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    वाराणसी के 125 वर्षीय पद्मश्री स्वामी शिवानंद की लंबी आयु का आधार संयम और श्रीमद्भगवतगीता

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Mon, 21 Mar 2022 11:32 PM (IST)

    पद्मश्री स्वामी शिवानन्द लंबी आयु के पीछे कारण महज संयमित जीवन पद्धति है। प्रति दिन भोर में तीन बजे उठना और नहाने- धोने के बाद भगवत भक्ति में लीन हो जाना उनकी आदत बन गयी है। प्रतिदिन श्रीमद्भगवदगीता के बंगला अनुवाद का पाठ करते हैं।

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    योग प्रशिक्षक स्वामी शिवानंद को पद्मश्री पुरस्कार देते राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द।

    वाराणसी, जागरण संवाददाता। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने सोमवार को काशी के योग गुरु 125 वर्षीय स्वामी शिवानंद को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। इस उम्र में भी स्वामी शिवानंद की सेहत और चुस्ती-फुर्ती देख हर कोई उनका कायल हो गया। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने ट्वीट किया-125 वर्षीय काशी के योग गुरु स्वामी शिवानंद जी को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। मेरा देश बदल रहा है...। इस उम्र में उन्हें बिना किसी सहारे के तेज कदमों से चलते देख फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार भी हैरान रह गए। अक्षय ने उनका वीडियो साझा करते हुए लिखा-'यह 126 साल के हैं और कितनी शानदार सेहत है। अनेक-अनेक प्रणाम स्वामी जी। यह वीडियो देखकर मन खुश हो गया। 

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    योगासन दिनचर्या में शामिल

    बनारस में स्वामी शिवानंद का आश्रम दुर्गाकुंड के कबीरनगर में है। इस आयु में भी स्वस्थ्य रहने के पीछे उनकी संयमित दिनचर्या, योग-प्राणायाम और घरेलू औषधियों का सेवन है। स्वामी शिवानंद के अनुसार उनका जन्म 8 अगस्त 1896 को वर्तमान बांग्लादेश के सिलहट जिले के हरीपुर गांव में हुआ था। वह प्रतिदिन भोर में तीन बजे जगते हैैं और स्नान आदि के बाद श्रीमद्भगवदगीता के बांग्ला अनुवाद का पाठ करते हैैं। वह कभी बीमार नहीं पड़े। 2019 में कोलकाता व चेन्नई के अपोलो अस्पताल में हुई जांच में भी उन्हें पूरी तरह स्वस्थ्य पाया गया था। स्वामी जी के अनुसार योगासन उनके लंबे जीवन का कारण है। वह प्रतिदिन सर्वांगासन करते हैं। कहते हैं कि इसे तीन मिनट करने के बाद एक मिनट का शवासन जरूरी होता है।

    यह आसन तीन बार तीन-तीन मिनट का होना चाहिए। उनके अनुसार सर्वांगासन सर्व व्याधि नाशक है। इसके साथ ही वह पवन मुक्तासन, योग मुद्रा, काकी मुद्रा आदि भी करते हैं। कोरोना संक्रमण तो अभी की बात है। स्वामी जी का कहना है कि वे कभी बीमार नहीं पड़े। उन्हें न तो ब्लडप्रेशर है और न सुगर। पिछले वर्ष कोलकाता व चेन्नई के अपोलो अस्पताल में हुई जांचों में वे पूरी तरह स्वस्थ्य बताए गए।

    सर्वांगासन ही मुख्य आसन

    स्वामी जी ने बताया कि योगासन उनके जीवन की इतनी लम्बी आयु का राज है। वे प्रतिदिन सर्वांगासन करते हैं। यही उनका मुख्य आसन है। कहते हैं इस आसन को तीन मिनट करने के बाद एक मिनट का शवासन करना जरूरी होता है। यह आसन तीन बार तीन-तीन मिनट में होना चाहिए। उनके अनुसार सर्वांगासन एक मेडिसिन है जो सर्व व्याधि नाशक है। इसके साथ ही पवन मुक्तासन, योग मुद्रा, काकी मुद्रा, फ्री हैंड एक्सरसाइज वे करते हैं। उन्होंने कहा कि सभी लोग कम से कम आधे घण्टे योग करें और कोरोना को भगाएं।

    कच्ची हल्दी चबाते हैं साथ ही अदरक, धनिया, लौंग, काली मिर्च व तेजपत्ता के  काढ़ा का सेवन

    स्वामी जी का खानपान भी साधरण है। वे प्रतिदिन कच्ची हल्दी चबाते हैं। साथ ही अदरक, धनिया, लौंग, काली मिर्च व तेजपत्ता के  काढ़ा का सेवन करते है। कहा कि कोरोना की यही दवा है जो हमारे घर के किचन में है।  उन्होंने संदेश दिया कि यदि मेरी तरह दीर्घायु होना चाहते हैं तो योग करें और किचन की औषधि का सेवन करें। कहते हैं लोग मुझसे मिलें या फोन नम्बर 7696002444पर सम्पर्क करें।

    2011 में आखिरी बार गए थे इंग्लैंड

    स्वामी शिवानंद अंतिम बार वर्ष 2011 में इंग्लैंड गए थे। इससे पहले वे अपने शिष्यों के बुलावे पर ग्रीस, फ्रांस, स्पेन, आस्ट्रिया, इटली, हंगरी, रूस, पोलैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड, जर्मनी, बुल्गेरिया, यूके आदि देशों का भ्रमण कर चुके हैं। उनके अनुयायियों में नार्थ-ईस्ट के लोगों की संख्या अधिक है।

    वर्तमान बांग्लादेश है जन्मस्थली

    स्वामी शिवानंद का जन्म सिलहट्ट जिला (वर्तमान में बांग्लादेश का हबीबगंज जिला) स्थित हरिपुर गांव में भगवती देवी एवं श्रीनाथ ठाकुर के घर हुआ था। निर्धन माता-पिता भिक्षाटन कर गुजारा करते थे। घोर आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता ने चार साल की उम्र में उन्हें नवदीप (वर्तमान में पश्चित बंगाल का नदिया जिला) निवासी बाबा ओंकारानंद गोस्वामी को दान कर दिया था। जब छह वर्ष की उम्र में बाबा के साथ वापस अपने गांव गए तो मालूम चला कि उनकी बड़ी बहन ने दवा व भोजन के अभाव दम तोड़ दिया। उनके पहुंचने के एक सप्ताह बाद मां-बाप भी दुनिया छोड़ गए। नदिया में बाबा ओंकारानंद के सानिध्य में ही उन्होंने वैदिक ज्ञान हासिल किया और 16 वर्ष की उम्र में पश्चिम बंगाल आ गए।

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