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    Data protection law: देश में एक ठोस डाटा संरक्षण कानून की दरकार, ताकि नागरिकों की निजी सूचनाएं सुरक्षित रह सकें

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 19 Feb 2021 11:23 AM (IST)

    Data protection law हम अपने बैंक फेसबुक ईमेल अकाउंट की निजी जानकारी किसी से साझा नहीं करते हैं क्योंकि इससे हमारी गोपनीयता भंग होती है। जाहिर है निजता को मौलिक अधिकार से अलग नहीं किया जा सकता। अत देश में एक ठोस डाटा संरक्षण कानून भी होना चाहिए।

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    निजता हर मानव जीवन का अभिन्न अंग है। इसके बिना अन्य मौलिक अधिकारों की कोई प्रासंगिकता ही नहीं है। प्रतीकात्मक

    सुधीर कुमार। Data protection law हाल में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के हनन की आशंकाओं पर गंभीर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि करोड़ों रुपये की कंपनी से लोगों की निजता कहीं ज्यादा कीमती है और निजता की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। कोर्ट ने इस संबंध में सरकार और वाट्सएप से चार हफ्तों के भीतर जवाब भी मांगा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट निजता को मौलिक अधिकार घोषित कर चुका है। ऐसे में वाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी के तहत लोगों की निजी सूचनाओं का अपने कोरोबारी फायदे के लिए इस्तेमाल उनकी निजता के अधिकारों का उल्लंघन ही कहा जाएगा।

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    हालांकि वाट्सएप ने इस संबंध में स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि लोगों की निजता के उल्लंघन का उसका कोई इरादा नहीं है, लेकिन इस तरह के कदम के बाद देश में निजता के अधिकार को लेकर हो रही वर्षो पुरानी बहस में एक और नया अध्याय जुड़ गया है। वास्तव में 24 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। तब नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उन दो पुराने फैसलों को भी खारिज कर दिया था, जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। गौरतलब है कि 1954 में एमपी शर्मा तथा 1962 के खड़ग सिंह केस में क्रमश: आठ और छह जजों की बेंच द्वारा दिए गए फैसले के तहत निजता के अधिकार के संवैधानिक अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया गया था।

    अगर भारतीय संविधान की बात करें तो उसमें ‘निजता का अधिकार’ का स्पष्ट लिखित उल्लेख नहीं है, लेकिन भारतीय समाज में वर्षो से इसे नैसíगक अधिकार माना जाता रहा है। सर्वप्रथम 1895 में प्रस्तुत किए गए ‘भारतीय संविधान बिल’ में निजता के अधिकार की पुरजोर वकालत की गई थी। उस बिल में कहा गया था कि ‘हर व्यक्ति का घर उसकी शरणस्थली होता है और सरकार बिना किसी ठोस कारण और कानूनी अनुमति के उसमें घुस नहीं सकती।’ मार्च 1947 में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा था कि लोगों को निजता का अधिकार है। हालांकि बाद में संविधान बनने के दौरान नागरिकों की निजता के संबंध में लिखित उल्लेख नहीं किया गया।

    लिहाजा आजादी के बाद से ही देश में निजता के अधिकार को परिभाषित करने की मांग होती रही। फलस्वरूप 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित तो कर दिया, लेकिन सरकार के पास कोई ठोस डाटा संरक्षण नीति न होने की वजह से इस तकनीकी युग में गाहे-बगाहे निजता की सुरक्षा को लेकर चर्चाएं होती रहती हैं। दरअसल निजता हर मानव जीवन का अभिन्न अंग है। इसके बिना अन्य मौलिक अधिकारों की कोई प्रासंगिकता ही नहीं है। रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे कई अवसर आते हैं, जहां हमें निजता चाहिए होती है। हम किसी को चिट्ठी लिखते हैं तो नहीं चाहते कि कोई दूसरा उसे पढ़े। हम अपने बैंक, फेसबुक, ईमेल अकाउंट की निजी जानकारी किसी से साझा नहीं करते हैं, क्योंकि इससे हमारी गोपनीयता खत्म होती है। जाहिर है निजता को मौलिक अधिकार से अलग नहीं किया जा सकता। इसे अलग करने का अर्थ किसी शरीर से आत्मा को अलग करने की तरह होगा। निजता का प्राकृतिक अधिकार नागरिकों की गोपनीयता सुनिश्चित एवं सुरक्षित करती है। बिना निजता के जीवन का आनंद भी तो नहीं लिया जा सकता।

    भारतीय संविधान की तरह अमेरिकी संविधान में भी ‘निजता का अधिकार’ का लिखित उल्लेख नहीं है, लेकिन वहां का सुप्रीम कोर्ट इसके अस्तित्व को स्वीकारता है। अमेरिकी सरकार निजता के अधिकार को काफी गंभीरता से लेती है। वह नीति-निर्माण के समय नागरिकों की निजता का विशेष ख्याल रखती है। वहीं जापान की बात करें तो वहां के नागरिकों के पास भी ऐसा कोई अधिकार नहीं है, लेकिन उनकी निजी जानकारियों की सुरक्षा के लिए वहां ‘एक्ट ऑन द प्रोटेक्शन ऑफ पर्सनल इन्फॉर्मेशन’ नाम से एक ठोस कानून जरूर है, जिसके मुताबिक किसी व्यक्ति की अनुमति के बिना सरकार या कोई संस्था उसकी निजी जानकारियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती। इसी तरह विश्व में पहली बार नागरिकों को व्यक्तिगत पहचान संख्या जारी करने वाले स्वीडन में भी एक ठोस कानून बनाकर नागरिकों से जुड़ी गोपनीय सूचनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है। मौजूदा समय में इंटरनेट के प्रयोग के तौर पर भारत एक विशाल बाजार के रूप में तब्दील हो चुका है, लेकिन हमारी सरकार ने एक ठोस डाटा संरक्षण कानून पर कभी गंभीरता नहीं दिखाई!

    चीन में नागरिकों का निजी डाटा लेने के लिए वहां की स्थानीय कंपनियों को प्रमुखता दी जाती है, जबकि भारत में इंटरनेट से जुड़ी अधिकांश कंपनियां मसलन गूगल, फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप इत्यादि विदेशी हैं। चूंकि हम अपनी निजी जानकारियों एवं सूचनाओं को इन कंपनियों के पास जमा करते हैं, इसलिए संभव है कि ये कंपनियां भविष्य में हमारी निजी सूचनाओं का दुरुपयोग करें! अत: निजता के अधिकार के साथ-साथ देश में एक ठोस डाटा संरक्षण कानून भी होना चाहिए, ताकि फेसबुक, जीमेल, वाट्सएप वगैरह को नियंत्रित करके ग्राहकों की गोपनीयता को बरकरार रखा जा सके। ऐसे कानूनों का उल्लंघन करने वाली देसी या विदेशी सभी कंपनियों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए। आधार के संबंध में यही कहा जा सकता है कि सरकार इस बात का विशेष ख्याल रखे कि कहीं वर्तमान की व्यवस्था भविष्य में परेशानी की सबब न बन जाए, क्योंकि भविष्य में नागरिकों से जुड़ी संवेदनशील जानकारियों की चोरी या सार्वजनिक होने की स्थिति में उसके घातक दुष्परिणामों की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। सरकार को नागरिकों की निजी सूचनाओं की गोपनीयता सुनिश्चित करने पर जोर देना चाहिए।

    [अध्येता, बीएचयू]

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