यूपी के गाजीपुर में सैनिकों के गांव गहमर के रणबांकुरों को पीएम नरेन्द्र मोदी की अग्निपथ योजना आई पसंद
एशिया के बड़ी आबादी गाजीपुर के गांव गहमर में सुबह चार बजे का समय और मां गंगा किनारे मठिया मैदान पर युवाओं के आगमन के साथ ही सन्नाटा खत्म होता है। एक-एक कर युवाओं के कदम मैदान में पड़ने शुरू होते हैं।
गाजीपुर, शिवानंद राय। एशिया के बड़ी आबादी के गांव गहमर में सुबह चार बजे का समय और मां गंगा किनारे मठिया मैदान पर युवाओं के आगमन के साथ ही सन्नाटा खत्म होता है। एक-एक कर युवाओं के कदम मैदान में पड़ने शुरू होते हैं। थोड़ी देर बाद अच्छी खासी संख्या में युवा इकट्ठा होते हैं। सबसे पहले अग्निपथ के लिए जारी गाइडलाइन पर चर्चा होती है।
इसी के साथ युवा मैदान का कई चक्कर लगाने में लग जाते हैं। सैनिक बहुल्य इस गांव के युवाओं ने विचार अग्निपथ को लेकर विरोध करने वालों के लिए आइना है। स्पष्ट कहा कि उनका दृढ़संकल्प है कि सेना की शुरू हो रही भर्ती में अग्निवीर बनकर राष्ट्रसेवा करने की। उन्हें चार साल की चिंता नहीं है, उन्हें कुछ दिख रहा तो सिर्फ सेना की वर्दी को अपने तन पर पहननेे के सपने को हर हाल में साकार करना, जिसके लिए वह रात दिन पसीना बहा रहे हैं।
गहमर गांव की सैनिकों के गांव नाम से ख्याति है। वैसे तो यहां 25 हजार मतदाता हैं। सरकारी आंकड़े से मतदाता के ढाई गुना जनसंख्या मानी जाती है,लेकिन यहां के लोग गांव की आबादी एक लाख 20 हजार बताते हैं। देश की सरहद पर करीब 15 हजार लोग इस गांव के सेना में तैनात है,जबकि करीब दस हजार सेवानिवृत्त हैं। इसमें से काफी लोग शहरों में रह रहे हैं। गांव में शायद ही कुछ घर बचा होगा, जिस परिवार में कोई सैनिक न हो। युवाओं के लिए सैनिक भर्ती की तैयारी के लिए दो ग्राउंड बुलाकीदास बाबा मठिया और डुबुकिया बाग है। सबसे अधिक युवा मठिया ग्राउंड में तैयारी करते हैं। यहीं से हर भर्ती में पांच से आठ युवा सेना में भर्ती भी होते हैं। यहां दौड़ लगाने वाले युवाओं के कई बैच हैं।
कुछ सुबह तो कुछ शाम को पूरे मैदान का आठ से दस चक्कर लगाते हैं। अर्जुन सिंह के परिवार के पिता, भाई, बड़े पिता, तहेरे भाई सहित सभी लोग सेना में हैं। वह भी पूरी मेहतन के साथ सेना के लिए दो साल से तैयारी कर रहे हैं। उन्हें सैनिक परिवार का भी होने का लाभ मिल सकता है, लेकिन उनका कहना है कि वह रिलेशन का लाभ लेकर नहीं बल्कि अपने दम पर अग्निवीर बनने के लिए तैयारी कर रहे हैं। राजेश चौहान को खुशी इस बात की है कि उनके परिवार में कोई सेना में नहीं है। वह भी अपनी मेहनत के बूते अग्निवीर बन सकेंगे। पहले उम्र के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, लेकिन इसमें तो ऐसा नहीं।
सुधांंशु गुप्ता, राजीव मिश्र, शिवम उपाध्याय, विकास, आकाश सिंह, राहुल, राकेश आदि के मन में सैन्य भर्ती में बदलाव को लेकर तनिक भी टीस नहीं है। उनका तो साफ कहना है कि उन्हें तो बस भारत मां की रक्षा में अपना योगदान देना है। यह सरकार पर है कि वह कितना और कैसे सेवा लेती है। एक जुलाई से वह सेना की शुरू होने वाली भर्ती में हिस्सा लेंगे। इसी मैदान पर समीप के मुस्लिम बहुल्य गांव बारा के मुहम्मद साजिद का कहना है कि उसका एक ही मकशद है सेना में भर्ती होना। इसी गांव के एमईएस से रिटायर सुरेंद्र उपाध्याय का बेटा कर्नल व बेटी मेजर है। वह बताते हैं कि अग्निवीर योजना अच्छी है। बस इसे ठीक से समझने की जरूरत है।
अंतिम बार सन 1989 में मठिया मैदान से 150 युवाओं की हुई थी भर्ती
इस गांव में सेना के अधिकारी आकर युवाओं की भर्ती करते थे। इसके लिए खुद फौज के अधिकारी आते थे। अंतिम बार 1989 में मठिया मैदान से बंगाल रायफल के कर्नल राम सिंह आकर 150 युवाओं को भर्ती कर ले गए थे। इसके बाद से यहां भर्ती बंद है।
कम से कम सात से आठ साल के लिए रखें जाएं अग्निवीर
भूतपूर्व सैनिक सेवा समिति गहमर के अध्यक्ष सूबेदार मार्कंडेय सिंह का कहना है कि अग्निवीर के साथ-साथ स्थायी भर्ती बंद नहीं होनी चाहिए। चार साल में से एक साल तो ट्रेनिंग व अवकाश मं बीत जाएगा। सेना से आने के बाद अग्निवीरों केे लिए परिवार का भरण पोषण का संकट होगा। सरकार इसे चार साल से बढाकर कम से कम आठ साल करे।