वाराणसी में हनुमान जयंती पर संकट मोचन प्रभु का श्रृंगार Live, संगीत समारोह Facebook पर ऑनलाइन
वाराणसी में संकटमोचन मंदिर में हनुमान जयंती और संगीत समारोह फेसबुक पर होगा लाइव।
वाराणसी, जेएनएन। संकटमोचन मंदिर में हनुमान जयंती और इस उपलक्ष्य में 95 वर्षों से प्रति वर्ष आयोजित किए जाने वाले संकट मोचन संगीत समारोह को अलग तरीके से मनाने का निर्णय लिया गया है। इस बार अंतरराष्ट्रीय संगीत समारोह 12 से शुरू होना था। अब मंदिर प्रशासन की ओर से फेसबुक पर संगीत जगत के कलाकार लाइव प्रस्तुत देंगे। इसके साथ ही आठ अप्रैल को संकट मोचन प्रभु का श्रृंगार भी लाइव होगा।
संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्र ने मंगलवार के अनुसार श्री हनुमत जयंती चैत्र सुदी पूर्णिमा 15 (बुधवार) सम्वत 2077 यानी आठ अप्रैल को मनाया जाएगा। सुबह छह बजे से आठ बजे तक श्री हनुमान महाराज का पूजन-अर्चन और बैठकी की झांकी सजाई जाएगी। सुबह सात बजे से रामायण का पूजन–अर्चन और मानस का एकाह पाठ, रामार्चा पूजन आदि धार्मिक अनुष्ठान पूर्व की भांति होंगे। कोरोनावायरस महामारी के चलते लॉकडाउन की प्रक्रिया चल रही है, ऐसे में मंदिर परिसर में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश नहीं पायेगा।
अब तक प्राप्त कलाकारों की स्वीकृति
गायन के लिए पं जसराज, प. राजन-साजन मिश्र, पं. अजय पोहनकर, पं. अजय चक्रवर्ती, उस्ताद राशिद खां, अरमान खां, सुश्री कौशिकी चक्रवर्ती , पं. उल्लास कसालकर।
वादन के लिए राजेश-शिवमणि, पं. विश्वजीत राय चौधरी, पं. निलाद्री कुमार, शाकिर खां, उस्ताद मोईनुद्दीन खां-मोमिन खां, पं. भजन सोपोरी-अभय सोपोरी।
नृत्य के लिए पं. राममोहन महराज और पं. कृष्णमोहन महराज।
तबला वादन में पं. कुमार बोस, पं. सुरेश तलवलकर, पं. अनिंदों चटर्जी-अनुब्रत चटर्जी, पं. समर साहा, पं. संजू सहाय, उस्ताद अकरम खां-जरगाम खां
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित है संकट मोचन प्रभु का मंदिर
कोरोना वायरस को लेकर अंतरराष्ट्रीय विपदा के कारण लॉकडाउन से देवालयों के पट बंद और सांगीतिक-सांस्कृतिक गतिविधियां मंद पड़ी हैैं। एक-एक कर तीज-त्योहार मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसलते जा रहे हैैं और श्रद्धालुओं-संगीत रसिकों को बीते साल के पल याद आ रहे हैैं। कला-संस्कृति और संगीत के शहर नवसंवत्सर आरंभ के साथ श्रद्धा भक्ति के रंगों में रंग जाता है। श्रीराम भक्त हनुमान के जन्मोत्सव की तैयारियां और चैत्र पूर्णिमा पर शहर से लेकर गांव तक आसमान हनुमत् ध्वजा से पट जाता है। शहर के इस ओर से उस छोर तक छोटे-छोटे जत्थे में निकलती ध्वजा यात्राओं का रूख संकट मोचन दरबार की ओर होता है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित इस देवालय में संकट मोचन प्रभु की बैठकी झांकी दिलों में उतर जाती हैै तो अन्य हनुमत मंदिरों में भी पलकें ठिठक जाती हैैं। इसके ठीक पांच दिन बाद संकट मोचन दरबार में हनुमत प्रभु के जन्म का उत्सव संगीत महोत्सव का रूप लेता है। इसमें देश विदेश का कितना भी बड़ा कलाकार हो, प्रस्तुति नहीं देता, बड़े आग्रह से प्रभु चरणों में आने का आकांक्षी होता है और हाजिरी लगा लेता है। बचपन से दर्शक दीर्घा में बैठ कर हनुमत सुरपान करने वाला संगीत रसिक श्रद्धालु भी पचपन की उम्र में भी अतृप्त होने का ही आभास देता है।
चार महान कलाकारों के प्रयास से निखरा संकटमोचन संगीत समारोह
दरअसल, साढ़े नौ दशक पुराना संकट मोचन संगीत महोत्सव सामान्य संगीत समारोह नहीं, सांगीतिक अनुष्ठान है। यह वो ठीहा हैैं जहां चार 'मीतों' तत्कालीन महंत पं. अमरनाथ मिश्र (स्व. वीरभद्र मिश्र के चाचा, ख्यात पखावजी), पं. ज्योतिन भट्टाचार्य (लब्ध सरोद वादक) पं. किशन महाराज (महान तबलावादक), पं.आशुतोष भट्टाचार्य (दिग्गज तबला साधक) की चौकड़ी सिर जोड़ कर संकट मोचन संगीत सम्मेलन की रूपरेखा तैयार किया करती थी। वैसे तो यह बैठकी पूरे साल चला करती थी मगर समारोह नजदीक आते-आते इसकी अवधि दीर्घ से दीर्घतम हो जाया करती थी। चारो मित्र घर-दुआर छोड़ कर बस मंदिर में ही चिमटा गाड़ दिया करते थे। इस चिंता में कि कहीं कुछ उन्नीस न रह जाय। इवेंट मैनेजमेंट के दौर में जब आयोजक एजेंसियां घड़ी देख कर कार्यक्रम के आयोजन का 'बिल' तैयार करती हों इस सहज समर्पण के महत्व को समझा जा सकता है। सच कहें तो समर्पण के ऐसे ही भावों में भीने प्रयासों का परिणाम आज देश के सबसे अनूठे सांगीतिक आयोजन के रूप में हमारे सामने हैं।
पुरनियों को याद है 60-70 का वह दौर जब महंत जी (पं.अमरनाथ मिश्र) के पखावज और ज्योतिन दा के सरोद की युगलबंदी सुनने को बावले हुआ करते थे नगर के रसिकजन। इसी तरह अमरनाथ जी और पं. किशन महाराज भी दिन रात हनुमान जी के सामने पखावज और तबले पर अथक रियाज किया करते थे। वास्तव में इन साधनाओं और संस्कारों ने ही हनुमान जी के इस परम पावन धाम को संगीत तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। अध्यात्म और संगीत के अद्भुत मेल ने इस आयोजन को सांसारिक रास-रंग से परे एक अलौकिक आभा से महिमामंडित कर दिया। यही वजह है कि आज भी बड़े से बड़ा कलाकार यहां कार्यक्रम देने नहीं तीर्थ करने आता है। जो कुछ सुनाता है बाबा संकट मोचन को सुनाता है। यहां वह पारिश्रमिक का नहीं प्रभु की कृपा का आकांक्षी होता है। उसे दृढ़ विश्वास होता है कि यही प्रभु कृपा आगे चल कर उसके यश-कीर्ति का संबल बनेगी। उनका यह विश्वास ही इस आयोजन की थाती है। चार कलाकार मित्रों द्वारा जोड़ी गई विरासत को सुयोग्य उत्तराधिकारी प्रो. वीरभद्र मिश्र ने प्रयोगधर्मिता के साथ सहेजा-सजाया और आगे बढ़ाया। संप्रति महंत प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्र इस थाती को निरंतर समृद्ध कर रहे हैैं, नए रंग भर रहे हैैं।
प्रयोगधर्मिता को समर्पित मंच
मंच पर महिला कलाकारों की हाजिरी का भी अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। उन्हे मंच पर स्थान दिलाने के लिए आयोजकों को काफी संघर्ष करना पड़ा। बात सत्तर के दशक की है। ओडिसी के महागुरु केलूचरण महापात्रा की शिष्या संयुक्ता पाणिग्रही की प्रस्तुति को ले कर पूर्वाग्रही लोगों की एक जमात ने बहस खड़ा कर दिया मगर अंतत: जीत संगीत की हुई। फिर तो अर्जियों का तांता लग गया। सुश्री कंकना बनर्जी, स्वप्न सुंदरी, गिरिजा देवी, सोनल मान सिंह, सुजाता महापात्रा, गीता चंद्रन जैसी कलाकारों ने मंच से यादगार प्रस्तुतियां दे कर हनुमत् कृपा से अपनी-अपनी झोलियां भरीं। सुनंदा पटनायक पर तो प्रभु की कुछ ऐसी कृपा हुई की उनकी पहचान ही 'सुश्री' से 'साध्वी' की हो गई। इस मंच पर धर्म व मजहब की दीवार भी टूटी तो नजीर भी बनी।