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    Rajendranath Lahiri Death Anniversary : क्रांतिकारी जिलापति थे वाराणसी के राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, बीएचयू से किया था बीए व एमए

    By saurabh chakravartiEdited By:
    Updated: Thu, 17 Dec 2020 10:32 AM (IST)

    आजादी की लड़ाई में बनारस के राजेंद्र नाथ लाहिड़ी की भी अहम भूमिका थी। नौ अगस्त 1925 को पं. राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में जिन क्रांतिकारियों ने रेल से जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था उनमें राजेंद्र नाथ भी शामिल थे।

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    आजादी की लड़ाई में बनारस के राजेंद्र नाथ लाहिड़ी की भी अहम भूमिका थी।

    वाराणसी, जेएनएन। Rajendranath Lahiri death anniversary आजादी की लड़ाई में बनारस के राजेंद्र नाथ लाहिड़ी की भी अहम भूमिका थी। नौ अगस्त 1925 को पं. राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में जिन क्रांतिकारियों ने रेल से जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था, उनमें राजेंद्र नाथ भी शामिल थे। काकोरी कांड केस में उन्हें न केवल जेल की हवा खानी पड़ी, बल्कि इसी कांड में उन्हें 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में फांसी भी हुई। राजेंद्र नाथ लाहिड़ी सच्चे अर्थों में वाराणसी के क्रांतिकारी जिलापति थे।

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    राजेंद्र नाथ का जन्म 29 जून 1901 को बंगाल के पबना जिले में एक जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता क्षितिमोहन लाहिड़ी एक बड़े जमींदार थे। वर्ष 1909 में राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का परिवार बनारस आ गया। बनारस में दशाश्वमेध रोड पर राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का मकान था। वहीं उनके बड़े भाई जितेंद्रनाथ लाहिड़ी की होम्योपैथी की दुकान भी थी। उनके इसी मकान पर क्रांतिकारियों की अक्सर बैठकें होती रहती थीं। बैठकों में चंद्रशेखर आजाद, कुंदनलाल गुप्त, शचींद्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त सरीखे क्रांतिकारी एकत्र होते थे। उस समय राजेंद्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विद्यार्थी थे। बीए, एमए उन्होंने बीएचयू से किया था। उन्हें इतिहास व अर्थशास्त्र विषय से विशेष लगाव था। क्रांतिकारियों की मौजूदगी में राजेंद्रनाथ लाहिड़ी के मकान में जीवंतता का माहौल व्याप्त रहता था। गंभीर बातचीत, राजनीतिक और समकालीन महत्व के ज्वलंत मुद्दों पर संवाद के साथ-साथ हंसी-मजाक का दौर भी घंटों चलता रहता था। इस दौरान क्रांतिकारी शचींद्रनाथ बख्शी ने बनारस में युवाओं के शारीरिक प्रशिक्षण और व्यायाम के लिए सेंट्रल हेल्थ यूनियन नामक संस्था बनाई। इसका उद्देश्य युवाओं में राजनीतिक चेतना पैदा करना व क्रांतिकारी विचारधारा के प्रति आकर्षण पैदा करना भी था। राजेंद्र नाथ, मन्मथनाथ गुप्त, चंद्रशेखर आजाद, कुंदनलाल गुप्त भी सेंट्रल हेल्थ यूनियन से जुड़ गए।

    बंगाल में सीखा था बम बनाना

    बीएचयू में इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा. अनुराधा सिंह ने बताया कि विशेष राजेंद्र नाथ का बांग्ला साहित्य में गहरा अनुराग था। उन्होंने अपनी मां बसंत कुमारी की स्मृति में एक पारिवारिक पुस्तकालय की स्थापना भी की थी। यही नहीं, वह कई सालों तक 'बीएचयू बांग्ला साहित्य परिषद के मंत्री भी थे। उनके तमाम लेख पत्रिका 'बंगवाणी और 'शंख में प्रकाशित हुए थे। उन्होंने बनारस से क्रांतिकारियों के हस्तलिखित पत्र 'अग्रदूत का प्रकाशन भी शुरू किया था। वर्ष 1923 में बनारस में क्रांतिकारियों द्वारा एक गुप्त सभा बुलाई गई थी जिसमें राजेंद्रनाथ सहित तमाम क्रांतिकारी भी शामिल हुए थे। बैठक बनारस को उत्तर भारत में क्रांतिकारी संगठन के केंद्र के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया था। इस क्रम में 1924 में शचींद्रनाथ सान्याल के नेतृत्व में 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना भी की गई। राजेंद्र लाहिड़ी 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य रहे। क्रांतिकारी संगठन की ओर से 'द रिवोल्यूशनरी शीर्षक से एक पर्चा छापा गया जिसे बनारस समेत उत्तर भारत के दूसरे शहरों में बांटा गया। काकोरी कांड के बाद बम बनाना सीखने के लिए वह बंगाल तक गए जहां दक्षिणेश्वर (कलकत्ता) में उनकी गिरफ्तारी हुई। दक्षिणेश्वर बम कांड के अंतर्गत उन पर मुकदमा चलाया गया और दस वर्ष की सजा भी सुनाई गई। इसके बाद काकोरी षड्यंत्र केस के अंतर्गत उन पर मुकदमा चला। उस समय वह बीएचयू से एमए कर कर रहे थे। प्राथमिक शिक्षा बंगाली टोल स्‍कूल से प्राप्‍त की थी और आज भी उनकी स्‍मृति में शहीद वेदी को लोग नमन करते हैं।

    मेरी मौत नहीं जाएगी व्यर्थ

    सतीश चंद्र कालेज (बलिया) के इतिहास विभाग के शिक्षक शुभनीत कौशिक राजेंद्र नाथ लाहिड़ी पर विस्तृत अध्ययन कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि फांसी से तीन दिन पहले उन्होंने अपने अंतिम पत्र में लिखा था कि देश की बलिवेदी पर हमारे प्राणों के चढऩे की ही आवश्यकता है। मनुष्य मृत्यु से दुख और भय क्यों माने? वह तो नितांत स्वाभाविक अवस्था है, उतना ही स्वाभाविक जितना सूर्य का उदय होना। यदि यह सच है कि इतिहास पलटा खाया करता है तो मैं समझता हूं कि मेरी मौत व्यर्थ नहीं जाएगी। सबको मेरा नमस्कार, अंतिम नमस्कार।

    बीएचयू कला भवन में संरक्षित है लाहिड़ी का पत्र

    राजेंद्र लाहिड़ी का 15 जुलाई 1927 को लिखा पत्र बीएचयू के कला भवन में संरक्षित है। अपने स्वतंत्रता सेनानी विद्यार्थी को इस बार बीएचयू याद करेगा। इसके लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा। बंगाली टोला इंटर कालेज में भी सभा होगी।

    (नोट : बीएचयू के पूर्व छात्र और बलिया जिले में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत डा. शुभनीत कौशिक ने विगत कई वर्षों में यह शोध पत्र तैयार किया है)