प्जील माफ कर दो... मनाया जा रहा क्षमा का एक अनोखा पर्व 'पर्यूषण'
जैन सम्प्रदाय का क्षमावाणी पर्व 26 सितंबर को है, यह पर्व न केवल धर्म से युवाओं को जोड़ता है बल्कि सामूहिक रूप से क्षमा मांगकर बड़ों के लिए सम्मान दर्शाता है!
वाराणसी [वंदना सिंह] : गलती पर माफी मांगने के लिए सिर्फ शब्द नहीं बल्कि पछतावा और भावना होना मायने रखता है। अगर आपने किसी के मन को ठेस पहुंचाया हो और बस उससे माफी मांगकर औपचारिकता पूरी कर ली तो कभी भी सामने वाला आपको दिल से माफ नहीं करेगा। वहीं आजकल लोगों द्वारा किसी भी गलती के लिए सॉरी कह देना काफी माना जाने लगा है। जहां पछतावा नहीं वहां भला कैसी माफी। जैन धर्म में एक पर्व क्षमा का भी बनाने का अनोखा रिवाज है।
क्षमावाणी की अनोखी परंपरा
सही मायने में अगर क्षमा के महत्व को समझना हो तो जैन समुदाय में इसका जीता जागता उदाहरण 'क्षमावाणी' के रूप में दिख जाएगा। जी हां, इस बार जैन सम्प्रदाय का क्षमावाणी पर्व 26 सितंबर को पड़ रहा है। यह पर्व न केवल अपने धर्म से युवाओं को जोड़ता है बल्कि सामूहिक रूप से क्षमा मांगकर बड़ों के लिए सम्मान दर्शाता है और द्वेष, क्रोध आदि को दिल से दूर करता है। क्षमावाणी सामूहिक रूप से क्षमा मांगने के लिए पूरा एक पर्व ही समर्पित होता है। जैन मंदिर मैदागिन व भेलूपुर में जिस समय क्षमा मांगने का यह सिलसिला शुरू होता है उस वक्त लोगों के चेहरे पर अपने द्वारा की गई गलतियों की माफी में एक पछतावा नजर आता है। जिसे देखकर ही क्षमा देने वाले के हाथ प्यार व स्नेह से क्षमायाचना करने वाले के सिर पर आशीर्वाद की तरह आ जाते हैं।
परंपराओं का होता है निर्वहन
बाबू बिहारीलाल दिगंबर जैन मंदिर धर्मशाला ट्रस्ट के सदस्य व जैन मिलन वाराणसी के अध्यक्ष विजय कुमार जैन बताते हैं कि दशलक्षण पर्व के बाद क्वार बदी एक्कम के दिन क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 26 सिंतबर को है। इसमें लोग अपने द्वारा दूसरे के प्रति किसी भी तरह की नाराजगी के लिए एक दूसरे से माफी मांगते हैं। दिंगबर जैन मंदिर मैदागिन में सुबह व भेलूपुर में शाम को यह पर्व मनाया जाता है। इसमें भगवान की पूजा व अभिषेक के बाद मंदिर परिसर में सामूहिक रूप से महिलाएं-पुरुष, बच्चे वर्ष भर में हुए अपनी सभी उन जानी अनजानी गलतियों की लोगों से क्षमा मांगते हैं। इसमें कोई भेदभाव नहीं होता। छोटे बड़ों का पैर छूकर क्षमा मांगते हैं । कुल मिलाकर प्रेम, स्नेह, भावनाओं का माहौल जहां शब्द मौन से हो जाते हैं और सिर्फ भावना ही नजर आती है। चेहरे पर पछतावा और ग्लानि ऐसी होती है कि इसे देखकर क्षमा देने वाला सारे गिले शिकवे भुला बैठता है। दिगंबर और श्वेतांबर सम्प्रदाय में इसे अपनी अपनी रीति के अनुसार मनाया जाता है। खास बात यह कि बाकायदा इस पर्व के लिए विशेष कार्ड छपवाए जाते हैं जिसमें नीचे क्षमा मांगने वाले के हस्ताक्षर और उपर जिनसे क्षमा मांगना है उनका नाम लिखा होता है।
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