्रीय संगीत में ऊंचाई दी। इससे लोग आकर्षित हुए और संतूर वादन की ओर रूझान बढ़ा। जब भी उन्हें बनारस से बुलावा जाता उत्साह से आते। हम बनारस से हैं तो विशेष सम्मान देते। कहते, इन लोगों के गाने में साहित्य को कैसे उच्चारण करना है, किस भाव से गाना है। राग को लेकर कैसे निभाना और बंदिशों को कहना अनूठा है। मैंने पहले एक बड़े भाई को खोया, अब दूसरा भी खो दिया। एेसे विरले लोग होते हैं जो सैकड़ों साल में आते हैं। जसराज जी, राजन भइया, लता जी अन्य कई कलाकार एक-एक कर चले जा रहे हैं। बड़ा अजीब सा मन होता जा रहा है।
संगीत जगत की अपूरणीय क्षतिः डा. राजेश्वर आचार्य
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री डा. राजेश्वर आचार्य ने कहा कि शततंत्री वीणा (संतूर) वादक पद्मविभूषण पं. शिव कुमार शर्मा का निध संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है। वे तबला वादन में भी निष्णात कलाकार रहे हैं। गंभीर एवं सौम्य व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी पं. शिवकुमार का संगीत के क्षेत्र में अनुपम योगदान रहा है। दिवंगत कलाकार को शोक श्रद्धांजलि अर्पित है।
टूट गया एक ताराः पं. देवब्रत मिश्रा
ख्यात सितार वादक पं. देवब्रत मिश्रा ने कहा कि पं. शिवकुमार शर्मा जी की जाना दुखद है। पं. शिवकुमार शर्मा ने संतूर जैसे वाद्य को एक नई ऊंचाई प्रदान की। भारतीय संगीत के एक नक्षत्र के रूप में थे। काशी संगीत परंपरा के पंडित बड़े रामदास जी जो हमारे परनाना थे से भी इनका संगीत जुड़ा था क्योंकि पं. शिवकुमार शर्मा के पिताजी उन्हीं के शिष्य थे।
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