काशी के पं. गागाभट्ट ने शिवाजी के रूप में भारत को दी नई पहचान
शैलेश अस्थाना वाराणसी मात्र 28 वर्ष की आयु में 40 दुर्गो पर भगवा ध्वज को फहराने वाले वीर शिवाजी जब 40 वर्ष के हुए। औरंगजेब के भय से महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के ब्राह्माण उनका राज्याभिषेक करने की हिम्मत न जुटा सके।

शैलेश अस्थाना, वाराणसी : मात्र 28 वर्ष की आयु में 40 दुर्गो पर भगवा ध्वज को फहराने वाले वीर शिवाजी जब 40 वर्ष के हुए। औरंगजेब के भय से महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के ब्राह्माण उनका राज्याभिषेक करने की हिम्मत न जुटा सके। तब काशी के परम विद्वान पं. विश्वेश्वर भट्ट उर्फ गागाभट्ट अपना संन्यास आश्रम भंग कर रायगढ़ पहुंचे और ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी (तब छह जून 1674, इस वर्ष 12 जून) को वैदिक पद्धति से शिवाजी का राज्याभिषेक कराया और छत्रपति के रूप में भारत को एक नई पहचान दी। इस दिन को शिवाजी ने 'हिदवी साम्राज्य दिवस' या 'हिदू पद पादशाही दिवस' घोषित किया। महाराष्ट्र वासियों व हिदू संगठन यह दिन रविवार को पर्व के रूप में मनाएंगे।
आगरा से भागकर काशी पहुंचे थे शिवाजी
काशी हिदू विश्वविद्यालय के इतिहासविद् डा. विनोद जायसवाल बताते हैं कि औरंगजेब ने वीर शिवाजी को धोखे से आगरा में कैद कर दिया तो अपनी चतुराई से वह निकलने में सफल रहे। वहां से मथुरा, प्रयाग होते काशी आए और यहां अस्सी निवासी एक विपन्न ब्राह्माण के घर कुछ दिन शरण लिए। यहां पंचगंगा घाट पर अपनी पहचान छिपाकर उन्होंने पूर्वजों का श्राद्ध-तर्पण व पिडदान भी किया। इतिहासकार भाऊशास्त्री वझे 'काशी का इतिहास' में लिखते हैं कि श्राद्ध कराने वाले किशोर पुरोहित की अंजुली शिवाजी ने रत्नों से भर दी थी। अपने हाथ में पहने स्वर्ण कंकड़ भी दे दिया। पंचक्रोशी परिक्रमा करते हुए भोजूबीर मार्ग पर कुलदेवी दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण कराया। वहां अनेक देवी-देवताओं के विग्रह स्थापित कराए। तभी उनका परिचय काशी के गागाभट्ट से हुआ।
शिवाजी के आग्रह पर गागाभट्ट ने लिखे ग्रंथ
डा. जायसवाल बताते हैं कि छत्रपति शिवाजी के आग्रह पर पंडित गागाभट्ट ने 'शिवार्कोदय' ग्रंथ की रचना की। 'शिवदिग्विजय' नामक मराठी साहित्य में पं. गागाभट्ट को महासमर्थ ब्राह्मण, तेजराशि, तपोराशि, अपरसूर्य, साक्षात वेदनारायण तथा महाविद्वान बताया गया है।
समर्थ गुरु भी आए काशी
वीर शिवाजी की मृत्यु मात्र 50 वर्ष की आयु में 1680 में हो गई। डा. जायसवाल बताते हैं कि इसके बाद उनके गुरु समर्थ रामदास काशी आकर भैरवनाथ के पंचगंगा घाट स्थित मंगलागौरी पंचायतन मंदिर के पीछे श्रीराम जानकी मंदिर की स्थापना की। हिदू साम्राज्य की स्थापना करने वाले छत्रपति के मानस में पंडित गागा भट्ट और काशी सदैव बनी रही।
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