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    Pandit Kishan Maharaj : भुलाए न भूलेंगी यादें तबला सम्राट पंडित किशन की

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Sun, 02 Sep 2018 01:33 PM (IST)

    मामा जी, पं. बिरजू महाराज और हम दोनों भाइयों को प्रस्तुति देनी थी। सभागार इस तरह खचाखच भरा कि वहां के तत्कालीन गवर्नर के लिए अलग प्लास्टिक की कुर्सी लगानी पड़ी।

    Pandit Kishan Maharaj : भुलाए न भूलेंगी यादें तबला सम्राट पंडित किशन की

    पं. राजन-साजन मिश्र

    मामा जी (पं. किशन महाराज) विलक्षण व्यक्तित्व के स्वामी थे। ऐसे महापुरुषों का युगों-युगों में दुनिया में आना होता है। कृष्ण जन्माष्टमी की रात पैदा हुए तो उनका नाम किशन रखा गया। भगवान कृष्ण की तरह ही गुण-अवगुण का मेल था। कला के क्षेत्र में थे तो उस क्षेत्र के गुण ज्यादा थे। संगीत के क्षेत्र में उनका जोड़ नहीं तो भाव और स्वभाव में भी बेजोड़ थे। धुन के भी पक्के इतने की जो ठान लिया, उसे कर के ही विश्राम लिया। संगीत में साधक आमतौर पर सिर्फ सुर-लय-ताल का ही ख्याल रखते हैं लेकिन, उनका हर एक बिंदु पर ध्यान होता। धैर्य इतना कि कोई आकलन ही नहीं कर सकता।

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    इसे इस तरह समझ सकते है कि एक बार थ्री लीजेंड्स आफ इंडिया कंसर्ट सीरीज के तहत अहमदाबाद में कार्यक्रम था। मामा जी, पं. बिरजू महाराज और हम दोनों भाइयों को प्रस्तुति देनी थी। सभागार इस तरह खचाखच भरा कि वहां के तत्कालीन गवर्नर के लिए अलग प्लास्टिक की कुर्सी लगानी पड़ी। इस बीच ग्रीन रूम में तबले को साधने में उसकी बध्धी टूट गई। हम नर्वस हो गए कि अब क्या होगा। शिष्य आसपास से कोई तबला ढूंढऩे के लिए भागे लेकिन, मामाजी जी के चेहरे पर कोई परेशानी के भाव नहीं, बड़ी तल्लीनता के साथ तबले की गिट्टी निकाली। बध्धी खोली , तबले को पैर में फंसाया और खींच कर बांध दिया। बोले-अब चमड़ा फट जाएगा लेकिन, बध्धी नहीं टूटेगी। गजब का विल पावर देख हम दंग रह गए। ऐसे ही एक बार मैं (राजन मिश्रा) हारमोनियम बजा रहा था। एक स्टापर निकल गया।

    मामाजी ने हारमोनियम को उलटा-पलटा और कहा 'सलाई क तीली ले आवा, पेंच क होल बड़ा हो गयल हौ।' उन्होंने तीली लगाकर पेंच कसा और फिर उसी अंदाज में कहा 'ला, हरमुनियम टूट जाई लेकिन, स्टापर न हिली।' इसे उनका शौक भी कह सकते हैं कि घड़ी का एक-एक पुर्जा खोल देते, फिर कसते और चलने तक लगे रहते। कुछ वैसे ही जैसे तबला मिलाते। एक बार उन्होंने जो तबला मिला दिया तो मंच पर फिर दोबारा हथौड़ा उठाने की जरूरत नहीं होती। माइक जहां लग गया, हटाते नहीं। ट्रबल या बेस बढ़ाने-घटाने को तो कहते ही नहीं। बताते कि पिता जी ने दो-दो घंटे सिर्फ तबला मिलाना सिखाया। जब बजाना शुरू किया तो बड़का बाबू तबले में डेढ़कस लगा देते और फिर से मिलाने के लिए दे देते। एक बार ग्वालियर में जब पं. रविशंकर संग मंच पर बैठे 12 घंटे बजाते ही रहे।

    वीर रस के अद्भुत कवि ने लिखा तिरंगा

    मामाजी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। चित्र बनाते और वीर रस के अद्भुत कवि भी थे, 1947 में 'तिरंगा' लिखी उन्होंने जो भाव में सुनाते। रामायण आधारित बंदिशों को आकार दिया। बचपन में पं. शम्भो महाराज के यहां जमने वाली शेरो शायरी की महफिल में जाते जहां मिसरा दिया जाता और लोग उस पर ही रचनाएं करते और सुनाते। एक बार मिसरा दिया गया 'तकिया लागी...'। मामा जी ने रात भर में शानदार रचना कर स्तब्ध कर दिया। उनकी रचना च्हम करतार, तू करतार काहें का' भावपूर्ण है।

    कुश्ती और गहरेबाजी

    शौकीन इतने की कुश्ती में हाथ आजमाते। सिर पर दुपलिया टोपी लगाए इक्के पर निकल जाते। कोलकाता से ट्रंक भर कर पतंग ले आते। कुत्ते पालने का शौक ऐसा कि कोई नस्ल छूटी ही नहीं। कपड़े ऐसे तह करते मानों फिर से प्रेस हो गया। बड़ी ही बारीकी से अंदाज में पानदान सजाते। बीड़ा लगाते तो खाना भी शानदार बनाते। मिठाई का शौक इतना की चाय-दूध में पांच चम्मच तक चीनी तो दोनों पहर खाने के बाद मिठाई खाते। हालांकि मामाजी जी अल्पाहारी थे, कहते 'कम खाना गम खाना। चुप रहना बाज आना।' उन्हें डायरी लिखने का गजब शौक था जो एक इतिहास की पूरी किताब हो सकती है।

    हृदय विशाल, बातें कमाल

    बचपन से ही दोनों भाइयों को उनका स्नेह मिला। स्मरण शक्ति इतनी तीव्र कि कितनी भी पुरानी बात हो सिलसिलेवार बता जाते। उनका दिल्ली अक्सर आना होता और एक-एक पखवारे रुकते। एक बार अचानक दिल्ली आए तो बोल पड़े 'आज तोहन लोगन के संगे भी वइसे फोटो खिंचाईब जइसन नजाकत-सलामत के साथे हौ।' पाकिस्तान के ख्यात कलाकार भाइयों की वह तस्वीर आज भी गणेश कक्ष में लगी है।

    अहमदाबाद में सप्तक के बाद उनके साथ दो दर्जन कंसर्ट का मौका मिला। पहली बार उनके घर पर गाने का मौका मिला तब हम तीन व आठ साल के थे, 22-27 की उम्र में जब गायन किया तो मामा जी बोल पड़े, तुम लोग तो 50 वर्ष के कलाकार की तरह गा रहे हो। दिल में जो कुछ रहता बेलौस कह जाते। मिजाज में आते तो खिंचाई करने से भी बाज न आते। अहमदाबाद में एक बार कंसर्ट के लिए साथ थे। शाम को अचानक अपने कमरे से निकल साजू-साजू... (साजन मिश्र) पुकारने लगे। भागा हुआ अपने कमरे से बाहर आया तो उन्हें सामने चेहरे पर शेविंग क्रीम लगाए, अकुलाए से बाहर खड़े पाया। का भयल मम्मा पूछते ही उन्होंने जैसे कोई बड़ा राज बताया। कहा आज तक लगता था किसी को कलाकार बना देंगे, जिस किसी को छू दूंगा कलाकार हो जाएगा लेकिन, आज अहसास हुआ कि बनाता तो करतार है, हम तो सिर्फ झाड़-पोछ कर बैठा देते हैं।

    (लेखक, पद्मभूषण से सम्मानित ख्यात शास्त्रीय गायक हैं।)