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    कभी नहीं हो सका रूंगटा अपहरण कांड का खुलासा, मुख्तार समेत अन्य को अदालत ने नहीं माना दोषी, पुलिस से लेकर CBI तक ने की थी मामले की जांच

    चार भइयों में दूसरे नंबर के नंद किशोर रूंगटा अपनी पत्नी शांति व बेटे नवीन के साथ भेलूपुर थाना क्षेत्र के जवाहर नगर एक्सटेंशन स्थित काबरा भवन में रहते थे। 22 जनवरी 1997 को वह लापता हो गए। उनके भाई महावीर प्रसाद रूंगटा ने इस मामले में अपहरण का मुकदमा भेलूपुर थाने में दर्ज कराया था। वो कहां गए उनके साथ क्या हुआ किसी को कुछ नहीं पता।

    By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Fri, 15 Dec 2023 03:40 PM (IST)
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    कभी नहीं हो सका रूंगटा अपहरण कांड का खुलासा

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। प्रमुख कोयला व्यवसायी व विश्व हिंदू परिषद के कोषाध्यक्ष नंद किशोर रूंगटा के अपहरण की घटना का कभी राजफाश नहीं हो सका। 22 जनवरी 1997 को वह कुछ लोगों के साथ घर के बाहर तो गए लेकिन कभी लौट के नहीं आए।

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    वो कहां गए, किसके साथ गए और उनके साथ क्या हुआ किसी को कुछ नहीं पता। इस मामले में पुलिस से लेकर सीबीआइ तक ने मुख्तार अंसारी व उसके साथियों को पांच करोड़ रुपये की फिरौती के लिए नंद किशोर रूंगटा के अपहरण का आरोपित बताते हुए आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया लेकिन उसे साबित नहीं कर सके।

    चार भइयों में दूसरे नंबर के नंद किशोर रूंगटा अपनी पत्नी शांति व बेटे नवीन के साथ भेलूपुर थाना क्षेत्र के जवाहर नगर एक्सटेंशन स्थित काबरा भवन में रहते थे। 22 जनवरी 1997 को वह लापता हो गए। उनके भाई महावीर प्रसाद रूंगटा ने इस मामले में अपहरण का मुकदमा भेलूपुर थाने में दर्ज कराया था।

    सबसे पहले पुलिस ने फिर सीबीसीआइडी ने मामले की जांच की। उसके बाद शांति देवी की मांग पर हाईकोर्ट ने अपहरणकांड की जांच तीन सिंतबर 1997 को सीबीआइ को सौंप दी। मामले की विवेचना तत्कालीन इंस्पेक्टर राजीव चंदौली ने की।

    इसमें डीएस रावत, अरुणोदय, एके गुप्ता, जगदीश व एमएस मीना का सहयोग लिया। सीबीआइ ने मुख्तार अंसारी, जसविंदर सिंह उर्फ राकी, प्रभविंदर सिंह बरार उर्फ डिम्पी और जितेंद्र कुमार के खिलाफ अपहरण समेत अन्य धाराओं में आरोप पत्र 16 फरवरी 1998 को दाखिल किया।

    इसमें अताउर्रहमान, उर्फ बाबू, शहाबुद्दीन, इस्तियाज अहमद, लाल जी यादव, करमजीत सिंह बाबा और विजय सिंह का नाम भी आरोपितों में शामिल किया। मुकदमा द्वादस अपर जिला सत्र न्यायाधीश लखनऊ एसके पांडेय की अदालत में चला।

    सीबीआइ ने जो आरोप पत्र तैयार किया उसके अनुसार 22 जनवरी 1997 की शाम करीब 5.30 बजे नंद किशोर रूंगटा अपने घर स्थित कार्यालय पर काम कर रहे थे। इसी दौरान विजय सिंह नाम का दारोगा उनके घर पहुंचा।

    गार्ड सूरजभान द्वारा इसकी जानकारी देने नंद किशोर रूंगटा ने उसे अपने कमरे में बुलाया। विजय ने नंद किशोर रूंगटा को बताया कि विधायक मुख्तार अंसारी आए हैं और मिलने के लिए बुलाया।

    दोनों लोग बाहर गए को मुख्तार अंसारी ने नंद किशोर रूंगटा को सफेद रंग की मारुति स्टीम कार की पिछली सीट पर बैठाया और यह कहते हुए कि अब्दुल सत्तार के पास जाना है ले कर चला गया।

    राज दस बजे राजू नाम के व्यक्ति ने नंद किशोर रूंगटा के घर फोन करके उनके बेटे नवीन को नंद किशोर रूंगटा के अपहरण होने की सूचना दी। इससे परिवार में हड़कंप मच गया।

    जानकारी होने पर दिल्ली में रहने वाले भाई महावीर प्रसाद रूंगटा वाराणसी आए और 24 जनवरी 1997 को विजय कुमार दारोगा व अज्ञात के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट भेलूपुर थाने में दर्ज कराया।

    26 जनवरी को अपहर्ताओं का फोन आया। उन्होंने परिवार के पांच करोड़ रुपये फिरौती मांगी व नंद किशोरी रूंगटा के अल्सर की दवा के बारे में भी पूछा। परिवार ने फोन करने वाले को दवा की जानकारी दी। 30 जनवरी को फिर अपहर्ताओं का फोन आया तो महावीर प्रसाद रूंगटा ने उनसे कहा कि वह कैसे यकीन करें कि नंद किशोर रूंगटा जीवित हैं या नहीं।

    11 फरवरी को इस बार अपहर्ताओं ने रूंगटा के पड़ोसी पितांबर अग्रवाल को फोन करके बताया कि जीटी रोड पर मुगलसराय के करीब 35 किलोमीटर स्थित माइल स्टोन जिस पर सासाराम 82 किलोमीटर लिखा है उस पर एक पैकेट रखा है जिसमें नंद किशोर रूंगटा के जीवित होने का सुबूत है। नंद किशोर के भाई राम स्वरूप नंद किशोर के सहयोगी अब्दुल सत्तार के साथ वहां गए और पैकेट ले आए। उसमें एक वीडियो कैसेट व एक पत्र था।

    12 फरवरी को अपहर्ताओं ने फोन करके कहा कि फिरौती की जितनी रकम भी जमा हुई है उसे लेकर महावीर प्रसाद रूंगटा पटना चले आए। 16 फरवरी को महावीर प्रसाद रूंगटा अपने सहयोगी अशोक अग्रवाल के साथ तीन सूटकेस में एक करोड़ 25 लाख रुपये लेकर पटना गए। वहां होटल आनंद लोक के कमरा संख्या 203 में ठहरे। वहां से संदेश मिलने पर रुपयों से भरे चारों सूटकेस लेकर रिक्शे से कीर्ति रोड पहुंचे।

    एक मारुति कार संख्या बीआरआइ 2146 में मौजूद प्रभविंदर सिंह उर्फ डिम्पी समेत तीन लोगों ने उनको रोका और तीनों सूटकेस लेकर चले गए। आश्वासन दिया कि एक दिन बाद नंद किशोरू रूंगटा सही सलामत घर लौट आएंगे। सीबीआइ के अनुसार नंद किशोर रूंगटा को अपहरण के बाद इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में किराए के घर में रखा गया था। उनकी निगरानी में जसविंदर उर्फ राकी और लाल जी यादव रहते थे। नंद किशोर की अंगूठी, घड़ी व सोने की चेन भी ले लिया था जो इनके घर से बरामद हुआ था।

    अपहरण कांड में दिल्ली के जितेंद्र कुमार ने अहम भूमिका निभाई थी। दिल्ली स्थित कंपनी मिरांशु इंटरप्राइजेज में सेल्स आफिसर के तौर पर काम करता था। फिरौती के लिए फोन काल करने के साथ ही पत्र भी इसी ने नंद किशोर रूंगटा के परिवार को लिखा था। इसकी मुलाकात तिहाड़ जेल में 1994 में मुख्तार अंसारी व अताउर्रहमान से हुई थी।

    20 मार्च 1997 को मुख्तार अंसारी ने नंद किशोर रूंगटा के बेटे नवीन को लखनऊ के दारूलशफा स्थित बंगले पर बुलाया। उनसे अपहरण से जुड़े वीडियो और फिरौती मांगने वाले पत्र को देने को कहा। कुछ दिनों बाद उसे दोनों दे दिया गया। 27 जून 2000 को अदालत ने आदेश दिया कि आरोपित मुख्तार अंसारी समेत अन्य को अपहरण, साजिश समेत अन्य धाराओं में दोषी नहीं पाया जाता है।