कवि कुमार विश्वास की महफिल में तृप्त हुए काशीवासी, कहा - 'कंकर-कंकर मेरा शंकर, मैं काशी हूं-मैं काशी हूं'
जब काशी की अद्भुत बातों को गीतों से पिरोया तो हर हाथ जुड़े और सभागार में केवल गड़गड़ाहट ही सुनाई दे रही थी। उन्होंने मंच से काशी की सभी विभूतियों को नमन और प्रणाम किया। 12 सौ क्षमता वाले हाल में करीब दो हजार की संख्या देख वह हतप्रभ थे।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। शाम के सात बज रहे थे रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर का हाल काशीवासियों से पूरी तरह खचाखच भरा हुआ था। तभी मंच पर लटका काला परदा उठता है। और लोगों के बीच हो जाते हैं कुमार विश्वास। तीन घंटे से मंच पर टकटकी लगाए बैठी जनता कुमार विश्वास को अपने बीच पाकर गदगद हो उठती है। हर-हर महादेव के उद्घोष से स्वागत सत्कार के बाद जब कुमार विश्वास मंच संभालते हैं तो वह भी जनता का अभिवादन हर-हर महादेव से करते हैं। उन्होंने जब काशी की अद्भुत बातों को गीतों से पिरोया तो हर हाथ जुड़े और सभागार में केवल गड़गड़ाहट ही सुनाई दे रही थी। उन्होंने मंच से काशी की सभी विभूतियों को नमन और प्रणाम किया। 12 सौ क्षमता वाले हाल में करीब दो हजार की संख्या देख वह हतप्रभ थे। उन्होंने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि हे सरकार अस्सी पर कोई 25-50 हजार वाली क्षमता का हाल बनवाएं। जिसमें कि मैं रातभर कविता पढ़ सकूं। पहली मुक्तक पढ़ते हुए उन्होंने मां गंगा को प्रणाम किया। कहा-
खिलौने साथ बचपन तक, रवानी बस जवानी तक,
सभी अनुभव भरे किस्से, बुढापे की कहानी तक,
जमाने में सहारे हैं, सभी बस जिंदगी भर के,
मगर ये जिंदगी के आखिरी पल का सहारा है,
ये गंगा का किनारा है, ये गंगा का किनारा है...।
बनारस में इसे शिव ने पुन: जीभर निहारा है,
ये गंगा का किनारा है, ये गंगा का किनारा है...।
उन्होंने काशीवासियों पर चुटकी लेते हुए कहा कि ये जो दर्शक दीर्घा में आगे वाले हैं उनके घर तक पास पहुंचाया गया है। जो पीछे वाले हैं उन्हें लाइन में लगकर पास लेना पड़ा होगा। फिर भी इन्हें कमजोर न समझना। काशी में गलियों के नुक्कड़ पर पान की गुमटी पर फटी बनियान पहना हुआ व्यक्ति भी पद्मश्री या पद्मविभूषण हो सकता है। बस ध्यान से परखना।
...जब महफिल छोड़ निकल गए मंत्री नीलकंठ तिवारी : कवि कुमार विश्वास ने जैसे ही कहा कि लोग सोचते है मंच पर आने के लिए बड़ा आदमी जैसे मंत्री-विधायक होना पड़ता है। यह सुनते ही मंत्री नीलकंठ तिवारी सभागार से बाहर हो लिए। इस पर कुमार विश्वास ने चुटकी लेते हुए कहा कि मंच पर आने के लिए मंत्री होना जरूरी नहीं है। तभी कबीर मूलगादी मठ के महंत विवेक दास तपाक से मंच पर चढे और गुलाब के फूल की माला पहनाकर उनका स्वागत किया। कुमार विश्वास ने भी उसी अंदाज में उनके पैर छुए और आशीष लिया।
जयशंकर प्रसाद की कविता से जगाया लोगों में देशभक्ति का जज्बा : मंच से कवि कुमार विश्वास ने लोगों में जयशंकर प्रसाद की कृति से लोगों में देशभक्ति का जज्बा तो जगाया ही कहा कि काशी अपने हीरे को संजोए। उन्होंने सुंघनी साहू की गली को मुक्तक से याद किया-
अरुण यह मधुमय देश हमारा,
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे
उड़ते खग जिस ओर मुंह किए, समझ नीड़ निज प्यारा
बरसाती आंखों के बादल, बनते जहां भरे करुणा जल
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे
मंदिर ऊंघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा
अरुण यह मधुमय देश हमारा...।
जयशंकर प्रसाद को नमन करते हुए उन्होंने (आंसू) के भी कुछ मुक्तक सुनाए-
इस करूणा कलित हृदय में,
अब विकल रागिनी बजती
क्यों हाहाकार स्वरों में
वेदना असीम गरजती।
युवा पीढ़ी को सधे अंदाज में किया तरोताजा
कहा कि बनारस में पढ़ने वाले बच्चे अपनी अधुरी बातों को पूरी करने के लिए असि घाट पर आते हैं। उन्हें उम्मीद रहती है कि यहां उनकी बातें पूरी हो जाएंगी। फूलों का गुलदस्ता थाम लिया तो समझो बात पूरी...। इस पर जयशंकर प्रसाद के मुक्तक को पढ़ते हुए उन्होंने युवाओं को गदगद कर दिया। कहा -
शशि मुख पर धूंघट डाले, अंचल में दीप छिपाए
जीवन की गोधूलि में, कौतूहल से तुम आए...।
जब पाकिस्तान पर ली चुटकी तो ठाहकों की हुई वर्षा...
कवि कुमार विश्वास ने मंच से पूछा कि यहां हिंदी किसने-किसने पढ़ी है। उठे हुए हाथों को सलाम किया। कहा कि मेरे पिताजी भी अध्यापक थे। गर्मी की छुट्टियों में वह कूटने का अभ्यास हम लोगों पर करते थे। यदि वह फौज में होते थे पाकिस्तान की जमकर कुटाई करते। यह सुनते ही ठहाकों की खूब वर्षा हुई।
जब मां ने कहा पितर तुमसे असंतुष्ट है...
कुमार विश्वास ने सभागार में समां बांधते हुए कहा कि एक दिन मेरी मां ने मुझसे कहा कि मैंने तुम्हारी कुंडली पंडित जी से दिखवाई है। उन्होंने कहा कि पितर इससे असंतुष्ट है। मैंने कहा कि आप संतुष्ट हो, टाइगर संतुष्ट है फिर क्या सब संतुष्ट हैं। उन्होंने अपने कालेज के जीवन की बातों को भी सुनाया और श्रोताओं को भी खूब रिझाया।
लहरतारा अधूरा है जब सम्मेलन में कबीर का जिक्र न हो
मंच से उन्होंने कबीर को भी याद किया। कहा कि सम्मेलन तब तक अधूरा है जब तक लहरतारा के तारा का जिक्र न हो। उन्होंने कबीर को याद करते हुए सुनाया कि...
जरा हल्के गाड़ी हांको, मेरे राम गाड़ी वाले,
गाड़ी म्हारी रंग-रंगीली, पहिया है लाल गुलाल
हाकण वाली छेल छबीली, बैठण वालो राम,
जरा धीरे-धीरे गाड़ी हाकों मेरे राम गाड़ी वाले...।
तुलसीदास को भी मंच से किया नमन
उन्होंने दिल पर हाथ रखकर बाबा तुलसी को नमन किया। उन्होंने तुलसी दास को काशी के गंगा घाट से जोड़ा और मुक्तक पढ़ते हुए कहा-
मेरे तट पर जागे कबीर, मैं घाट भदैनी तुलसी की,
युग-युग की हूं मैं माता, हुसली की तुलसी की,
वल्लभाचार्य, तैलंग स्वामी, रविदास, मंगल है मेरा वरण जन्म
सौ जन्मों का आनंद हूं मैं, कंकर-कंकर मेरा शंकर
मैं लहर-लहर अविनाशी हूं, मैं काशी हूं, मैं काशी हूं।
मुक्तक से राजन-साजन को किया प्रणाम
मंच से उन्होंने काशी के सभी विभूतियों को प्रणाम किया। तो मुक्तक से धन्यवाद दिया।
बांसूरियां है प्रसाद की, रविशंकर सितार की तान हूं मैं,
राजन-साजन का अमर राग, गिरिजा देवी की तान हूं मैं,
शहनाई में बिस्मिल्लाह का, नाटक में आगा खां,
मुझमें रमकर जागोगे तुम कि पूरा हिंदुस्तान हूं मैं,
भारत के रत्न कहाते हैं, हर चौराहे पर पदमश्री मिल जाए,
जिसको हो ज्ञान गुमान, लंका पर लंका लगवाए
दुनिया जिसके ठेंगे पर, पप्पू की अड़ी आ जाए
मैं काशी हूं, मैं काशी हूं, मैं काशी हूं, मैं काशी हूं,
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