जानिए आखिर लाल बोगी वाली ट्रेन में सफर करना अधिक सुरक्षित क्यों!
भविष्य में धीरे-धीरे नीली बोगियों की जगह अब लाल बोगी वाली सवारी गाडिय़ोंं को प्रचलन में अधिक लाया जाएगा ताकि डिरेल होने जैसे हादसों से लोगों को बचाया जा सके।
वाराणसी [कृष्ण बहादुर रावत] : भारतीय रेल में अधिकतर लाल और नीले रंग के सवारी डब्बे प्रयोग में लाए जाते है लेकिन दोनों प्रकार की बोगियों में सुरक्षा को लेकर क्या अंतर होता है। इस बारे में 99 प्रतिशत लोगों को जानकारी नहीं है। मगर इन दोनों ही डिब्बों के निर्माण से सुरक्षा को लेकर काफी हद तक विरोधाभास की स्थिति मानी जाती है। आइए जानते हैं कि अाखिर दोनों ही प्रकार की बोगियों का निर्माण कैसे होता है-
लाल डिब्बे वाली ट्रेन
लाल रंग के डब्बे को लिंक हॉफमैन बुश मतलब एलएचबी कहा जाता है। इसका निर्माण पंजाब के कपूरथला में किया जाता है। देश में तेज गति से चलने वाली ट्रेनों में गतिमान एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस व राजधानी एक्सप्रेस के लिए एलएचबी डिब्बों को इस्तेमाल में लाया जाता है। इन रेलगाडिय़ों की औसत गति 107 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा होती है जबकि आम ट्रेनों की गति 70 से 140 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। एलएचबी में एंटी टेलिस्कोप ऑफिस सिस्टम भी होता है, यह डिब्बे जल्दी पटरी से नहीं उतरते हैं। इन बोगियों का निर्माण एल्युमिनियम और स्टेनलेस स्टील के बने होते है।
नीले डिब्बे वाली ट्रेन
दूसरी ओर नीले रंग वाले डब्बों का निर्माण चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में होता है, इसकी स्थापना 1952 में हुई थी। कारखाने में जनरल एसी स्लीपर और नॉन एसी डब्बे तैयार किये जाते हैं। ये डिब्बे माइल्ड स्टील के बने होते है जो कभी भी पटरी से उतर सकते है और इससे दुर्घटना का खतरा बना रहता है। भविष्य में धीरे-धीरे लाल बोगी वाली सवारी गाडिय़ोंं को प्रचलन में अधिक लाया जाएगा ताकि हादसे से बचा जा सके।
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