Rabindranath Tagore Birth Anniversary पंडित मदन मोहन मालवीय के एक पत्र पर काशी आए थे गुरुदेव
Rabindranath Tagore Birth Anniversary महामना मदन मोहन मालवीय ने स्वयं पत्र लिखकर गुरुदेव को काशी बुलाया था।
वाराणसी [कुमार अजय]। Rabindranath Tagore Birth Anniversary (जन्म 7 मई 1861, मृत्यु 7 अगस्त 1941) काशी ने प्राचीन से अर्वाचीन काल तक न केवल देश-दुनिया को विद्वता का प्रमाण दिया अपितु मेधाओं को सर्वदा नमन भी किया। विश्वकवि गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर (टैगोर) को मान देते हुए 1935 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डी-लिट उपाधि से अलंकृत किया। इस आयोजन के बाद वह प्रयागराज चले गए थे। तब महामना मदन मोहन मालवीय ने स्वयं पत्र लिखकर गुरुदेव को काशी बुलाया था।
अभिलेखों के अनुसार, गुरुदेव तीन बार (1925, 1927 व 1935) काशी आए। इनमें अंतिम दो बार उनके आगमन का कारण महामना का मनुहार भरा आमंत्रण बना। इसी क्रम में उनका एक प्रवास 1927 में काशी में हुआ। इसमें भी उन्होंने बीएचयू के तत्कालीन इंजीनियरिग कॉलेज बेंको (अब आइआइटी बीएचयू) में फार्मेसी पाठ्यक्रम का उद्घाटन किया था।
बंगीय समाज काशी के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक कांति चक्रवर्ती के अनुसार, गुरुदेव इससे पूर्व 1925 में भी काशी आए। इस बार उनका उद्देश्य बंगीय साहित्य व संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन था। इसी क्रम में उन्होंने काशी में प्रवासी बंग साहित्य सम्मेलन की स्थापना की।
भारत कला भवन से जुड़ाव
बीएचयू के संग्रहालय भारत कला भवन के स्थापना काल से ही गुरुदेव का उससे जुड़ाव रहा। इसके संवर्धन के लिए गठित परामर्शदात्री समिति के गुरुदेव प्रथम अध्यक्ष रहे। भवन के निदेशक प्रो. अजय कुमार सिंह बताते हैं कि गुरुदेव सहित उनके परिवार के सदस्यों द्वारा बनाए दर्जनों स्केच व तैलचित्र अब भी भवन की शोभा बढ़ा रहे हैं। काशी के विद्वान हजारी प्रसाद द्विवेदी ने महामना की प्रेरणा से गुरुदेव के शांति निकेतन में सेवाएं दी थीं।
काशी से रहा नाता
गुरुदेव का काशी से भी नाता रहा है। अशोक कांति चक्रवर्ती के अनुसार टैगोर परिवार की संपत्तियां काशी में भी स्टेट के रूप में रही हैं। अर्दली बाजार व भोजूबीर का टैगोर स्टेट कभी समृद्ध हुआ करता था। टैगोर विला का सौदा तो हाल ही में हुआ।
गाजीपुर में लिखी थीं मानसी की अधिकांश कविताएं
रवींद्रनाथ टैगोर ने 1888 में छह महीने तक प्रवास किया और यहां का छोटा सा इतिहास भी लिखा। यहीं पर मानसी की अधिकांश कविताएं व नौका डूबी के कई अंश लिखे। उनके प्रवास स्थान पर एक पार्क है। रवींद्र नाथ टैगोर अपने दूर के रिश्तेदार गगनचंद्र राय के यहां गोराबाजार आवास पर ठहरे थे। यहां रहते गुरुदेव की घनिष्टता एक अंग्रेज सिविल सर्जन से हो गई। रवींद्रनाथ अपनी कविताओं का अनुवाद उन्हेंं सुनाया करते थे। गुरुदेव यहां लार्ड कार्नवालिस समाधि उद्यान में शाम को घूमने जाया करते थे।